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Monthly Archives: January 2022

महा मानव महात्मा गाँधी और छत्तीसगढ़ : पुण्यतिथि विशेष

महात्मा गांधी विश्व के लिए सदैव प्रेरणा स्रोत रहेंगे। उन्होंने देश के ऐतिहासिक स्वतंत्रता संग्राम को सामाजिक जागरण के अपने रचनात्मक अभियान से भी जोड़ा, जिसमें शराबबन्दी ,अस्पृश्यता निवारण, सर्व धर्म समभाव, सार्वजनिक और व्यक्तिगत स्वच्छता, खादी और ग्रामोद्योग, ग्राम स्वराज, ग्राम स्वावलम्बन, पंचायती राज और बुनियादी शिक्षा जैसे कई …

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ग़ुलामी के बन्धनों में जीना याने स्वयं की ज़िन्दगी को तबाह करना: लाला लाजपत राय

लाला लाजपत राय जयंती विशेष आलेख उन्होंने कहा था -ग़ुलामी के बन्धनों में जीना याने स्वयं की ज़िन्दगी को तबाह करना है। लेकिन यह भी सच है कि आज़ादी भले ही हमें प्यारी हो, पर उसे पाने का रास्ता हमेशा कठिन चुनौतियों से भरा होता है। – अपने इन्हीं विचारों …

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स्वतंत्रता संग्राम में पूर्वोत्तर की प्रतिनिधि यौद्धा : रानी गाईदिन्ल्यू

पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों में एक लोकोक्ति बड़ी ही प्रचलित है – “सोत पो, तेरह नाती ; तेहे करीबा कूँहिंयार खेती।” अर्थात स्त्री यथेष्ट संख्या में जब बच्चों को जन्म देगी तब ही समाज में खेती सफल होगी। पूर्वोत्तर के हाड़तोड़ श्रम करने वाले समाज में यह कहावत परिस्थितिवश ही …

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75 वर्ष स्वतंत्रता के : क्या खोया, क्या पाया

आजादी का अमृत महोत्सव विशेष आलेख भारत अपनी संस्कृति एवं सभ्यता के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। हमारे धर्मशास्त्र एवं पुराणों में जीवन जीने की कला के साथ साथ धर्म, आध्यात्म ,राजनीति, अर्थ व्यवस्था एवं विज्ञान की चमत्कृत कर देने वाली घटनाएँ एवं गाथाएँ मौजूद हैं। किसी भी …

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नेता जी सुभाष चन्द्र बोस एवं महात्मा गांधी के मतभेद और मतांतर

त्रिपुरी अधिवेशन 1939 में कांग्रेस के वार्षिक अध्यक्ष पद हेतु गांधीयुगीन कांग्रेस में पहली बार चुनाव हुये थे, इस सनसनी खेज तथा आर-पार वाले चुनाव में सुभाष बाबू ने गांधी जी के समर्थित और प्रिय उम्मीदवार को परास्त किया। त्रिपुरी अधिवेशन के पहले कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सभी सदस्यों (जवाहर …

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नगपुरा का श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ

दुर्ग से 14 किमी दूरी पर स्थित यह स्थल आध्यात्मिक भावभूमि का परिचय देता है। शिवनाथ नदी के पश्चिमी तट पर स्थित नगपुरा में कलचुरि कालीन जैन स्थापत्य कला का इतिहास सजीव होता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 6 से लगी हुई दुर्ग-जालबांधा सड़क पर स्थित श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ का प्रवेश …

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सोनाखान जमींदारी

अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध। ब्रिटिश काल में अंग्रेजों का राज्य विस्तार इतना अधिक था कि उनके राज्य में कभी सूरज अस्त नहीं होता था, ऐसे विशाल साम्राज्य को चुनौती देकर उनके विरुध्द विद्रोह का शंखनाद करने वाली छ्त्तीसगढ में एक छोटी-सी रियासत थी सोनाखान। सोनाखान की शल्य-श्यामला भूमि में वीर …

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लोक कल्याण हेतु दान का पर्व : छेरछेरा

छतीसगढ़ के त्योहारों में परम्परा का गजब समन्वय है, देश भर में होली दिवाली सहित अनेक पर्व तो मनाते ही है किंतु माता पहुंचनी, पोरा, तीजा, इतवारी, नवाखाई, बढोना, छेवर और छेरछेरा ऐसे लोक स्थापित पर्व हैं जिसे लोक अपने स्तर और तरीके से नियत तिथि को मनाता है। छेरछेरा …

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सबके भीतर में हैं बैठे राम

चाहते हो सुख शांति अगर, अपने घर परिवार में। रोक लगानी होगी सबको, भौतिकता की रफ्तार में।। मुँह फैलाये द्वार खड़ी है, सुरसा बनकर भौतिकवाद। इसी वजह से हो रही है, संस्कृति भी अपनी बर्बाद। रावण जैसे यहाँ चूर सभी हैं, कुलनाशक अहंकार में।।1।। पर्यावरण हो रहा प्रदूषित, अपने ही …

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प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि का पर्व : मकर संक्रांति

संक्रांति का तात्पर्य संक्रमण से है, सूर्य का एक राशि से अगली राशि में जाना संक्रमण कहलाता है। वैसे तो वर्ष में 12 संक्रांतियाँ होती हैं, परन्तु मकर, मेष, धनु, कर्क आदि चार संक्रांतियाँ देश के विभिन्न भू-भागों पर मनाई जाती हैं। इसमें अधिक महत्व मकर संक्रांति को दिया जाता …

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