श्रावण शुक्ल सप्तमी गोस्वामी तुलसीदास जयंती विशेष आलेख
भारतीय संस्कृति में कई ऐसे संतों ने जन्म लिया जिन्होंने न केवल अपने कार्यो से हिन्दूओं को जागृत किया वरन समाज की धारा को ही नया मार्ग दिखाने का कार्य किया। भक्तिकाल ये संत आज भी जनमानस में अपना स्थान बनाये रखते हैं तथा सर्वकालिक प्रासंगिक भी हैं। ऐसा ही कार्य मध्य कालीन समय में भारतीय समाज में नवजागरण लाने का काम गोस्वामी तुलसीदास जी ने किया था
यह वह काल था जब देश में हिन्दुओं का उत्पीङन हो रहा था, उन्हें मुसलमान बनाया जा रहा था, ऐसे समय में एक व्यक्ति ने अकेले ही हिन्दुओं को उनके धर्म में स्थापित रखने बीड़ा उठाया था। वह व्यक्ति थे तुलसीदास जी, जिन्होंने रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, जानकी मंगल, कवितावली जैसे न जाने कितने सारे काव्यों और ग्रंथों की रचना की।
भक्ति काल के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक थे। उनके द्वारा लिखे गए दोहे और चौपाई या समाज में सामाजिक जागृति लाने का काम करते है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस जैसा काव्यशास्त्र लिखा था, जिसमें उन्होंने हिंदू धर्म के आराध्य भगवान राम के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन किया, रामचरित मानस का आम जनमानस पर विशेष प्रभाव आज भी दिखाई देता है।
इनके जन्म के सम्बन्ध में कई मत हैं, किन्तु ज़्यादातर विशेषज्ञों के अनुसार तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में संवत 1589 को राजपुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी देवी था। जन्म लेते ही तुलसीदास जी ने सबसे पहले रामनाम का उच्चारण किया। जिससे उनका नाम रामबोला पड़ गया।
इनके जन्म के संबंध में दोहा है –
पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर,
श्रावण शुक्ल सप्तमी तुलसी धरयो शरीर॥
तुलसीदास जी के जन्म के अगले दिन ही इनकी माता का निधन हो गया। इसके बाद इनके पिता ने संन्यास धारण कर लिया। रामबोला बहुत छोटी सी उम्र में अनाथ हो गए और भिक्षा मांगकर अपना पोषण करने लगे। इनके गुरु का नाम नरहरीदास था। बाद में रामबोला का नाम बदलकर तुलसीदास रख दिया।
कहा जाता है तुलसीदास जी की बाल्यकाल में शिक्षा तथा भक्ति की ओर कोई रूचि नहीं थी। वे इधर उधर घूम घूम के अपना समय व्यर्थ करते रहते थे। कुछ समय बाद इनका विवाह रत्नावली नाम की कन्या से करा दिया गया। रत्नावली बुद्धिमान थीं, तथा तुलसीदास जी को भी सदा भक्ति का महत्व बताती रहती थी। उन्हें कार्य करने के लिए प्रेरित भी करती थीं, किन्तु तुलसीदास जी पर इन सब का कोई असर नहीं होता था।
रत्नावली से वे अत्यधिक प्रेम करते थे, हर समय उनके साथ रहते थे। एक दिन रत्नावली अपने मायके गयीं थी, किन्तु वर्षा के कारण कुछ दिन वापस नहीं आ सकीं। उनसे मिलने तुलसीदास जी उफनती नदी को ही पार करके उनके मायके चले गए।
यह देख रत्नावली जी क्रोधित हो गयीं और उन्हें फटकार लगा दी – कि लाज नहीं आतीआपको पीछे पीछे यहां तक आ गए, “अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ता। नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत बीता” अर्थात मेरी इस देह से जितना प्रेम करते हैं उतना अगर श्री राम से करते तो आपका कल्याण हो जाता।
उस दिन तुलसीदास जी के ह्रदय में ये बात लग गयी, उन्होंने ग्रहस्त जीवन का त्याग कर दिया और वे प्रभु राम की भक्ति में लीन हो गए। उन्होंने बाबा नर हरिदास जी से शिक्षा प्राप्त की तथा उनकी प्रेरणा से श्री रामचरितमानस की रचना की। यह बाल्मीकि रामायण का ही सरल भाषा में अनुवाद था, जिसे छंदों और गद्यों में पिरोया गया था। इस अद्भुत ग्रन्थ की रचना 2 वर्ष 7 महीने और 26 दिनों में हुई थी।
तुलसीदास जी रामचरित मानस की रचना के प्रेरक भगवान शिव को बताते हैं, उनकी प्रेरणा से ही इस महाकाव्य की रचना हुई, वे कहते हैं – “जो महेस रचि मानस राखा, पाई सुसमय शिवा सन भाखा॥” इस ग्रंथ को तुलसीदास जी ने भगवान शिव की प्रेरणा से एवं हनुमान जी की सहायता से लिखा।
तुलसीदास जी ने राम भक्ति करते हुए हिंदू धर्म में धर्म के नाम पर चल रही पाखंडता को को खत्म किया उन्होंने लोगो मूर्ति पूजन के लिए प्रेरित किया। उस समय मुगलों द्वारा हिंदुओं पर काफी अंत्याचार किया जा रहा था तथा हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी ध्वंस किया जा रहा था और हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करवा कर हिंदू देवी देवताओं की भक्ति से दूर किया जा रहा था। उस समय तुलसीदास जी ने धर्म कट्टरपंथियों का विरोध करके हिंदुओं को राम भक्ति के लिए प्रेरित किया उन्होंने रामभक्ति को सर्वश्रेष्ठ बताया।
बताया जाता है कि एकबार जब तुलसीदासजी भगवान राम की खोज कर रहे थे, तब उनका सामना एक पेड़ पर रहने वाला प्रेत से हुआ। दरअसल एक पेड़ बहुत सूख रहा था और तुलसीदासजी ने उस पेड़ को पानी दिया तो वह फिर से हरा भरा हो गया। उस पेड़ पर एक प्रेत रहता था, जिसने उनको हनुमानजी से मिलने का उपाय बताया। तुलसीदासजी हनुमानजी को खोजते हुए उनके पास पहुंच गए और राम दर्शन के लिए प्रार्थना करने लगे। तब हनुमानजी ने चित्रकूट में रामघाट पर घोड़े पर सवार राम और लक्ष्मण के दर्शन करवाए।
इन्होने अपनी रचनाओं द्वारा डूबते हुए हिन्दुओं के सूरज को फिर से उजागर किया। समाज की कई कुरीतियों को दूर किया तथा गौ सेवा और ब्राह्मण रक्षा का भी उपदेश दिया। इन्हे जन साधारण का कवि माना जाता है क्योकि इनकी सभी रचनाएँ आम जनमानस की ही भाषा में ही की गयी थी।
तुलसी कृत हनुमान चालीसा आज भी देश के कोने कोने में पढ़ी जाती है, जिसमे हनुमान जी के गुणों तथा भक्ति का बखान किया गया है। इन्होने विनय पत्रिका, कृष्ण गीतावली, हनुमान बाहुक, रामलला नहछू, बरवै रामायण, जानकी मंगल तथा रामज्ञा प्रश्न आदि सहित कुल 24 कृतियों की रचना की।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने सगुण भक्ति पर बल दिया और श्री राम के चरित्र का बखान ऐसे किया की सम्पूर्ण देश में रामभक्ति की लहर दौड़ गयी। तुलसीदास जी को ही राम राज्य का सपना आम जनमानस को दिखाने का श्रेय जाता है।
तुलसीदास जी का संपूर्ण जीवन काल 126 वर्ष था। इनकी रचनाओं में अवधि और ब्रज भाषा का अधिक प्रयोग देखा जा सकता है। इनकी अंतिम रचना वैराग्य सांदीपनी थी। इनकी मृत्यु 31 जुलाई, सन 1623 में वाराणसी के अस्सी घाट पर हुई। तुलसीदास जी ने अपनी अंतिम सांस राम नाम लेते हुए ली।
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