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Tag Archives: सरगुजा

लोक मंगल का नृत्य करमा

लोकगीत और लोकनृत्यों में छत्तीसगढ़ का उल्लासित परिवेश साकार हो उठता है। जन्म से मृत्यु पर्यंत, पर्व और उत्सवों में, जीवन की विसंगतियों में होता आया लोक नृत्यों आज भी जीवंत है,समूचे जनजीवन में। ऐसा ही एक लोक नृत्य है करमा, जो विविध परिवेश में प्रचलित है। इसे छत्तीसगढ़ के …

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मझवार वनवासियों में होती है पितर छंटनी

भारत में पितृ पूजन एवं तर्पण की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है, विभिन्न ग्रथों में इस पर विस्तार से लिखा भी गया है और पितृ (पितरों) के तर्पण की जानकारी मिलती है। सनातन समाज में अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक पितृपक्ष मनाया …

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नृत्य, नाटक का विकास एवं सीता बेंगरा

मानव जीवन में नृत्य, अभिनय का महत्व हमें आदिमानवों की शरणस्थली शैलाश्रयों में चित्रित शैलचित्रों से ज्ञात होता है। हजारों हजार साल प्राचीन शैलचित्रों में आदिमानवों ने अपनी कला बिखेरते हुए तत्कालीन समय की गतिविधियों को चित्रित किया, जिससे हमें वर्तमान में उनके जीवन के विषय में ज्ञाता होता है। …

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दक्षिण कोसल में लौह उत्पादन का केन्द्र

मानव सभ्यता के एक सोपान के रुप में “लौह युग” महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लोहे की उत्पत्ति मानव सभ्यता के लिए क्रांतिकारी अविष्कार माना गया है। इस युग में मनुष्य ने मिट्टी में लोहे की पहचान की और उसे मिट्टी से पृथक करने एवं परिष्कृति करने विधि विकसित की। फ़िर …

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सरगुजा के लोकनृत्य का प्रमुख पात्र “खिसरा”

रंगमंच या नाट्योत्सव भारत की प्राचीन परम्परा है, इसके साथ ही अन्य सभ्यताओं में भी नाटको एवं प्रहसनों का उल्लेख मिलता है। इनका आयोजन मनोरंजनार्थ होता था, नाटकों प्रहसनों के साथ नृत्य का प्रदर्शन हर्ष उल्लास, खुशी को व्यक्त करने के लिए उत्सव रुप में किया जाता था और अद्यतन …

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दक्षिण कोसल के प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्र

प्रागैतिहासिक काल के मानव संस्कृति का अध्ययन एक रोचक विषय है। छत्तीसगढ़ अंचल में प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्रों की विस्तृत श्रृंखला ज्ञात है। पुरातत्व की एक विधा चित्रित शैलाश्रयों का अध्ययन है। चित्रित शैलाश्रयों के चित्रों के अध्ययन से विगत युग की मानव संस्कृति, उस काल के पर्यावरण एवं प्रकृति …

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लोक देवता करमपाठ

आदिकाल से ग्रामदेव डीह-डिहारिन आदि दैवीय शक्तियों की विशेष कृपा दृष्टि, अनुकम्पा जन सामान्य पर बनी रहती थी और आज़ भी बनी रहती है। एक खास अवसर पर इन देवी-देवताओं की पूजा आराधना श्रृद्धालु ग्रामवासियों द्वारा की जाती है। ऐसा ही एक देवस्थान लखनपुर- मुख्यालय से महज तीन किमी की …

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सरगुजा अंचल स्थित प्रतापपुर जिले के शिवालय : सावन विशेष

सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिला अंतर्गत प्रतापपुर से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में पहाड़ों की पीठ पर ग्राम पंचायत शिवपुर में शिवपुर तुर्रा नामक स्थल प्रसिद्ध है। यहीं शिव मंदिर के अंदर जलकुण्ड में अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग विराजमान हैं। इस शिवलिंग में शिव एवं पार्वती दोनों के …

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सरगुजा अंचल में गंगा दशहरा

भारत धार्मिक आस्था वाला देश है। यहां के रहवासी पेड़-पौधों, पत्थरों और धातुओें में ही नहीं बल्कि नदियों में भी देवी देवताओं के दर्शन करते हैं। भारत में गंगा, गोदावरी, यमुना, सरस्वती, कावेरी, ब्रम्हपुत्र आदि महत्वपूर्ण नदियाँ हैं, जिन्हें प्राणदायनी माना जाता है। भारतीय जीवन और संस्कृति में नदियों का …

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स्थापत्य कला में गजलक्ष्मी प्रतिमाओं का अंकन : छत्तीसगढ़

लक्ष्मी जी की उत्पत्ति के बारे में कहा गया है कि देवों तथा असुरों द्वारा समुद्र मंथन करते समय उससे उत्पन्न हुये चौदह रत्नों में से लक्ष्मी जी भी एक रत्न थीं। वे कमल के आसन पर बैठी हुई कमल पुष्प हाथ में धारण किये हुये प्रकट हुई थीं। लक्ष्मी …

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