Home / ॠषि परम्परा / प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि का पर्व : मकर संक्रांति

प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि का पर्व : मकर संक्रांति

संक्रांति का तात्पर्य संक्रमण से है, सूर्य का एक राशि से अगली राशि में जाना संक्रमण कहलाता है। वैसे तो वर्ष में 12 संक्रांतियाँ होती हैं, परन्तु मकर, मेष, धनु, कर्क आदि चार संक्रांतियाँ देश के विभिन्न भू-भागों पर मनाई जाती हैं। इसमें अधिक महत्व मकर संक्रांति को दिया जाता है।

संक्रांति सम्पूर्ण भारत के साथ नेपाल में भी मनाई जाती है तथा भारत के राज्यों में पोंगल, बीहू, लोहड़ी आदि भिन्न-भिन्न नामों से यह उत्सव पर्व मनाया जाता है। वैसे भी हमारे पर्व कृषि के साथ ॠतु पर आधारित होते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इसे हम मकर संक्रांति कहते हैं।

इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर चलता है। शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है।

मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज  प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है।

इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी।

हमारे मनीषियों ने चिंतन एवं शोध के पश्चात ॠतु अनुसार स्वास्थ्यवर्धक भोजन की खोज की। हमारी संस्कृति में भोजन सिर्फ़ पेट भरने के लिए नहीं किया, हमारा भोजन स्वास्थ्य के साथ जुड़ा हुआ है और आयुर्वेद की औषधियों से युक्त स्वास्थ्यवर्धक होता है। इसलिए भिन्न भिन्न भोज सामग्रियों को ॠतुओं के साथ धार्मिक कर्मकांड में भी जोड़ा गया है। जैसे हम मकर संक्रांति के अवसर पर तिल गुड़ का सेवन करते हैं तो कुछ स्थानों पर खिचड़ी का सेवन किया जाता है।

मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ का वैज्ञानिक महत्व भी है। मकर संक्रांति के समय उत्तर भारत में सर्दियों का मौसम रहता है और तिल-गुड़ की तासीर गर्म होती है। सर्दियों में गुड़ और तिल के लड्डू खाने से शरीर गर्म रहता है। साथ ही यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है।

तिल को बेहद ही स्वास्थ्यवर्धक खाद्य वस्तु माना गया है। इसमें कॉपर, मैग्नीशियम, आयरन, फास्फोरस, जिंक, प्रोटीन, कैल्शियम, बी काम्प्लेक्स और कार्बोहाइट्रेड आदि महत्वपूर्ण तत्व पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त तिल में एंटीऑक्सीडेंट्स भी होते हैं जो कई बीमारियों के इलाज में मदद करते हैं। यह पाचन क्रिया को भी सही रखता है और शरीर को निरोगी बनाता है।

यही वैज्ञानिकता खिचड़ी के साथ भी जुड़ी हुई है, जब भी संक्रमण काल होता है तो तब गरिष्ठ पदार्थों का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। तब सुपाच्य एवं स्वास्थ्यवर्धक खिचड़ी का अविष्कार हुआ। जब मकर संक्रांति के काल में ठंड अधिक होती है तो जठराग्नि मंद पड़ जाती है, जिससे गरिष्ठ भोजन आसानी से पचाया नहीं जा सकता है। ऐसे समय में खिचड़ी सुपाच्य होने के साथ पूर्ण रुप से शरीर को ऊर्जा भी प्रदान करती है।

इनके साथ पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं, सूर्य देव की दो पत्नियां थी छाया और संज्ञा। शनि देव छाया के पुत्र थे, जबकि यमराज संज्ञा के पुत्र थे। एक दिन सूर्य देव ने छाया को संज्ञा के पुत्र यमराज के साथ भेदभाव करते हुए देखा और क्रोधित होकर छाया व शनि को स्वयं से अलग कर दिया। जिसके कारण शनि और छाया ने रूष्ट होकर सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया।

अपने पिता को कष्ट में देखकर यमराज ने कठोर तप किया और सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवा दिया लेकिन सूर्य देव ने क्रोध में शनि महाराज के घर माने जाने वाले कुंभ को जला दिया। इससे शनि और उनकी माता को कष्ट भोगना पड़ा। तब यमराज ने अपने पिता सूर्यदेव से आग्रह किया कि वह शनि महाराज को माफ कर दें।

जिसके बाद सूर्य देव शनि के घर कुंभ गए। उस समय सब कुछ जला हुआ था, बस शनिदेव के पास तिल ही शेष थे। इसलिए उन्होंने तिल से सूर्य देव की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनिदेव को आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन काले तिल से सूर्य की पूजा करेगा, उसके सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाएंगे। इसलिए इस दिन न सिर्फ तिल से सूर्यदेव की पूजा की जाती है, बल्कि किसी न किसी रूप में उसे खाया भी जाता है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। तभी कहावत है – बाकी तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार, अर्थात गंगासागर में स्नान दान पर्व सिर्फ़ मकर संक्रांति के दिन ही होता है।

भारत में छ: ॠतुएं होती हैं तथा इन्हीं ॠतुओं के अनुसार ही प्रकृति व्यवहार करती है, जिसका जीव जगत पर प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। पश्चिमी देशों में इतने प्रकार ॠतुएं नहीं होती हैं, इसलिए उनका ध्येय सिर्फ़ पेट भरने का ही होता है तथा उन्हें पथ्य कुपथ्य का भी ज्ञान नहीं है। प्रकृति के अनुसार स्वास्थ्यवर्धक जीवन जीने का विज्ञान सिर्फ़ भारत के पास ही है, किसी अन्य के पास नहीं। हमें अपनी परम्पराओं को अक्षुण्ण रखना चाहिए।

आलेख  

ललित शर्मा इण्डोलॉजिस्ट रायपुर, छत्तीसगढ़

About nohukum123

Check Also

“सनातन में नागों की उपासना का वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और जनजातीय वृतांत”

शुक्ल पक्ष, पंचमी विक्रम संवत् 2081 तद्नुसार 9 अगस्त 2024 को नागपंचमी पर सादर समर्पित …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *