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नवरात्र की वैज्ञानिकता

ऋग्वेद के देवी सूक्त में मां आदिशक्ति स्वयं कहती हैं, ‘ अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां, अहं रूद्राय धनुरा तनोमि।’ अर्थात् मैं ही राष्ट्र को बांधने और ऐश्वर्य देने वाली शक्ति हूँ, और मैं ही रुद्र के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाती हूं। हमारे तत्वदर्शी ऋषि मनीषा का उपरोक्त प्रतिपादन वस्तुतः स्त्री शक्ति की अपरिमितता का प्रतीक है।

नारीशक्ति की सर्वोत्तम व्याख्या भारतीय पुराणैतिहासिक संदर्भों में प्राप्त होती है जो वैज्ञानिक चिंतन पर आधारित है। वर्ष 2018 के सर्वश्रेष्ठ शब्द के रूप में आक्सफोर्ड डिक्शनरी ने नारीशक्ति को चुनकर इस दिशा में और गंभीरता से सोचने के लिए प्रेरित किया है।

भारत में नवरात्र आराधना के प्रसंग में ऐं ह्रीं क्लीं के अंतर्गत ऐं वाग्बीज (ज्ञानशक्ति), क्लीं = कामराज (क्रिया शक्ति), ह्रीं मायाबीज (पदार्थ) के माध्यम से सृष्टि निर्माण, स्थिति और ध्वंस की विज्ञान सम्मत व्याख्या मिलती है।

इनसे ही सात्विक, राजसिक और तामसिक प्रवृत्तियों की व्याख्या की मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि विकसित हुई है। रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है, इसलिए भारत में रात्रि का विशेष महत्व है। भारतीय पर्वों के मूल में आध्यात्मिक चेतना के साथ वैज्ञानिकता उसके मूल में निहित है।

वैज्ञानिक तथ्य है कि दिन में अन्य तरंगों के कारण ध्वनि तरंगों में अवरोध उत्पन्न होता है इसलिए रात्रि काल में उपासना पर विशेष रूप से भारतीय मनीषियों ने बल दिया है। नवरात्रि दीपावली, महाशिवरात्रि और होली जैसे अधिकांश पर्व रात्रि में ही मनाए जाते हैं, ताकि ध्वनि की तरंगों का ठीक प्रकार से विस्तार हो।

एतदर्थ मंत्र, तंत्र और यंत्र के साथ विभिन्न वाद्य यंत्रों और शंख बजाकर वातावरण को न केवल रोगाणु मुक्त किया जाता है वरन् अपकारी शक्तियों के साथ आसुरी प्रवृत्तियों का भी शमन भलीभाँति होता है।

नवरात्रि के संबंध में यह सर्वविदित है कि एक वर्ष में चार संधि काल होते हैं और इसलिए क्रमशः चार नवरात्र चैत्र, आषाढ़ अश्विन, और माघ में मनाए जाने का विधान है। तन मन को निर्मल और पूर्णतः स्वस्थ रखने के का अनुष्ठान ही नवरात्र है। वस्तुतः नौ रातों के समूहको नवरात्रि कहा जाता है,

जो शरीर के अंदर निवास करने वाली जीवन शक्ति दुर्गा के ही स्वरुप हैं। भाषा विज्ञान की दृष्टि से दुर्गा शब्द की व्युत्पत्ति ‘दुर्ग’ और ‘आ’ प्रत्यय जोड़कर हुई है जिसका अर्थ ‘जो शक्ति दुर्ग की रक्षा करती हैं, दुर्गा हैं। यहाँ दुर्ग का अर्थ साधक के शरीर और चेतना के लिए ही है। वह शक्ति दुर्ग की रक्षा करती हैं वही दुर्गा है, दुर्ग साधक का शरीर है, और उसकी चेतना है, दुर्गा।

भारतीय सनातन धर्म में यह स्पष्ट है कि मानव शरीर में आसुरी प्रवृत्ति के नाश के लिए ही नवरात्र पर्व मनाने की महान परंपरा प्रवहमान है। शक्ति माँ दुर्गा का आह्वान कर मानव शरीर में उत्पन्न आसुरी प्रवृत्तियों का विनाश किया जाता है।

इस संबंध में भाषा विज्ञान के अनुसार आसुरी प्रवृत्तियों के नामकरण किए गए हैं, वर्तमान परिस्थितियों में षड्यंत्रपूर्वक इनका मानवीकरण कर वामियों और सेक्यूलरों द्वारा भ्रमित कर गलत मतप्रवाह स्थापित करने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है।

यह स्पष्ट शक्ति के संतुलन के लिए ही नवरात्र पर्व बनाए गए हैं। भाषा विज्ञान के दृष्टि से असुर का शाब्दिक अर्थ है ‘अ’ (बिना) + सुर (हमारी चेतना का ताल या सुर का बिगड़ना) । यही मानव में निहित असुर है। यही आसुरी प्रवृत्ति है।

महिषासुर का शाब्दिक अर्थ है- महिष (मह शब्द से बना है अर्थात् महान) और असुर प्रवृत्ति है। जिसका पर्याय है कि व्यक्ति और समाज से जड़ता समाप्त करना। वास्तव में प्रगट रुप में महिषासुर समाज में जड़ता की निशानी है और उसके शोधन के लिए नवरात्र पर्व को रखा जाता है।

इसी प्रकार यदि जगदंबा धूम्रलोचन का वध करती हैं, जिसका पर्याय व्यक्ति और समाज में धुंधली दृष्टि को समाप्त करके दिव्य दृष्टि प्रदान करना है। रक्तबीज का भी आशय शरीर में उपस्थित रक्त और बीज से है जिसमें अशुद्धि आ जाती है, तथा समाज में मनोग्रथियां उत्पन्न हो जाती हैं, इसलिए उसे शुद्ध करने के लिए रक्तबीज का शोधन किया जाता है।

इसी संदर्भ में चंडका अर्थ चिंता और मुंडका अर्थ अहंकार या अज्ञानता से है, और इन आसुरी प्रवृत्तियों का नाश करके, नकारात्मक ऊर्जा से सकारात्मक ऊर्जा की ओर जाना ही नवरात्र पर्व का मूलाधार है। वस्तुतः मां दुर्गा आदिशक्ति ही सृष्टि की संचालिका हैं और इसी से सारी शक्ति निःसृत होती है और ब्रह्मांड का संचालन होता है।

आलेख

डॉ. आनंद सिंह राणा
(लेखक श्रीजानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर
में इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष हैं)

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