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सप्ताह की कविता

इस विभाग में सम सामयिक विषयों पर प्रति सप्ताह कविताओं का प्रकाशन होगा

कैसा कलयुग आया

भिखारी छंद में एक भिखारी की याचना कैसा कलयुग आया, घड़ा पाप का भरता। धर्म मर्म बिन समझे, मानुष लड़ता मरता।। लगता भगवन तेरी, माया ने भरमाया। नासमझों ने तेरे , रूपों को ठुकराया।। कल तक वे करते थे, हे प्रभु पूजा तेरी। सहसा कुछ लोगों ने, झट इनकी मति …

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बेटी की पीड़ा

हाय विधाता इस जगती में, तुमने अधम बनाये क्यों?नरभक्षी दुष्टों के अंतस, कुत्सित काम जगाये क्यों ? उन अंधों के तो नजरों में, केवल भोग्या नारी है।उन मूर्खों को कौन बताये,बेटी सबसे न्यारी है।। नारी के ही किसी उदर से, जन्म उन्होंने पाया है ।और कलंकित कर नारी को, माँ …

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मुख से राम तू बोल के देख

भीतर अपने टटोल के देख।मुख से राम तू बोल के देख। स्पष्ट नजर आयेगी दुनिया,अंतस द्वार तू खोल के देख। राम नाम का ले हाथ तराजू,खुद को ही तू तोल के देख। है कीमत तेरा कितना प्यारे,जा बाजार तू मोल के देख। कितना मीठा कड़ुवा है तू,ले पानी खुद घोल …

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हम सबका अभिमान है हिन्दी

हम सबका अभिमान है हिन्दी, हम सब का सम्मान है हिन्दी॥ उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम तक, फुलवारी सी सजती है हिन्दीशिलालेखों एवं प्राच्य अभिलेखों में, मेंहदी सी रचती है हिन्दीहम सबका अभिमान है हिन्दी, हम सब का सम्मान है हिन्दी॥ मातृभाषा व राष्ट्रभाषा के पद पर, सदैव शोभित हमारी हिन्दी संस्कृत, पालि, …

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जब तक नहीं विचार मिलेगा : सप्ताह की कविता

जब तक नहीं विचार मिलेगा।बदतर यह संसार मिलेगा। अफवाहों के बाजारों में,है भारी कालाबाजारी।भाईचारे का अभाव है,सस्ती में तलवार दुधारी।गोली, बम, बारूद जखीरा,जगह-जगह अंगार मिलेगा। जब तक नहीं विचार मिलेगा।बदतर यह संसार मिलेगा। शरद पूर्णिमा है महलों में,बाहर गहन अमावस काली।कहीं खजाना भरा हुआ है,कहीं अन्न बिन कोठी खाली।जला नहीं …

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शोषित नदियों की आँखों से, अश्रुधार झरते देखा

जीवनदात्री पर लोगों को, घोर जुल्म करते देखा है ।शोषित नदियों की आँखों से, अश्रुधार झरते देखा है । बड़े-बड़े बाँधों की बेड़ी, बँधी पाँव में सरिताओं के। ढोने को कचरे की ढेरी , सिर लादी नगरों- गाँवों के। रोग प्रदूषण का है जकड़ा, तिल-तिल कर मरते देखा है। शोषित …

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छत्तीसगढ़ी कविताओं में मद्य-निषेध

शराब, मय, मयकदा, रिन्द, जाम, पैमाना, सुराही, साकी आदि विषय-वस्तु पर हजारों गजलें बनी, फिल्मों के गीत बने, कव्वालियाँ बनी। बच्चन ने अपनी मधुशाला में इस विषय-वस्तु में जीवन-दर्शन दिखाया। सभी संत, महात्माओं, ज्ञानियों और विचारकों ने शराब को सामाजिक बुराई ही बताया है। छत्तीसगढ़ी कविताओं में मदिरा का गुणगान …

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आओ हे घनश्याम

प्राण-पखेरु उड़ जाने पर,क्या फिर दवा पिलाओगे ?तोड़ प्रेम के कोमल धागे,फिर क्या गाँठ लगाओगे ? आओ हे घनश्याम हमारे,पल-पल युग सा लगता है।तुम्ही बताओ अपनों को भी,कोई यूँ ही ठगता है। शरणागत हम टेर लगाते,फिर भी क्या ठुकराओगे ?प्राण-पखेरु उड़ जाने पर,क्या फिर दवा पिलाओगे ? प्यासी धरती ,प्यासा …

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होली के रंग, प्रीत के संग

(१)तन के तार का मूल्य नही, मन का तार बस भीगे जबपूर्ण चंद्र हो रस तरंग,बस प्रेम भाव ही जीते जब। धन धान्य धरा और धूम धाम, धरती करती है ठिठोली जब।मुरली की तान, करुणा निधान,प्रिय मोर मुकुट है होली तब। (२)बृजराज कृष्ण, बृजराज काव्य, बृजराज धरा, यमुना तरंग।मोहन के …

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भगवा ध्वज लहराया है

स्वाभिमान जागा लोगों का, भगवा ध्वज लहराया है।रामराज्य की आहट लेकर, नया सवेरा आया है । जाति- पाँति के बंधन टूटे, टूट गई मन की जड़ता।ज्वार उठा भाईचारे का, धुल गई कड़वी कटूता।निर्भय होकर नर- नारी सब, अपने दायित्व निभाते उत्पीड़न करने वालों का, नहीं कहीं भय-साया है।स्वाभिमान जागा लोगों …

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