Home / सप्ताह की कविता / आओ हे घनश्याम

आओ हे घनश्याम

प्राण-पखेरु उड़ जाने पर,
क्या फिर दवा पिलाओगे ?
तोड़ प्रेम के कोमल धागे,
फिर क्या गाँठ लगाओगे ?

आओ हे घनश्याम हमारे,
पल-पल युग सा लगता है।
तुम्ही बताओ अपनों को भी,
कोई यूँ ही ठगता है।

शरणागत हम टेर लगाते,
फिर भी क्या ठुकराओगे ?
प्राण-पखेरु उड़ जाने पर,
क्या फिर दवा पिलाओगे ?

प्यासी धरती ,प्यासा अंबर,
अंबु नहीं क्यों बरस रहे।
मानव,पादप, जीव-जंतु सब,
बूँद बूँद को तरस रहे।
जलकर स्वाहा हो जाने पर,
फिर क्या आग बुझाओगे?
प्राण-पखेरु उड़ जाने पर,
क्या फिर दवा पिलाओगे ?

सूखी नदियाँ,कूप,ताल, नद,
हलधर की सूखी आशा।
हदय-पटल पर गहन अँधेरा,
फैली है घोर निराशा।
प्यासे ही मर जाएँगे तब,
फिर क्या नीर पिलाओगे?
प्राण-पखेरु उड़ जाने पर,
क्या फिर दवा पिलाओगे ?

सप्ताह के कवि

चोवा राम वर्मा ‘बादल’ हथबंद, छत्तीसगढ़

About hukum

Check Also

कैसा कलयुग आया

भिखारी छंद में एक भिखारी की याचना कैसा कलयुग आया, घड़ा पाप का भरता। धर्म …

One comment

  1. मनोज पाठक

    बहुत सुन्दर रचना👌