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Tag Archives: बस्तर

आदिमानवों द्वारा निर्मित गुहा शैलचित्र : लहूहाता बस्तर

जंगल में गुजरते हुए पहाड़ की चढ़ाई, ऊपर पठारी भाग में चौरस मैदान और चौरस मैदान के नीचे सभी ओर गहरी खाई, मैदान से खाई के बीच बेतरतीब पत्थरों की दीवार। दीवार में प्राकृतिक रुप से बने अनेक गुफानुमा स्थान। 8-10 वर्ग कि.मी. का पठारी क्षेत्र पूर्णतः वीरान किन्तु चारों …

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गढ़धनौरा गोबरहीन का विशाल शिवलिंग एवं पुन्नी मेला

महाशिवरात्रि पर्व पर त्रेतायुग के नायक भगवान श्रीराम के वनवास काल स्थल एवं 5वीं-6वीं शताब्दी के प्राचीन प्रसिद्ध शिवधाम गढधनौरा गोबरहीन में मेला लगता है। श्रद्धालु शिवभक्तों, प्रकृति से प्रेम करने वाले प्रकृति प्रेमियों एवं सभ्यता संस्कृति इतिहास में अभिरूचि रखने वाले जिज्ञासुओं की भारी भीड़ के चलते यंहा पर …

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जनजातीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग : महुआ

आम तौर पर महुआ का नाम आते ही इसका सम्बन्ध शराब से जोड़ दिया जाता है। जबकि यह एक बहुपयोगी वृक्ष है। इस वृक्ष के फल, फूल, पत्ती, लकड़ी, तने की छाल सबका अपना उपयोग है। इस वृक्ष के बहुपयोगी होने के कारण जनजातीय समाज इस वृक्ष को पवित्र मानता …

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बस्तर की मुरिया जनजाति का प्राचीन विश्वविद्यालय घोटुल

इसे बस्तर का दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिये कि इसे जाने-समझे बिना इसकी संस्कृति, विशेषत: इसकी वनवासी संस्कृति, के विषय में जिसके मन में जो आये कह दिया जाता रहा है। गोंड जनजाति, विशेषत: इस जनजाति की मुरिया शाखा, में प्रचलित रहे आये “घोटुल” संस्था के विषय में मानव विज्ञानी …

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बस्तर की वनवासी संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग : साजा वृक्ष

बस्तर में निवासरत विभिन्न जाति एवं जनजाति के लोग प्रकृति आधारित जीवन-यापन करते है। ये लोग आदिकाल से प्रकृति के सान्निध्य में रहते हुये उसके साथ जीने की कला स्वमेव ही सीख लिए हैं। यहाँ के रहवासियों का मुख्य व्यवसाय वनोपज, लघुवनोपज संग्रहण कर उसे बेच कर आय कमाना है। …

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कल्प वृक्ष सल्फी से जुड़े बस्तर के वनवासी आर्थिक – सामाजिक सरोकार

बस्तर के ग्रामीण परिवेश में सल्फी का अत्यधिक महत्व है। यह वृक्ष जिस घर में होता है, उस घर का कुछ वर्षो में आर्थिक रूप से  काया कल्प हो जाता है। प्रकृति के साथ सन्तुलन बनाते हुये बस्तर का ग्रामीण इसे सहेजने की कला स्वमेव सीख गया है। इसलिये अपने …

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कोसल के कलचुरियों से बस्तर के सम्बन्ध

बस्तर रियासत पर रतनपुर के कलचुरि शासन के प्रभाव से सम्बन्धित कई तरह की कहानियाँ चलन में है; अत: थोडी बात कलचुरियों की। लगभग दसवी शताब्दी में त्रिपुरी से आ कर कलचुरियों की एक शाखा नें दक्षिण कोसल पर विजय हासिल की तथा कलिंगराज (1000-1020 ई.) नें अपनी सत्ता स्थापित …

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केशकाल का भव्य झरना : उमरादाह

प्रकृति की अपार खूबसूरती से भरा बस्तर संभाग अपने अकूत प्राकृतिक सौंदर्य और खनिज संपदा के लिए जाना जाता है। इसी क्रम में अविभाजित बस्तर जिले से मुक्त होकर बने नवीन जिले कोंडागांव में पर्यटन की अपार संभावनाएं है, जिसका सिरमौर केशकाल विकासखंड है। विगत एक दो वर्षों में चर्चा …

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शाक्त धर्म एवं महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमाएं : छत्तीसगढ़

भारतवर्ष में मातृदेवी एवं शक्ति के रूप में देवी पूजन की परम्पराएं प्रचलित रही हैं। भारतीय संस्कृति की धार्मिक पृष्ठभूमि में शाक्त धर्म का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सृष्टि के उद्भव से लेकर वर्तमान काल तक के संपूर्ण विकास में शक्ति पूजा का योगदान दिखाई देता है। नारी शक्ति को …

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तेलीन सत्ती माई : छत्तीसगढ़ नवरात्रि विशेष

देवी देवताओं के प्रति गहरी आस्था और अटल विश्वास के कारण आदिम जनजीवन में देवी देवताओं का विशिष्ट स्थान है। बस्तर में इन देवी देवताओं का एक अलौकिक साम्राज्य है और इस अलौकिक साम्राज्य की राजा हैं देवी माँ भंगाराम माई। बस्तर का प्रवेश द्वार बार मोड़ों वाली केशकाल घाटी …

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