Home / ॠषि परम्परा / आस्था / जीवन काल में शक्ति संजोने का पर्व नवरात्रि

जीवन काल में शक्ति संजोने का पर्व नवरात्रि

जीवन अच्छी तरह से जीने के लिए, उसके बीच गुजरते हुए ऐसा बहुत कुछ जो अनावश्यक है, आवश्यक सा जान पड़ता है इसीलिए जीने के हर क्षण को उत्सव की तरह जिया जाये तो शक्ति का संचार बना रहता है। संभवतः इसीलिए ऋतुओं के अनुसार बांटी गई भारतीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का चलन कभी निरुद्देश्य नहीं रहा।

जीने की आकांक्षा और अभिलाषा के संग स्वास्थ्य व शक्ति का तालमेल बना रहे तो निश्चय ही जीवन में उल्लास ही उल्लास छलकता है। प्रकृति के चारों ओर नवजीवन और वसंत की खुमारी इस उल्लास में जो वृद्धि करती है, उसी से विभिन्न शक्तियां संजोने के लिए नवरात्रि का प्रावधान हमारे पूर्वजों ने कर दिया था इसीलिए इसे शक्ति पर्व कहते हैं।

जैसा कि नाम से ही विदित होता है ! नवरात्रि अर्थात् नौ दिन और नौ रात्रि पूजा आराधना. इन दिनों देवी माँ के नौ स्वरूपों की हम पूजा करते हैं, प्रत्येक दिन एक नये रूप में उनकी आराधना की जाती है। यह पर्व शक्ति का पर्व है अर्थात् इन दिनों में दुर्गा माँ के स्वरूप की आराधना करते हुए अपने अंदर शक्ति जगायी जाती है। माना जाता है कि देवी माँ हमारे कल्मष को दूर करके हमे जाग्रत करे और अपनी शक्ति प्रदान करे। भारतीय संस्कृति में शक्ति स्वरूप जगत माता की स्तुति की गयी है।

दुर्गा सप्तशती में शक्ति आराधना का मूल मातृरूप में कुछ इस तरह बताया गया है – या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।। व्यक्तिगत साधना एवं सामाजिक उपासना के माध्यम से नवरात्रि पर्व पर मातृ रूपा शक्ति की पूजा का आयोजन शक्ति-ऊर्जा का अधिष्ठान ही तो है।

हमारे यहां आदिशक्ति त्रिगुणात्मक तीन रूप हैं। सात्विक रूप में वह सरस्वती हैं, राजसी रूप में लक्ष्मी व तामसी रूप में दुर्गा है। सरस्वती बुद्धि की देवी है। बुद्धि को शक्ति एवं ऐश्वर्य से श्रेष्ठ माना गया है अतः वह राजशक्ति व वैभव से कभी प्रभावित नहीं होती। यही कारण रहा कि हमारे ऋषियों और मनीषियों ने सदैव विश्व में जतगुरु का सम्मान प्राप्त किया ।

रजोमयी लक्ष्मी- श्रम व ऊर्जा से प्राप्त वैभव तक ले जाने वाली शक्ति की परिचायक हैं। ऊर्जा, श्रम व श्री, तीनों की सम्पन्नता से व्यक्तिगत व राष्ट्र का भौतिक विकास चरम पर पहुंचता है।

तमोमयी दुर्गा महिषासुर मर्दिनी शक्ति को दर्शाती हैं। आध्यात्मिक रूप से यहां महिषासुर को मोह, पशुत्व एवं अज्ञान का प्रतीक माना गया है। अज्ञान पर विजय शक्ति एवं श्रम से ही संभव है अतः शक्ति रूपा दुर्गा काली की उपासना का विधान शक्ति संचयन के लिये आवश्यक है। इस तरह जीवन के लिए इन त्रिगुणात्मक शक्तियों को अर्जित करने पर बल दिया गया है क्योंकि बुद्धि, श्रम, ऊर्जा एवं श्री के साथ किये गये कामों से ही राष्ट्र शक्ति सम्पन्न हो सकता है।

भारतीय जीवन पद्धति को शक्ति संचयन के इस नौदिवसीय अनुष्ठान के साथ आध्यामिक-सांस्कृतिक पारंपरिक तौर पर जोड़ कर ये उपाय किये गये कि राष्ट्र का प्रत्येक व्यक्ति शक्तिवान बने, खुशहाल बने। कल इस शक्तिपर्व का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हो चुका है जो नवमी तक चलेगा। सभी भक्तजन भाँति भाँति से देवी की पूजा करते हैं।

मंदिरों में धूम मची होती है, भजन कीर्तन, मंत्रा पाठ तथा व्रत रखकर भिन्न विधियों से सभी अपने अपने प्रकार से माँ का आव्हान करते हैं, दुर्गा सप्तशती का पाठ भी श्रद्धापूर्वक किया जाता है। परंतु मुख्य बिंदु है भगवान से जुड़ना क्योंकि जब तक उससे जुड़ेंगे नहीं तो कर्मकांड कैसे सफल होंगे. इसकी गहराई में जाकर विचार करें। तो समझ आता है कि यह पर्व इंगित करता है कि बुराइयों का नाश किया जाये और अच्छे गुण अपने अंदर भर लें, यही भगवान की इच्छा होती है। व्रत, पाठ, भजन, संकीर्तन तो मात्र सहायक होते हैं परंतु वास्तविक शक्ति तो हमारे विचारों से आती है।

इस समय व्रत, हवन, यज्ञ, दुर्गा पाठ आदि अनुष्ठानों से पवित्र वातावरण का सृजन होता है, जिससे पर्यावरण शुध्द होता है एवं ऋतु संधिकाल होने के कारण जो संक्रामक रोगों के फैलने का अंदेशा भी रहता है, उन सभी का शमन होता है। शक्ति जागरण के साथ नवरात्रि सामूहिक साधना का एक ऐसा पर्व है, जिसे सामूहिक रूप में मनाने के मूल में राष्ट्रीय संगठन एवं सहकारिता की भावना भी पैदा होती है।

देखा जाये तो अपनी सोयी हुई शक्तियों को जागृत करके शक्ति यानी कुण्डलनीं शक्ति को शुद्ध करते हुए उसे सहस्रार चक्र तक ले जाना है जो हमारे मूलाधार में सोयी पड़ी है, उसी से विचारो की उच्चता आती है – इसलिए इन दिनों का सदुपयोग अधिक से अधिक ध्यान करके किया जाये तो श्रेष्ठ है !

अखंड दीप घर में जलाकर रखे जिससे कि यह अखंड श्रद्धा की ज्योति हमारे ह्रदय में स्थिर हो जाये। हम ऊपर से ऊपर उठते जाये जैसे बाती की लपट ऊपर जा रही है। शुद्ध, सात्विक आहार, शुद्ध दिनचर्या घर की शुद्धि वस्त्रों की शुद्धि और मन की शुद्धि सभी पर ध्यान दिया जाता है क्योकि भगवान को शुद्धता सबसे अधिक पसंद है।

व्यवहार में, जीवन शैली में शुद्धता, स्वच्छता, पवित्रता का ध्यान रखा जाता है यदि हम सभी बिंदुओं पर विचार करेंगे और उनका पालन करेंगे तो शक्ति माँ अपनी कृपा अवश्य करेंगी। हमारा जीवन शुद्ध, पवित्र, सात्विक विचारों से भरपूर होते हुए अपने लक्ष्य की प्राप्ति की और अग्रसर रहेगा।

आलेख

About nohukum123

Check Also

“सनातन में नागों की उपासना का वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और जनजातीय वृतांत”

शुक्ल पक्ष, पंचमी विक्रम संवत् 2081 तद्नुसार 9 अगस्त 2024 को नागपंचमी पर सादर समर्पित …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *