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छत्तीसगढ़ के भरतपुर तहसील की शैलोत्कीर्ण गुफ़ाएं

छत्तीसगढ़ के उत्तर पश्चिम सीमांत भाग में स्थित कोरिया जिले का भरतपुर तहसील प्राकृतिक सौदंर्य, पुरातत्वीय धरोहर एवं जनजातीय/सांस्कृतिक विविधताओं से परिपूर्ण भू-भाग है। जन मानस में यह भू-भाग राम के वनगमन मार्ग तथा महाभारत कालीन दंतकथाओं से जुड़ा हुआ है। नवीन सर्वेक्षण से इस क्षेत्र से प्रागैतिहासिक काल के पाषाण उपकरण प्रकाश में आए हैं।

इसके अतिरिक्त शैलाश्रयों की विस्तृत श्रृंखला भी ज्ञात हुए हैं जिनमे से कुछ चित्रित भी हैं। ज्ञात पाषाण उपकरण तथा शैलचित्रों से ज्ञात होता है कि पाषाण युग में यहां आदिमानव संचरण करते थे। इस अंचल का प्राकृतिक भूगोल आदि मानवों के संचरण के लिए उपयुक्त स्थल रहा है। सोन नदी के प्रवाह के विस्तृत क्षेत्र में पल्लवित आदि मानवों की संस्कृति से लेकर निरंतर ऐतिहासिक युग तक यह अंचल सांस्कृतिक समन्वय से प्रभावित होता रहा है।

ऐतिहासिक काल में यह भू-भाग त्रिपुरी के कलचुरियों के द्वारा शासित रहा है। रियासत काल में भरतपुर ’चांगभखार’ के नाम से जाना जाता था। दुर्गम वन तथा विभिन्न प्रकार के वन्य पशुओं के लिए यह प्रख्यात था। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात् नवीन जिलों के पुनर्गठन के फलस्वरूप सरगुजा जिले का एक भाग (उत्तरी पश्चिम भाग कोरिया जिले के रूप में आकारित हुआ है। विस्तृत सर्वेक्षण तथा अन्वेषण से इस क्षेत्र के अज्ञात पुरास्थल तथा धरोहर क्रमशः प्रकाश में आ रहे हैं जिससे छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास की रूपरेखा और सांस्कृतिक विरासत के विविध तथ्यों पर नवीन प्रकाश पड़ने के साथ साथ ऐतिहासिक पर्यटन के ये स्थल चिन्हित हो रहे हैं।

भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं को गुहा में भी निवास करने की आज्ञा दी थी। गुहा के लिये संस्कृत शब्द लयनम् (प्राकृत लेण) विश्राम गृह या आराम के लिए प्र्रयुक्त होता रहा। पुरातत्व प्रमाणों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि लयनम् पर्वत खोदकर तैयार किये जाते , जिनमें भिक्षु रहा करते थे। संभवतः मौर्य सम्राट अशोक के शासन काल में भिक्षुओं के निवास स्थान पर बल नहीं दिया जाता था और उन्हे भ्रमण करते रहने का आदेश रहा हांगा । इसी कारण अशोक ने किसी प्रकार की बौद्ध गुफा का निर्माण नहीं किया ।1

हरचौका की शैलोत्कीर्ण गुफ़ा

शुंग काल में बौद्ध कला की उत्तरोत्तर बृद्धि तथा विकास होता गया। भारतवर्ष के पूर्वी भाग (उड़ीसा) तथा पश्चिमी भाग में अनेक गुफायें खोदी गईं जो साधुओं के लिये निवास स्थान हेतु प्रयुक्त हैं। बौद्ध मत में भिक्षु समूह तथा सामूहिक प्रार्थना को ध्यान में रखकर गुहा निर्माण किया जाता था। उस समय गुफाओं का दान एक धार्मिक कृत्य माना गया।2

पांचवी शताब्दी के बाद अधिकतर बौद्ध विहार मैदानों में बनने लगे। पर्वतों को काटकर दोनों प्रकार की गुफायें तैयार की जाती पर दोनों में मूलतः अन्तर था । पर्वत की तलहटी में सर्वप्रंथम बरामदा तैयार किया जाता। उसमें एक प्रवेश मार्ग होता जिससे होकर आंगन में पहुंचते हैं। आंगन के चारों ओर बरामदा तथा कमरे रहते हैं।3

समरबहादुर सिंह द्वारा लिखित पुस्तक से प्राप्त जानकारी के अनुसार चांगभखार तहसील में घघरा ग्राम के पास एक प्राचीन गुफा की जानकारी थी जिसे सीतामढ़ी कहते हैं। मूर्ति के चारों तरफ परिक्रमा करने के लिये जगह है। शिवरात्रि में यहां पर दर्शनार्थी प्रतिवर्ष पूजा करने आते हैं। इसके अलावा ग्राम छतौड़ा और कंजिया में भी सीतामढ़ी होने की जानकारी दी गई है।4

ग्राम हरचौका के किनारे की चट्टान काटकर गुफा बनाने का उललेख है। इन गुफाओं में कई देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। गुफा के अन्दर छोटी-छोटी कई कोठरियां हैं जिनके अन्दर शिवलिंग की मूर्तियां प्रदर्शित होने की जानकारी दी गई हैं।5 ग्राम हरचौका में हीरालाल रायबहादुर ने एक अभिलेख होने की जानकारी दी है।6 जे.डी. बेगलर ने भी हरचोका की गुंफाओं के बारे में जानकारी दी है। उनके अनुसार मवई नदी के किनारे गुफा मंदिरों का निर्माण चट्ान काटकर बनवाया गया था। इनमें से कुछ स्तंभ कल्चुरी तथा कुछ चौहान राजवंश द्वारा बनाये जाने की जानकारी दी है। ये 12वीं शताब्दी के होने की जानकारी दी है।7

कोरिया जिला छत्तीसगढ़ का उत्तरी सीमान्त जिला है। बैकुंठपुर इस जिले का जिला मुख्यालय है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व तक यह स्वतंत्र रियासत था। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पूर्व तक यह सरगुजा जिले के अंतर्गत सम्मिलित था। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात् कोरिया, छत्तीसगढ़ राज्य का 17वें जिले के रूप में आकारित हुआ है। कोरिया जिला प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण जिला है। इसका अधिकांश भाग पर्वत श्रेणी तथा वनों से घिरा हुआ है। कोयला इस जिले की महत्वपूर्ण खनिज संपदा है तथा कोयला आधारित उद्योग यहां स्थापित है।

हरचौका की शैलोत्कीर्ण गुफ़ा में स्थापित शिवलिंग

कोरिया जिला का प्राचीन इतिहास आदि मानवों के संचरण, उनके द्वारा प्रयुक्त विविध प्रकार के पाषाण उपकरण तथा सर्वेक्षण से ज्ञात चित्रित शैलाश्रयों के माध्यम से प्रकाशित होता है। इस जिले के ग्राम लावाहोरी के समीप घोड़बंधा, ग्राम तिलोली के समीप गढ़ादेवी,, ग्राम भंवरखोह के समीप कोहबउर. आदि स्थलों में प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्र ज्ञात हुए हैं। इन शैलचित्रों का वर्ण्य विषय बनैले पशु तथा आखेट दृश्य हैं। ये शैलचित्र गहरे गेरुआ लाल रंग से निर्मित है। शैलाश्रयों से प्राप्त पशु आकृतियां ज्यामितिय रेखाओं के जटिल रेखांकनों से निर्मित हैं। ऐसा ज्ञात होता है कि इन चित्रों में पशुओं के बाह्य अंगों को चित्रित करने का प्रयास तत्कालीन गुफामानवों के द्वारा किया गया है। प्रागैतिहासिक काल में प्राकृतिक शैलाश्रय, सघन वनक्षेत्र और आखेट के लिए वन्य पशुओं की सुलभता, तथा प्राकृतिक जल स्रोतों की सहज उपलब्धता के कारण यह भूभाग आदिममानवों के द्वारा संचारित था। अन्चेषण से प्रागैतिहासिक काल के पाषाण उपकरण विशेषकर सूक्ष्म पाषाण उपकरण यहां नदी नालों के तटवर्ती भागों से प्राप्त होते हैं। कोरिया जिले में ऐतिहासिक काल के स्थापत्य अवशेष अपेक्षाकृत अत्यल्प हैं। इस जिले के ज्ञात स्मारक स्थलों में हरचौका के निकट भवर नदी के तट पर शैलाश्रय गुफा मंदिर एवं घघरा का प्राचीन मंदिर (लगभग 11वीं-12वीं ईसवी) में निर्मित ज्ञात हैं। इसी जिले के केसगंवा नामक स्थल से जैन तीर्थंकरों की स्वतंत्र प्रतिमाएं सर्वेक्षण से ज्ञात है। कला शैली के आधार पर उपरोक्त जैन प्रतिमाएं 8वीं-9वीं सदी ईसवी की प्रतीत होती हैं। ऐतिहासिक काल के अवशेषों के माध्यम से इस भू-भाग में त्रिपुरी के कलचुरि तथा बिहार के पालों की राजनैतिक तथा सांस्कृतिक प्रभाव का अनुमान होता है। त्रिपुरी के कलचुरियों के पश्चात् कोरिया जिले का इतिहास को जानने के लिए पुरावशेषों का अभाव है। केन्द्रीय प्रमुख सत्ता के अवसान के पश्चात् कोरिया में लगभग 13वीं-14वीं सदी ईसवी में क्षेत्रीय राजवंशों का प्रभाव गिरिदुर्गां के सामरिक संरचना में निर्मित द्वार, भवन एवं स्मारक अवशेषों से अनुमानित होता है। समेकित रूप से प्राचीन झारखंड अथवा रेंड, कन्हर एवं हसदो नदी से सिंचित भू-भाग लगभग 7वीं-8वीं सदी ईसवी में सिरपुर के सोमवंशी तत्पश्चात् 9वीं-10वीं सदी ईसवी से 12वीं सदी ईसवी तक त्रिपुरी के कलचुरि एवं बिहार के पाल नरेशों के शासन के अंतर्गत सम्मिलित रहा है।

कोरिया जिला 220 26, .अक्षांश उत्तर.से 230 55, तक.एवं 810 35, से 820 47, देशांश पूर्व के मध्य स्थित है। भरतपुर तहसील इस जिले का उत्तर/पूर्वी सीमांत भाग है। वर्ष 2014 में भरतपुर तहसील के ग्रामों का पुरातत्वीय सर्वेक्षण संपन्न किया गया है। इस सर्वेक्षण में मुख्य रूप से अंचल के नदी तटवर्ती क्षेत्रों के आसपास के स्थल एवं ग्रामों पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया गया था । सर्वेक्षण से ज्ञात महत्चपूर्ण शैलोत्कीर्ण गुफाओं की सम्यक जानकारी क्रमशः निम्नानुसार हैः-

  1. सीतामढ़ी, घघरा
  2. सीतामढ़ी, हरचौका
  3. सीतामढ़ी, कंजियाः
  4. सीतामढ़ी, छतोड़ा

सीतामढ़ी (घघरा)-

ग्राम घघरा में बस्ती के मध्य मुख्य सड़क के बायें तरफ एक पत्थर से बना मंदिर विद्यमान है। इसके अलावा ग्राम से उत्तर में लगभग दो किमी. दूरी पर रापां नदी के बायें तट पर पत्थर से बनी हुई गुफा विद्यमान है जिसे स्थानीय लोग सीतामढ़ी के नाम से जानते हैं। इसका विवरण निम्नानुसार हैं –

यह गुफा उत्तराभिमुखी है जो चट्टानों को काटकर बनाई गयी है। इस गुफा में बाहर तरफ एक लम्बा बरामदा है तथा बरामदे के अन्दर तरफ एक मध्य में कमरा है जिसके चारों तरफ प्रदक्षिणा पथ निर्मित है। बरामदे में बाहर तरफ दो स्तंभ हैं तथा कुल 3 प्रवेश द्वार हैं। मध्य का द्वार 103 सेमी. तथा पूर्वी किनारे का 87 से.मी. एवं पश्चिमी किनारे का 96 सेमी. चौड़ा है।

(1) कक्ष क्रंमांक एक-यह कक्ष गुफा के मध्य में उत्तराभिमुखी स्थित है। इसकी पूर्वी भित्ति की लम्बाई 166 सेमी, दक्षिणी भित्ति की लम्बाई 175 सेमी. तथा पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 166 सेमी. है। कक्ष के मध्य में शिवलिंग जलहरी सहित स्थापित हैं जिसकी प्रणालिका पूर्व दिशा की तरफ है। जलहरी का माप 58 ग.58 से.मी. हैं तथा प्रणालिका की लम्बाई 20 से.मी. है। इसमें नियमित पूजा होती है। जलहरी की ऊंचाई 47 से.मी. तथा शिवलिंग की ऊंचाई 13 से.मी. तथा व्यास 53 से. मी. है।

इस कक्ष के दोनों पार्श्व में एक चबूतरा निर्मित है। दायें तरफ निर्मित चबूतरे का आकार 260 ग. 88 से.मी. एवं बायें पार्श्व के चबूतरे का आकार 260 ग 113 सेमी है। इस चबूतरे के पश्चिमी किनारे पर दो प्रस्तर स्तंभ निर्मित है। कक्ष की सम्मुख भित्ति की लम्बाई 5.00 मीटर तथा पिछली भित्ति की बाहर से लम्बाई 5.00 मीटर है। कक्ष की पीछे तरफ एक 8.08 मीटर लम्बा तथा 74 सेमी चौड़ा गलियारा है जो कमरे का प्रदक्षिणा पथ का कार्य करता है। इस कमरे के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ एक अलिंद में मानवाकार द्वारपाल की स्थानक प्रतिमाएं भित्ति में उत्खचित हैं। प्रतिमाएं द्विभुजी हैं। दायें तरफ की प्रतिमा दायें हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में खड्ग धारण किए हुये प्रदर्शित है। बायीं ओर निर्मित प्रतिमा के दायें हाथ में त्रिशूल तथा बायां हाथ कमर में रखा है। प्रतिमा सादी तथा अलंकरण विहीन हैं। दायें तरफ के द्वारपाल का माप 164 ग 75 से.मी. तथा बाएं तरफ के द्वारपाल का माप 144 ग 72 से.मी. है।

(2) कक्ष क्रमांक दोः-यह कक्ष गुफा के अंदर निर्मित विशाल प्रदक्षिणा पथ के दायें तरफ पूर्व दिशा में निर्मित है जिसका मुख पश्चिमी दिशा की तरफ है। प्रवेश द्वार की ऊंचाई 130 से.मी. चौड़ाई 63 से.मी. तथा भित्ति की मोटाई 30 से.मी. है। कक्ष की दोनों पार्श्व भित्तियों की लम्बाई 182 से.मी. तथा पिछली भित्ति की लम्बाई 174 से.मी. है। इस कक्ष में दिन में भी अंधेरा बना रहता है।

हरचौका की गुफ़ा एवं नदी

(3) कक्ष कमांक तीनः- यह कक्ष गुफा के अंदर पश्चिमी किनारे तरफ लगभग मध्य में निर्मित की गई है। इसका मुख पूर्व दिशा की तरफ है। प्रवेश द्वार की ऊंचाई 114 से.मी. तथा चौड़ाई 64 से.मी. है एवं भित्ति की मोटाई 36 से.मी. है। कक्ष की दोनों पार्श्व भित्तियों की लम्बाई 175 से.मी. तथा पिछली भित्ति की लम्बाई 180 से.मी. है। प्रवेशद्वार के दोनों तरफ पूर्वी भित्ति की लम्बाई 57 से.मी. एक तरफ है। कक्ष के मध्य में शिवलिंग जलहरी सहित स्थापित है। प्रवेश द्वार के दोनों पार्श्व में एक-एक आदमकद द्वारपाल की प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। इन प्रतिमाओं की बनावट भी लगभग, मध्य में स्थित कक्ष क्रं. 1 के बाहर निर्मित प्रतिमाओं के सदृश्य है। दायें तरफ उत्कीर्ण प्रतिमा का माप 141 ग 70 से.मी. तथा बाएं तरफ उत्कीर्ण प्रतिमा का माप 143 ग 60 से.मी. है।

(4) कक्ष कमांक चारः- यह कक्ष गुफा के उत्तर-पूर्वी कोने में स्थित है जो गुफा के बरामदे से संलग्न है। इसकी छत विनष्ट स्थिति में है। इस कक्ष के दायें पार्श्व से गुफा के भीतर से पानी निकलने की नाली चट्टान को काटकर बनायी गयी है। बरामदे के उत्तर-पूर्वी कोने में एक कमरा है जिसकी छत नष्ट होने से यह खुला है। इसका प्रवेश द्वार 52 से.मी. चौड़ा है। इसकी पिछली भित्ति 92 से.मी. लम्बी, पूर्वी भित्ति 97 से.मी. तथा पश्चिमी भित्ति 77 से.मी. लम्बी है। इस कक्ष के मध्य में कोई भी प्रतिमा नहीं है। इसके पीछे भित्ति के किनारे से नदी में जाने हेतु आधुनिक समय में सीढ़ियां निर्मित की गई हैं। बरामदे का आकार 7.47 मीटर लम्बा पूर्व-पश्चिम में एवं 5.60 मीटर चौड़ा उत्तर-दक्षिण में है। इस सम्पूर्ण बरामदे के पूर्वी भित्ति में एक पश्चिमाभिमुखी कमरा निर्मित है तथा पश्चिमी भित्ति में एक कमरा पूर्वाभिमुखी एवं मध्य में एक कमरा है। मध्य के कमरे का मुख उत्तर दिशा की तरफ है।

इस गुफा का निर्माण काल 10-11 वीं शताब्दी ई. संभावित है। गुफा के मध्य में स्थित कक्ष के सामने बरामदे में अंदर की पंक्ति में कुल 3 स्तंभ खडे़ हैं तथा दोनों पार्श्व में एक-एक भित्ति स्तंभ निर्मित किए गए हैं। कोरिया जिले में निर्मित गुफाओं में से यह पूर्णतः सुरक्षित हैं तथा मंदिर की संज्ञा दी जा सकती है। स्थानीय ग्रामवासियों द्वारा यहॉं पर विशेष अवसरों पर पूजा अर्चना की जाती है तथा सामने से रॉंपा नदी प्रवाहित होने से कारण यहॉं पर दर्शनार्थियों को विशेष सुविधा होती है। सुरम्य जंगल होने से इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। इस गुफा का संरक्षण पुरातत्व विभाग द्वारा कराया जाकर इसकी सुरक्षा के उपाय किया जाना आवश्यक है।

हरचौकाः-

ग्राम के उत्तर दिशा में मवई नदी के बायें तट पर प्रस्तर निर्मित चट्टानों के मध्य छोटे-छोटे कमरों से युक्त गुफाएं बनी हैं। ये गुफाऐं कुछ पूर्व दिशा की तरफ तथा कुछ उत्तर दिशा की तरफ हैं। पूर्वाभिमुखी गुफाओं को विस्तृत विवरण निम्नानुसार हैं –

पूर्व दिशा की तरफ निर्मित गुफाओं के लगभग मध्य में प्रवेश करने के लिए सीढ़ीदार रास्ता निर्मित किया गया है। सीढ़ी से उतरने के बाद एक लम्बा बरामदा है जिसकी दक्षिण में लम्बाई 7.33 मीटर तथा चौड़ाई 3.64 मीटर है। बरामदे के मध्य में दो प्रस्तर के स्तंभ हैं जो छत का भार थामे हैं। बरामदे का पूर्वी किनारा खण्डित है जिसकी छत टूट जाने से यह खुला है।

इस बरामदे से संलग्न कुल 5 कमरे निर्मित हैं जिनमें से एक दक्षिण दिशा में तथा तीन कमरे पश्चिम में एवं एक कमरा उत्तर में हैं। इनका विवरण अलग निम्नानुसार है :-

(1) कक्ष कमांक एकः- यह कक्ष उत्तराभिमुखी हैं जिसका प्रवेशद्वार 80 से.मी. चौड़ा है। इस कक्ष की ऊपरी छत नष्ट हो चुकी है जिससे ऊपरी भाग खुली स्थिति में हैं। इस कमरे की पिछली भित्ति की लम्बाई 208 से.मी., पूर्वी भित्ति 165 से.मी. तथा पश्चिमी भित्ति 160 से.मी. है। उत्तरी भित्ति की लम्बाई प्रवेश द्वार के दोनों तरफ 74-74 से.मी. है। कक्ष के मध्य में एक प्रस्तर निर्मित जलहरी शिवलिंग सहित स्थापित है। जलहरी आयताकार है जिसकी प्रणालिका पूर्व दिशा की तरफ है। कमरे में प्रवेश करने के लिए लगभग 30 से.मी. ऊंची तथा 36 से.मी. चौड़ी भित्ति निर्मित है। शिवलिंग की ऊंचाई 14 से.मी., मोटाई 50 से.मी. तथा जलहरी की ऊंचाई 48 से.मी. है।

(2) कक्ष कमांक दोः-यह कक्ष पश्चिम दिशा का दक्षिणी किनारे का है जिसका मुख पूर्व दिशा की तरफ है। इस कक्ष की दक्षिणी तथा उत्तरी भित्ति की लम्बाई 133 से.मी. तथा पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 180 से.मी हैं। कक्ष के मध्य में शिवलिंग जलहरी सहित स्थापित हैं। जलहरी का माप 72ग72 से.मी. है तथा इसकी प्रणालिका उत्तर दिशा की तरफ है जिसकी लम्बाई 28 से.मी. तथा चौड़ाई 21 से.मी. है। इस कमरे के प्रवेशद्वार की चौड़ाई 65 से.मी. तथा भित्ति की मोटाई 40 से.मी. है। कक्ष में स्थापित शिवलिंग की ऊंचाई 15 से.मी., व्यास 49 से.मी. तथा जलहरी की ऊंचाई 44 से.मी. है। कक्ष क्रं. दो एवं तीन के प्रवेशद्वार के मध्य 155 से.मी. का अन्तर है।

(3) कक्ष कमांक तीन :- यह कक्ष पश्चिम दिशा के मध्य में स्थित है जो पूर्वाभिमुखी है। इस कक्ष की दक्षिणी भित्ति की लम्बाई 155 से.मी. पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 174 से.मी. तथा उत्तरी भित्ति की लम्बाई 134 से.मी. है। पूर्वी भित्ति की लम्बाई प्रवेश द्वार के दायें तरफ 57 से.मी. तथा बाएं तरफ 51 से.मी. है। कक्ष के मध्य में शिवलिंग जलहरी सहित स्थापित है। जलहरी का माप 63 ग 63 से.मी. तथा ऊंचाई 44 सें.मी. है। शिवलिंग की ऊंचाई 15 से..मी. तथा व्यास 54 से.मी. है। जलहरी की प्रणालिका उत्तर दिशा की तरफ है जिसकी लम्बाई 24 स.ेमी. तथा मोटाई 20 से.मी. है।

(4) कक्ष कमांक चारः-यह कक्ष पश्चिमी पंक्ति में सबसे उत्तरी किनारे पर स्थित है जो पूर्वाभिमुखी है। इस कक्ष की दक्षिणी भित्ति की लम्बाई 154 से.मी. पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 190 से.मी. तथा उत्तरी भित्ति की लम्बाई 170 से.मी. है। पूर्वी भित्ति की लम्बाई प्रवेश द्वार के दायें तरफ 50 से.मी. तथा बाएं तरफ 46 स.ेमी. है। कक्ष के प्रवेश द्वार की चौड़ाई 66 से.मी. तथा भित्ति की मोटाई 36 से.मी. है। कक्ष के मध्य में शिवलिंग जलहरी सहित स्थापित हैं। जलहरी का माप 69.ग 68 स.ेमी. तथा ऊंचाई 42 से.मी. है। शिवलिंग की ऊंचाई 20 से.मी तथा व्यास 57 से.मी हैं। कक्ष क्रं. 3 एवं 4 के प्रवेशद्वार के मध्य 209 से.मी. का अन्तर है। इस कक्ष के उत्तरी भित्ति के किनारे मध्य में एक गड्ढा है जो पूजा का जल एकत्रित करने हेतु निर्मित किया गया होगा।

(5) कक्ष क्रमांक पॉचः-यह कक्ष बरामदे से संलग्न उत्तर दिशा में निर्मित है। इसका मुख दक्षिण दिशा की तरफ है। इसकी पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 157 से.मी. उत्तरी भित्ति की लम्बाई 180 से.मी. तथा पूर्वी भित्ति की लम्बाई 143 सें.मी. है। दक्षिणी भित्ति की लम्बाई प्रवेश द्वार के दायें तथा बायें तरफ 53 से.मी है। इस कक्ष का प्रवेश द्वार 70 से.मी. चौड़ा तथा भित्ति की मोटाई 25 से.मी. है। कक्ष के मध्य में शिवलिंग जलहरी सहित स्थापित हैं। जलहरी की ऊंचाई 37 से.मी. तथा माप 63 ग .63 से.मी. है। शिवलिंग की ऊंचाई 16 से.मी. तथा व्यास 50 से.मी. है।

कक्ष क्रं. 5 के पूर्व में एक आयताकार चबूतरा है जिसका माप उत्तर दक्षिण में 340 से.मी. तथा पूर्व-पश्चिम में पीछे तरफ 255 से.मी. तथा दक्षिण दिशा की तरफ 284 से.मी. है। इसके मध्य में पश्चिमी भित्ति के किनारे एक प्रस्तर की चौकी निर्मित हैं जिसका माप 50. ग 50 से.मी. है। इस चबूतरे का पूर्वी किनारा 312 से.मी. लम्बा है।

इस बरामदे से उत्तर दिशा की तरफ पत्थर काटकर एक गलियारा बनाया गया है जिसकी औसत चौड़ाई 90 से.मी. है। बरामदे में प्रवेश के लिए. निर्मित सीढ़ी से लगभग 8.80 मीटर दूरी पर उत्तर दिशा में गलियारा के दायें तरफ दो कक्ष निर्मित हैं जिनकी पहचान कक्ष क्रं. 6 एवं कक्ष. क्रं. 7 किया गया है। इनका मुख पश्चिम दिशा की तरफ है। विवरण निम्नानुसार है-

घघरा की गुफ़ा

(6) कक्ष कमांक छः- यह आयताकार कक्ष पश्चिमाभिमुखी है। इसके प्रवेश द्वार की चौड़ाई 80 से.मी. है। कक्ष के दक्षिणी भित्ति की लम्बाई 120 से.मी. पूर्वी भित्ति की लम्बाई 173 से.मी. तथा उत्तरी भित्ति की लम्बाई 165 से.मी. है। जलहरी के मध्य में एक शिवलिंग स्थापित है जिसकी प्रणालिका उत्तर दिशा की तरफ है।

(7) कक्ष कमांक सातः- यह कक्ष भी आयताकार है जो पश्चिमाभिमुखी है। इसका प्रवेशद्वार 80 से.मी. चौड़ा है जिसकी भित्ति की मोटाई 24 से.मी. है। कक्ष की दक्षिणी तथा उत्तरी भित्ति 100 से.मी. एवं पूर्वी भित्ति 148 से..मी., तथा प्रवेश द्वार के दायें तरफ 22 से.मी., एवं बायें तरफ 66 से.मी. लम्बाई में है। कक्ष क्रं 6 एवं 7 की छत नष्टप्राय है जिससे दोनों कक्ष खुले हैं। इन दोनों कक्ष के सामने से पश्चिम की तरफ लगभग 4.60 मीटर की दूरी पर गलियारे से जुड़कर नदी में जल लेने के लिए बनाया गया होगा तथा इसी गलियारे के द्वारा पूर्वी दिशा में निर्मित कक्षों के पूजा का जल निकालकर नदी में प्रवाहित किया जाता रहा होगा।

उत्तर दिशा में निर्मित गुफाओं का विवरण निम्नानुसार हैः-

ग्राम हरचौका में मवई नदी के बायें तट पर निर्मित गुफाओं के पूर्व में कुल संख्या लगभग 10-12 रही होगी जो एक बरामदे से संलग्न थे। बरामदा वर्तमान में भग्नप्रायः है। पूर्व में कुल संख्या लगभग 10-12 रही होगी। जिसमें से वर्तमान में यहां लगभग 10 शेष हैं। बरामदे की पूर्व-पश्चिम में लम्बाई 12.35 मीटर तथा चौड़ाई 13.14 मीटर है। इस बरामदे में कुल 10 प्रस्तर चौकी हैं जिनके ऊपर स्तंभ स्थापित थे। वर्तमान में कुल 4 स्तंभ शेष हैं।

(1) कक्ष कमांक एकः-यह कक्ष उत्तरी बरामदे के पूर्वी किनारे पर स्थित है। इसका मुख पश्चिम दिशा की तरफ है। इसके प्रवेश द्वार की चौड़ाई 60 से.मी. तथा भित्ति की मोटाई 21 से.मी है। इस कक्ष की पिछली भित्ति 125 से.मी. लम्बी, दक्षिणी भित्ति 86 से.मी. तथा उत्तरी भित्ति 79 से.मी. है। पश्चिमी भित्ति प्रवेश द्वार के दायें तरफ 20 से.मी. तथा बाएं तरफ 30 से.मी. लम्बी है। कक्ष के पिछली भित्ति के सहारे एक प्रस्तर की जलहरी स्थापित है जिसमें प्रणालिका उत्तर दिशा की तरफ है। जलहरी का माप 56 ग 52 से.मी. है। जलहरी में एक आयताकर गड्ढा है जिसके ऊपर सूर्य प्रतिमा स्थापित है। इसका माप 73. ग 34 ग .12 से.मी. हैं।

(2) कक्ष कमांक दोः-बरामदे के दक्षिणी किनारे पर कुल 5 कक्ष एक पंक्ति में निर्मित हैं। यह कक्ष दक्षिण-पूर्व के कोने में स्थित पहला कक्ष है जो उत्तराभिमुखी है। इस कक्ष का प्रवेशद्वार 87 से.मी. चौड़ा है तथा इसकी भित्तियां 39 से.मी. मोटी है। गर्भगृह की पूर्वी तथा दक्षिणी भित्ति की लम्बाई 180 से.मी. तथा पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 178 से.मी. है। गर्भगृह के मध्य में एक प्रस्तर निर्मित जलहरी स्थापित हैं जिसकी प्रणालिका पूर्व दिशा की तरफ है। जलहरी का माप 61 .ग 58 से.मी. तथा ऊंचाई 56 से.मी. है। जलहरी के मध्य में शिवलिंग स्थापित हैं जिसकी लम्बाई 14 से.मी. तथा व्यास 58 से.मी. है।

(3) कक्ष कमांक तीनः-बरामदे के दक्षिणी किनारे पर निर्मित यह दूसरा कक्ष है। इसका मुख भी उत्तर दिशा की तरफ है। इस कक्ष का प्रवेशद्वार 66 से.मी. चौड़ा है तथा इसकी भित्तियां 27 से.मी. मोटी हैं। कक्ष की पूर्वी भित्ति की लम्बाई 153 से.मी., दक्षिणी भित्ति की लम्बाई 182 से.मी. तथा पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 170 से.मी. है। गर्भगृह के मध्य में एक प्रस्तर निर्मित जलहरी स्थापित है जिसका माप 73 ग.71 से.मी. है तथा ऊंचाई 17 से.मी. है। जलहरी के मध्य स्थापित शिवलिंग की ऊंचाई 33 से.मी. तथा व्यास 59 से.मी. है।

(4) कक्ष कमांक चारः-बरामदे के दक्षिणी किनारे पर निर्मित यह तीसरा कक्ष है। यह भी उत्तराभिमुखी है। इस कक्ष का प्रवेशद्वार 70 से.मी. चौड़ा है तथा इसकी भित्तियॉं 39 से.मी. मोटी है। कक्ष के पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी भित्ति की लम्बाई 180 से.मी. है। गर्भगृह के मध्य में एक प्रस्तर निर्मित जलहरी स्थापित है जिसका माप 72 ग 68 से.मी. तथा ऊंचाई 25 से.मी. है। जलहरी के मध्य में शिवलिंग स्थापित है। इसकी ऊंचाई 17 से.मीं. तथा व्यास 58 से.मीं. है।

(5) कक्ष कमांक पॉचः-बरामदे के दक्षिणी किनारे पर निर्मित यह चौथा कक्ष है जो उत्तराभिमुखी है। इस कक्ष का प्रवेश द्वार 63 से.मी. चौड़ा है तथा इसकी भित्तियां 44 से.मी. मोटी है। कक्ष की पूर्वी भित्ति 184 से.मी., दक्षिणी भित्ति 180 से.मी. तथा पश्चिमी भित्ति 178 से.मी. है। कक्ष के मध्य में केवल जलहरी स्थापित है जिसका माप 69 ग 66 से.मी. तथा ऊंचाई 29 से.मी. है। इसमें एक द्विभुजी प्रतिमा स्थापित है जिसका माप 65 ग 30 ग 18 से.मी. है।

(6) कक्ष कमांक छः-यह कक्ष बरामदे के दक्षिणी तथा पश्चिमी कोने में निर्मित है। इसके पूर्वी भित्ति की लम्बाई 110 से.मी., दक्षिणी भित्ति की लम्बाई 165 से.मी. तथा पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 250 से.मी. है। इस कक्ष का ऊपरी छत भाग खण्डित है जिससे ऊपरी हिस्से का पानी इसकी भित्ति से होकर अंदर बहता है। कक्ष की पूर्वी भित्ति के किनारे एक प्रस्तर का पंचदेवीपट्ट निर्मित है जिसका माप 72 ग.105 ग 15 से.मी. है। इसी कक्ष में एक और प्रतिमा रखी है जो सिंहवाहिनी दुर्गा है। इसका माप 110ग 46 ग.16 से.मी. है। एक द्विभुजी देवी भी रखी है जिसका माप 73 ग 35 ग 13 से.मी. है। यह भी सिंहवाहिनी है। इसके अलावा एक विष्णु की चतुर्भुजी प्रतिमा स्थापित हैं जिसका माप 80. ग 42 ग 15 से.मी. है। ये सभी प्रतिमाएं पूजित स्थिति में होने से क्षरित हैं।

(7) कक्ष कमांक सातः-यह कक्ष बरामदे के पश्चिमी किनारे का दक्षिण तरफ से पहला कक्ष है जो छत से ढ़का है। इसका प्रवेशद्वार पूर्वाभिमुखी है। इसकी आंतरिक भित्तियां दक्षिण तरफ की 180 से.मी., पश्चिम तरफ की 187 से.मी. तथा उत्तर दिशा की 170 से.मी. है। इस कक्ष का प्रवेश द्वार 58 से.मी. है तथा भित्ति की मोटाई 43 से.मी. है। कक्ष के मध्य में एक प्रस्तर निर्मित जलहरी स्थापित है। इसका माप 54 ग 53 तथा ऊंचाई 39 से.मी. है। जलहरी के मध्य में शिवलिंग स्थापित हैं। शिवलिंग की ऊंचाई 13 से.मी. तथा व्यास 57 से.मी. है।

(8) कक्ष कमांक आठः-यह कक्ष बरामदे के पश्चिमी किनारे का दक्षिण से दूसरा कक्ष है। इसका प्रवेशद्वार पूर्वाभिमुखी है। प्रवेशद्वार 62 से.मी. चौड़ा है तथा भित्तियों की मोटाई 27 से.मी. है। इस कक्ष की दक्षिणी भित्ति 102 से.मी., पश्चिमी भित्ति 144 से.मी. तथा उत्तरी भित्ति 110 से.मी. है। कक्ष की पिछली भित्ति के सहारे एक प्रस्तर चौकी स्थापित है जिसका माप 63 ग 59 से.मी. तथा ऊंचाई 16 से.मी. है। इसकी प्रणालिका उत्तर दिशा की तरफ है। जलहरी में उमामहेश्वर की प्रस्तर प्रतिमा स्थापित है जिसका माप 64 ग 40 ग 18 से.मी. है। इस कक्ष का प्रवेशद्वार तथा कमरे की छत नष्ट प्राय होने से खुला हुआ है।

(9) कक्ष कमांक नौः- यह कक्ष बरामदे के बाहर पश्चिमी दिशा की ओर तीसरे नम्बर का है। इसकी छत नष्टप्राय है। इसका प्रवेशद्वार पूर्व दिशा की तरफ हैं जिसकी चौड़ाई 59 से.मी..है। कक्ष की दक्षिणी भित्ति की लम्बाई 135 स.ेमी. पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 146 से.मी. तथा उत्तरी भित्ति 135 से.मी. लम्बी है। इस कक्ष में वर्तमान में कोई भी पूजित प्रतिमा नहीं है।

(10) कक्ष कमांक दसः-यह कक्ष पश्चिम तथा उत्तर दिशा के कोने का खुला हुआ कक्ष है। वर्तमान में इसकी छत नष्ट प्राय है। इसकी दक्षिणी भित्ति 233 से.मी. लम्बी तथा पश्चिमी भित्ति 307 से.मी. एवं उत्तरी भित्ति 233 स.ेमी. लम्बी हैं। इसके अंदर भी कोई पूजित प्रतिमा नहीं है। इस कक्ष के पूर्वी दिशा तरफ भी कुछ कमरे निर्मित रहे होगें लेकिन वर्तमान में नष्ट प्राय है।

बरामदे में दो पंक्ति में स्तंभ निर्मित थे जिसमें से अंदर की पंक्ति में पांच तथा बाहर की पंक्ति में भी पांच स्तंभ थे जिसमें से मात्र 3 स्तंभ पूर्वी किनारे पर तथा एक स्तंभ पश्चिमी किनारे पर विद्यमान है शेष नष्ट प्राय है। वर्तमान में इस बरामदे की छत बाढ़ के कारण तथा वर्षा ऋृतु में पानी के बहाव के कारण नष्ट हो चुकी है। इस बरामदे से संलग्न कक्षों में स्थापित शिवलिंग तथा प्रस्तर प्रतिमाओं की स्थानीय लोग नियमित पूजा करते हैं।

बरामदे के सामने उत्तर दिशा की तरफ मवई नदी की तरफ 390 सेंटीमीटर चौड़ा खाली स्थान है। जिसमें पूर्व दिशा की तरफ निर्मित कक्षों का रास्ता इसी में खुलता है जिससे दर्शक नदीं के बायें तरफ से बाहर निकलते रहे होगें । इस चौडे़ स्थान तथा रास्ते के पूर्व दिशा में भी एक कक्ष निर्मित है। इसका मुख पश्चिम दिशा की तरफ है जिसकी भित्ति 172 से.मी. लम्बी तथा पूर्वी भित्ति की चौड़ाई 184 से.मी. है। इस कक्ष के मध्य में शिवलिंग जलहरी सहित स्थापित है। जिसकी प्रणलिका उत्तर दिशा की तरफ है। इस कक्ष के पीछे तथा दक्षिण में प्रस्तर की चौड़ी पट्टी निर्मित है। दक्षिण दिशा की पट्टी में बाहर तरफ एक गणेश की प्रतिमा उत्कीर्ण है।

कोरिया जिले में अभी तक ज्ञात सभी गुफाओं में से इसका आकार तथा क्षेत्रफल एवं कक्षों की संख्या सर्वाधिक है। वर्तमान में इस सभी कक्षों के चारों तरफ नदी के पानी से बहाव को रोकने के लिए स्थानीय लोगों द्वारा एक ऊंची पत्थर की दीवाल बना दी गई है जिसका प्रवेशद्वार दक्षिण दिशा की तरफ है तथा घेरे के अन्दर का पानी निकलने के लिए नदी की तरफ एक छिद्र निर्मित है। इन गुफाओं का निर्माणकाल लगभग 11-12 वीं शताब्दी ई. संभावित है। यह गुफा मवई नदी के तट पर स्थित होने से छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले का अंतिम ग्राम है क्योंकि मवई नदी के दायें तरफ का हिस्सा सीधी जिले के अन्तर्गत आता है जो अब मध्यप्रदेश की सीमा में है।

इस नदी के बाढ़ से सुरक्षा के लिए दीवार से घेर कर बंद कर दिया गया है। यहां के अधिकांश गुफाओं की छत ढह गई हैं तथा कुछ क्षतिग्रस्त स्थिति में हैं। इस गुफा से सम्बंधित कोई भी अभिलेख वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं। स्थापत्य संरचना के आधार पर इसका निर्माण काल लगभग घघरा में निर्मित गुफा के समकालीन प्रतीत होता है।

कंजियाः-

यह ग्राम जनकपुर से पश्चिम में शहडोल रोड पर लगभग 40 कि.मी. दूरी पर ओदारी नदी के किनारे दायें तट पर तथा मोरइली नाले के दायें तरफ एक पहाड़ी चट्टान के ऊपर सीतामढ़ी नामक गुफा निर्मित है। जनकपुर से शहडोल रोड पर लगभग 25 कि.मी.की दूरी पर चॉंटी से बाएं तरफ लगभग 7 कि.मी. की दूरी में स्थित है। ग्राम कंजिया भरतपुर तहसील के पश्चिमी किनारे पर 230 39’ अक्षांश उत्तर, 810 40’ देशांश पूर्व में शहडोल जिले की सीमा से लगा हुआ अंतिम ग्राम है। इस ग्राम के पश्चिम में ओदारी नदी लगभग 3 कि.मी. दूरी पर बहती है जो तहसील, जिला तथा राज्य की सीमा बनाती है। नदी के उस पार मध्यप्रदेश का शहडोल जिला है।

ग्राम कंजिया से लगभग 2 कि.मी. दूरी पर दक्षिण-पूर्व में पहाड़ी की तलहटी में चट्टानों को काटकर बनायी गई गुफा है। इस गुफा का मुख पश्चिम दिशा की तरफ है। इस गुफा में दो बरामदे निर्मित थे जिसमें से वर्तमान में बाहर की बरामदे की छत टूटकर नष्ट हो चुकी है। अंदर के बरामदे में एक पंक्ति में चार स्तंभ निर्मित हैं जो अष्टकोणीय है। इसके ऊपर छत विद्यमान है लेकिन उत्तरी किनारे पर टूटी है। इस गुफा में कुल 3 कमरे निर्मित हैं जिनका विवरण निम्नानुसार है।

(1) कक्ष कमांक एक :- यह कमरा गुफा के अंदर वाले बरामदे के उत्तरी-पूर्वी केने में स्थित है। इसका मुख पश्चिम दिशा की तरफ है। प्रवेश द्वार की चौड़ाई 70 से.मी. तथा उंचाई 145 से.मी. है एवं भित्ति की मोटाई 37 से.मी है। कमरे की उत्तरी तथा पूर्वी भित्ति 190 से.मी. लम्बी एवं दक्षिणी भित्ति 185 से.मी लम्बी है। इस कमरे की फर्श से छत तक की ऊंचाई 170 से.मी. है। कमरे के मध्य में एक पत्थर की चौकी स्थापित है जिसका माप 62 ग 60 से.मी. है। इसके ऊपर शिवलिंग स्थापित है।

कंजिया की गुफ़ा

इस कक्ष के बायें तरफ भित्ति में दो अलिंद निर्मित हैं जिनमें से एक अलिंद अपेक्षाकृत बड़ा है तथा दूसरा छोटा है। छोटे अलिंद का माप 103 ग 57 से.मी. है। इसके निचले भाग में चौकी स्थापित हैं जिसका माप 37 ग 55 से.मी. है। इसके 50 से.मी. दूरी पर बायें तरफ एक बड़ा अलिंद है। दूसरे अलिंद की ऊंचाई 163 से.मी. तथा चौड़ाई 77 से.मी. है। इसमें चौकी निर्मित हैं जिसका माप 57 ग 88 से.मी. है। संभावना हैं कि इनमें कोई प्रतिमा स्थापित रही होगी लेकिन वर्तमान में दोनों गड़ढों में एक-एक पत्थर की चौकी रखी है।

(2) कक्ष कमांक दोः- यह कक्ष गुफा के आंतरिक बरामदे के दक्षिण दिशा की तरफ है जिसकी ऊपरी छत खण्डित है। इसका प्रवेश द्वार उत्तर दिशा की ओर है। प्रवेश द्वार की चौड़ाई 63 से.मी. तथा भित्ति की मोटाई 30 से.मी. है। इसकी पूर्वी भित्ति की लम्बाई 192 से.मी. दक्षिणी भित्ति की लम्बाई 187 से.मी. तथा पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 195 से.मी. है। इसकी पिछली भित्ति की भूतल से ऊंचाई 183 से.मी. है। कमरे के पश्चिमी किनारे पर एक वर्गाकार 47 ग 47 से.मी. आकार का गड्ढा है। संभवतः इस कमरे के मध्य में भी जलहरी में प्रतिमा (शिवलिंग) स्थापित रहा होगा जिसका जल बहकर इस गड्ढे में एकत्रित होता रहा होगा। वर्तमान में इसमें एक लोहे का त्रिशूल गड़ा हुआ है।

(3) कक्ष कमांक तीनः- यह कक्ष गुफा के बाहर बाहरी बरामदे के बाहर बाएं तरफ अर्थात दक्षिण दिशा की तरफ निर्मित की गई है। इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें दो कमरे एक के बाद एक क्रमशः संलग्न निर्मित हैंं। बाहरी कक्ष का प्रवेश द्वार 59 से.मी. चौड़ा तथा भित्ति की मोटाई 43 से.मी. है। इसकी पूर्वी भित्ति 180 से.मी. लम्बी तथा पश्चिमी भित्ति 182 से.मी. लम्बी है। इसके अंदर के कमरे का प्रवेशद्वार भी 59 से.मी. चौड़ा तथा इसकी भित्ति की मोटाई 40 से.मी. है। इसके अंदर की पूर्व दिशा की भित्तिं 176 से.मी. लम्बी, पिछली भित्ति 170 से.मी. तथा पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 184 से.मी. है। इस कक्ष के मध्य में एक पत्थर की जलहरी शिवलिंग सहित स्थापित है जिसमें पानी निकलने की प्रणालिका पश्चिम दिशा की तरफ है।

जलहरी का माप 50 ग 50 से.मी. वर्गाकार तथा ऊंचाई 29 से.मी. है। इस कक्ष की ऊपरी छत नष्ट हो चुकी है। भूतल से छत तक की कुल ऊंचाई 177 से.मी. है। इन दोनों कक्षों की छत नष्टप्राय है। बाहरी कक्ष के अंदर प्रवेशद्वार के समीप एक पत्थर की सीढ़ी निर्मित है जिसकी लम्बाई 77 से.मी. तथा चौड़ाई 25 से.मी. है।

इस कक्ष में प्रवेश द्वार के बाहर 385 से.मी. दूरी पर पश्चिम की तरफ चट्टान काटकर समतल किया गया है जो 225 से.मी. चौड़ा है। इसके मध्य में एक आयताकार पत्थर की चौकी निर्मित है जिसका माप 88 ग 74 से..मी. है। इसके सामने उत्तर दक्षिण लम्बाई में (6.00 मीटर ़ 225) त्र 8.25 मीटर लम्बा समतल रास्ता है जो गुफा के उत्तरी किनारे से बाहर होकर पीछे की तरफ पहाड़ी की ओर घूम गया है। इसकी चौडा़ई सामने की तरफ 108 से.मी. तथा उत्तर दिशा की तरफ निर्मित गलियारे की लम्बाई लगभग 10 मीटर है। यह गलियारा पीछे की अपेक्षा दक्षिण की तरफ 220 से.मी. लम्बा मुड़ गया हैं जिसकी चौड़ाई 76 से.मी. है। इसके ऊपर चट्टान है।

गुफा के अंदर के बरामदे में उत्तर दिशा की तरफ भी एक अलिंद है जिसकी ऊंचाई 84 से.मी. तथा चौड़ाई 67 से.मी. है। इसी प्रकार बाहरी बरामदे की उत्तरी भित्ति में भी दो अलिंद निर्मित हैं। अंदर की तरफ निर्मित अलिंद का माप 50 ग 20 से.मी. तथा बाहर की तरफ निर्मित अलिंद का माप 54 ग 20 से.मी. है। गुफा के अंदर तथा बाहरी बरामदे के दो भागों में एक भित्ति के द्वारा विभाजित किया गया है।

यह गुफा पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं तथा संरक्षण में लेकर विकास एवं अनुरक्षण कार्य अत्यावश्यक है। स्थापत्य कला की दृष्टि से इसका निर्माण 10-11 वीं शताब्दी ई. प्रतीत होता है। इस गुफा के सामने तथा आसपास के क्षेत्र में पाषाण कालीन सूक्ष्म उपकरण बहुतायत से प्राप्त हुये हैं।

कंजिया की गुफ़ा

ग्राम कंजिया में सीतामढ़ी के आसपास विविध आकार प्रकार के लघु पाषाण उपकरण अत्यधिक मात्रा में प्राप्त होते हैं। संभवतः इसी गुफा के आसपास आदिमानव लघु पाषाण उपकरणों का निर्माण करते रहे होंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि यहां सूक्ष्म पाषाण उपकरण निर्माण करने का कार्यशाला रहा होगा।

छतोड़ा :-

ग्राम छतोड़ा जनकपुर से कोटाडोल रोड पर लगभग 45 कि.मी. दूरी पर 230 46’ अक्षांश उत्तर तथा 820 09’ देशांश पूर्व ’में स्थित है। ग्राम छतोड़ा में बस्ती के पहले मुख्य सड़क मार्ग से बायें तरफ लगभग एक फर्लांग अंदर खेतों के मध्य से कच्चा रास्ता है। जहॉं पर रास्ते के दायें तरफ सघन वनों के किनारे में प्रस्तर निर्मित चट्टान है जो कि समतल भूमि पर स्थित है। चट्टान में पूर्व दिशा की तरफ चट्टानों को काटकर गुफा बनाया गया है जिसका विवरण निम्नानुसार हैं।ः-

छतौड़ा की गुफ़ा

गुफा के बाहर तरफ एक लम्बा बरामदा है जिसकी लम्बाई 6.00 मीटर है। तथा चौड़ाई 2.00 मीटर है। बरामदे में प्रवेश करने के लिए तीन प्रवेश द्वार का अनुमान होता है क्योंकि दो स्तम्भों के चिन्ह दिखाई पड़ते हैं तथा दोनों किनारे पर भित्ति के अवशेष हैं। तीनों प्रवेश द्वार की चौड़ाई लगभग 70 से.मी. है तथा इनके मध्य स्थित स्तम्भों की चौकी का माप 40 ग 40 से.मी. है। इसके ऊपर स्थापित स्तंभ खण्डित हैं। प्रवेश द्वार के दायीं ओर 3.10 मीटर तथा बायीं ओर 3.25 मीटर लम्बी भित्ति के अवशेष हैं। बरामदे में दोनों किनारे पर एक-एक चबूतरा है। दायें तरफ का चबूतरा 200 से.मी. तथा 165 से.मी. लम्बा है जबकि बायें तरफ का चबूतरा 185 से.मी. तथा 165 से.मी. लम्बा है। बरामदे की पिछली भित्ति की ऊंचाई 190 से.मी. है। वर्तमान में बरामदे की छत का हिस्सा टूटकर नष्ट हो गया है तथा दायें किनारे पर थोड़ा सा शेष है। इसकी धरातल का भाग गहराई में होने से वर्षा ऋृतु में पानी भर जाता है क्योंकि बाहर का मैदान इसकी सतह से ऊंचा है।

बरामदे के मध्य में एक प्रवेश द्वार पश्चिम की तरफ है। इसकी ऊंचाई 143 से.मी. तथा चौड़ाई 73 से.मी. है। प्रवेश द्वार के अंदर कुल 3 कमरें एक दूसरे से संलग्न निर्मित हैं जिनका प्रवेश द्वार अंदर की तरफ मध्य की भित्ति में है। मध्य के कक्ष का आकार आयताकार है जो पूर्व-पश्चिम में 327 से.मी. लम्बा तथा 175 से.मी. चौड़ा है। इस कक्ष के दोनों तरफ एक-एक कक्ष और निर्मित हैं जिनमें जाने के लिए मध्य की भित्ति में प्रवेश द्वार है। दक्षिणी प्रवेश द्वार का माप 138 से.मी. ऊंचा तथा 69 से.मी. चौड़ाई है। उत्तरी प्रवेश द्वार का माप 125 से.मी. ऊंचा तथा 74 से.मी. चौड़ा है तथा इसकी भित्ति की मोटाई 40 से.मी. है। मध्य के कक्ष की पिछली भित्ति 180 से.मी. चौड़ी है। इस भित्ति में एक युगल प्रतिमा उत्खचित हैं जिसका माप 44 ग 40 ग 10 से.मी. है। इस प्रतिमा में अलंकरण नहीं हैं।

दक्षिणी तरफ निर्मित कक्ष का आकार पूर्व-पश्चिम में 342 से.मी. लम्बा तथा 194 से.मी. चौड़ा है। इसकी दक्षिणी भित्ति की लम्बाई 340 से.मी., पूर्वी भित्ति की लम्बाई 180 से.मी. तथा पश्चिमी भित्ति की लम्बाई 170 से.मी. है। इसी प्रकार उत्तरी भित्ति प्रवेश द्वार के पश्चिम तरफ 138 स.ेमी. लम्बी तथा पूर्व तरफ 120 से.मी. लम्बी है। इस कक्ष की आंतरिक भित्तियों में किसी प्रकार का अलंकरण नहीं है।

उत्तरी कक्ष का आकार पूर्व-पश्चिम में 307 से.मी. तथा उत्तर दक्षिण में 193 से.मी है। इसकी उत्तरी भित्ति 293 से.मी. लम्बी, पश्चिमी भित्ति 180 से.मी. तथा पूर्वी भित्ति 190 से.मी है। इस कक्ष की दक्षिणी भित्ति जो कि मध्य कक्ष से संलग्न है। इसकी प्रवेश द्वार से पश्चिम तरफ 140 से.मी. लम्बी तथा पूर्व दिशा की तरफ 95 से.मी. लम्बी है जिसकी मोटाई 40 से.मी. है। अंदर के तीनों कमरों के ऊपर पत्थर की चट्टान सुरक्षित है।

स्थानीय ग्रामवासियों के अनुसार इस गुफा में यदा-कदा भालू रहते हैं तथा नवरात्रि पर्व में ग्रामीणों द्वारा कमरों के अन्दर जवारा बोया जाता है। स्थल के अवलोकन के आधार पर यह गुफा भी 11-12 वीं शताब्दी ई. में निर्मित प्रतीत होती है।

यह ग्राम भरतपुर से कोटाडोल रोड पर लगभग 40 किमी. दूरी पर घासीदास अभयारण्य के बाद कच्चे रास्ते पर स्थित है। यहाँ पर चट्टान को काटकर दो प्रस्तर स्तंभों के मध्य तीन प्रवेशद्वार युक्त गुफा का निर्माण किया गया था। इसमें बाहर तरफ एक लम्बा बरामदा है जिसके दोनों किनारे पर एक प्रस्तर का चबूतरा निर्मित है। इस बरामदे के मध्य में एक प्रवेश द्वार है जिसके अन्दर कमरा निर्मित है।

भरतपुर तथा समीपस्थ अन्य स्थल पर्यावरण तथा प्राकृतिक भौगोलिक संरचना शैलोत्कीर्ण गुफाओं की बहुलता की दृष्टि से उल्लेखनीय है। इन गुफाओं का निर्माण तकनीक अघ्ययन का विषय है। इस स्थल में विकसित शैलोत्कीर्ण गुफा निर्माण के पश्चात परवर्ती काल में छत्तीसगढ़ में इस परम्परा के उदाहरण नहीं मिलते हैं। प्राचीन दक्षिण कोसल में शैलोत्कीर्ण गुहा स्थापत्य की परम्परा के अंतिम ज्ञात उदाहरण भरतपुर क्षेत्र में कल्चुरियों के काल तक मिलते हैं। छत्तीसगढ़ में 11-12वीं शताब्दी के पश्चात शैलोत्कीर्ण गुहा स्थापत्य का अवसान हो जाता है।

स्रोत संदर्भ :-

  1. वासुदेव उपाध्याय, प्राचीन भारतीय स्तूप, गुंहा एवं मंदिर, बिहार हिन्दी ग्रंथ अकादमी पटना,प्रथम संस्करण , मई 1972, पृष्ठ 96.
  2. उपरिवत् , पृष्ठ 102.
  3. उपरिवत् , पृष्ठ 104.
  4. समर बहादुर सिंहदेव, सरगुजा का ऐतिहासिक पृष्ठ, द्वितीय संस्करण 2002, माह फरवरी, पृष्ठ 207.
  5. उपरिवत् ।
  6. हीरालाल रायबहादुर, इन्सक्रिप्संस द सेन्टल प्रोविन्सेस एण्ड बरार,, सेकण्ड एडीसन 1932, 1985, 313. हरचौका इन्सक्रिप्सन, पृष्ठ 188.
  7. जे.डी.बेगलर, ए. एस. आई रिपोर्ट, टूर्स इन द साउथ ईस्टर्न प्रोविन्सेस इन 1875 ंएण्ड 1875-76,, वाल्यूम 13, 1970, पृष्ठ 188.
डॉ. कामता प्रसाद वर्मा,
भूतपूर्व उप संचालक संचालनालय संस्कृति एवं पुरातत्व रायपुर (छ0ग0)

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