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Monthly Archives: February 2021

राजिम मेला : ऐतिहासिक महत्व एवं संदर्भ

ग्रामीण भारत के सामाजिक जीवन में मेला-मड़ई, संत-समागम का विशेष स्थान रहा है। स्वतंत्रता के पूर्व जब कृषि और ग्रामीण विकास नहीं हुआ था तब किसान वर्षा ऋतु में कृषि कार्य प्रारम्भ कर बसंत ऋतु के पूर्व समाप्त कर लेते थे। इस दोनों ऋतुओं के बीच के 4 माह में …

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जैव जगत एवं पुरातत्व का सजीव संग्रहालय : बार नवापारा अभयारण्य

छत्तीसगढ़ के अन्यान्य वनांचलों की ही भांति बारनवापारा को भी एक रहस्यपूर्ण, अलग-थलग, सजीव व सतत् सृजनशील तथा बेदाग हरापन लिए बीहड़ वन क्षेत्र के रूप में सहृदय दर्शक सहज अनुभव करता है। जिस वन्य परिवेश के प्रत्यक्षानुभव प्राप्त करने हेतु छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से बारनवापारा की यात्रा …

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छत्तीसगढ़ के भरतपुर तहसील की शैलोत्कीर्ण गुफ़ाएं

छत्तीसगढ़ के उत्तर पश्चिम सीमांत भाग में स्थित कोरिया जिले का भरतपुर तहसील प्राकृतिक सौदंर्य, पुरातत्वीय धरोहर एवं जनजातीय/सांस्कृतिक विविधताओं से परिपूर्ण भू-भाग है। जन मानस में यह भू-भाग राम के वनगमन मार्ग तथा महाभारत कालीन दंतकथाओं से जुड़ा हुआ है। नवीन सर्वेक्षण से इस क्षेत्र से प्रागैतिहासिक काल के …

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मल्लालपत्तन (मल्हार) की स्थापत्य कला

मल्हार छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले में 21090’ उत्तरी अक्षांस तथा 82020’ पूर्वी देशांतर में स्थित है। मल्हार बिलासपुर से मस्तूरी होते हुये लगभग 32 कि.मी. दूरी पर पक्के सड़क मार्ग पर स्थित हैं कल्चुरि शासक पृथ्वीदेव द्वितीय के कल्चुरि संवत् 915 (1163 ई.) का शिलालेख जो कि मल्हार से …

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हिन्दवी स्वराज के संस्थापक : छत्रपति शिवाजी

भारत के महान योद्धा राजा, रणनीतिकार, कुशल प्रबुद्ध सम्राट के रूप में प्रतिष्ठित वीर सपूत एवं भारतीय गणराज्य के महानायक शिवा जी का जन्म 19 फरवरी को मराठा परिवार में हुआ था। माता जीजा जी बाई धार्मिक स्वभाव की कुशल व्यवहार की वीरांगना नारी थीं। उन्होंने बालक शिवा जी का …

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वसंत पंचमी का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व

हमारा भारत पर्वों, उत्सवों का देश है, यहाँ साल के बारहों महीनें कोई न कोई उत्सव एवं पर्व मनाए जाते हैं। पृथ्वी का यह एकमात्र ऐसा भू-भाग है, जहाँ वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमंत नामक छ: ॠतुएं होती हैं। वैसे तो इनमें सभी ॠतुओं का अपना-अपना महत्व है। …

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जनजातीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग : महुआ

आम तौर पर महुआ का नाम आते ही इसका सम्बन्ध शराब से जोड़ दिया जाता है। जबकि यह एक बहुपयोगी वृक्ष है। इस वृक्ष के फल, फूल, पत्ती, लकड़ी, तने की छाल सबका अपना उपयोग है। इस वृक्ष के बहुपयोगी होने के कारण जनजातीय समाज इस वृक्ष को पवित्र मानता …

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बस्तर की मुरिया जनजाति का प्राचीन विश्वविद्यालय घोटुल

इसे बस्तर का दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिये कि इसे जाने-समझे बिना इसकी संस्कृति, विशेषत: इसकी वनवासी संस्कृति, के विषय में जिसके मन में जो आये कह दिया जाता रहा है। गोंड जनजाति, विशेषत: इस जनजाति की मुरिया शाखा, में प्रचलित रहे आये “घोटुल” संस्था के विषय में मानव विज्ञानी …

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लोक का सांस्कृतिक उत्सव: मड़ई

लोक बड़ा उदार होता है। यह उदारता उसके संस्कारों में समाहित रहती है तथा यह उदारता आचार-विचार, रहन-सहन, क्रिया-व्यवहार व तीज-त्यौहार में झलकती है। जो आगे चलकर लोक संस्कृति के रूप में अपनी विराटता को प्रकट करती है। यह विराटता लोक संस्कृतिक उत्सवों में स्पष्ट दिखाई पड़ती है। छत्तीसगढ़ में …

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रामनामी : जिनकी देह पर अंकित हैं श्री राम जी के हस्ताक्षर

प्राचीन छत्तीसगढ़ (दक्षिण कोसल) प्राचीन काल से ही राम नाम से सराबोर रहा है। छत्तीसगढ़ की जीवन दायनी नदी जिसका पुराणों में नाम चित्रोत्पला रहा है, राजिम स्थित इस नदी के संगम को छत्तीसगढ़ का प्रयागराज कहा जाता है। महानदी के किनारे स्थित सिहावा, राजिम, सिरपुर, खरौद, शिवरीनारायण, तुरतुरिया आदि …

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