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रामगढ़ का रामनवमी मेला

कालीदास की तपोभूमि कहे जाने वाले विश्व प्रसिद्ध रामगिरि रामगढ़ पर्वत पर मेला लगने का शुभारंभ कब से हुआ इसका कोई लिखित एतिहासिक प्रमाण तो नहीं मिलता और ना ही कोई चश्मदीद गवाह बाकी है। अपितु अंदाजा लगाया जाता है कि उस जमाने में कल्चुरी राजाओं के बाद के हुक्मरानों के शासन काल में रामगिरि में मेला भरने का चलन आरंभ हुआ होगा।

पहाड़ी के निचली तलहटी के गुफाओं, छोटे तुर्रा, सीताबेंगरा, हथफोड, बड़े तुर्रा के अतिरिक्त रामगिरि के शीर्ष पर लोगों की भीड़-भाड़ रहती है इन स्थानों में ही मेला लगता है। जाहिर है किसी एक स्थान यानि सीताबेंगरा के पास मेला लगने की शुरुआत हुई होगी। ज्ञात हो कि सीताबेंगरा प्राचीन नाट्य शाला भी मानी जाती है।

इंसान थके मांदे जीवन से ऊब कर कभी अपने लोगों के सामीप्य सानिध्य चाहता है जहां सुकून के कुछ पल बिता सकें। इन्हीं समझ-बूझ के बाद रामगढ़ पहाड़ी के तीनों चारों स्थानों पर मेला लगने का श्रीगणेश हुआ होगा।

सीताबेंगरा हथफोड गुफ़ा के अस्तित्व में आने के बाद वहां पर भगवान श्री राम के प्रकोटत्सव का खुशी मनाने लोग एकत्रित होते रहे होंगे वहीं भीड़ वाली जगह कालांतर में मेले का रूप ले लिया होगा। सौदागर भी अपने सामानों की बिक्री करने पहुंचने लगे होंगे।-

रामगिरि उंचा इतना कि आसमान को मित्र का घर समझकर स्पर्श किये हुये जान पड़ता है। पहले पहल लोग खुशी का पल बिताने नाच-गान भजन-कीर्तन वाद्य यंत्रों का निर्माण किया करते थे। मेला बाजार जरूरी सामानों खरीदी बिक्री के अलावा सांस्कृतिक कलाओं प्रदर्शन, वाद्ययंत्रों, आभूषणों, खेल खिलौने खाने पीने मिठाई उपलब्ध होने का ठिकाना भी है।

रामगढ़ पर्वत शिखर पर पहले कदम किसने रखा इस बात का कोई मनुष्य साक्षी नहीं है, और यदि है तो खुद रामगिरि। यहाँ प्राचीन कालीन राम मंदिर के अवशेष मिलते हैं, जिसके भग्न होने पर भगवान श्रीराम माता जानकी लक्ष्मण की प्रतिमाओं की पुनर्स्थापना संभवत रामगढिय़ा बाबा ने किया होगा। प्रभु श्री राम के जन्मोत्सव पर पूजा अर्चना की जाने की परम्परा इन्हीं से शुरू हुई होगी।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से पूर्णिमा तक रामगढ़ में मेला लगता है दूर-दूर से मेले का आनंद लेने लोग यहां पहुंचते हैं। मानता वाले लोग अपने बच्चों के सिर के बाल का मुंडन कराने चैत्र नौवमी के अवसर पर लोग रामगढ़ पहुंचते और बच्चे का मुंडन कराते हैं।

इसके अलावा श्रद्धालुगण मेले में अखंड रामायण पाठ, भजन कीर्तन का आयोजन करते है। दूर दराज से आए दुकान दार अपने सामानों की बिक्री करते हैं। समाज के पूंजीपति वर्ग के परोपकारी लोग पंडाल लगा दर्शनार्थियों सैलानियों के लिए भंडारे का आयोजन कर भोजन नास्ता का प्रबंध करते है।

शुद्ध पेयजल की किल्लत को देखते हुए सामाजिक संस्थाओं के लोग पानी की भी इंतजाम करते हैं दरअसल चैत्र मास में गर्मी पड़ने के कारण पर्वत शिखर पर पानी की दिक्कत बढ़ जाती है। मेले में पहुंचने वाले महिला बच्चे युवा बुजुर्ग सभी उम्र के दर्शनार्थियों को पंडाल में पानी पिलाया जाता है।

प्राचीन काल में जब रामगढ़ पहाड़ी पर रास्ता नहीं हुआ करता था और लोग पगडंडी चट्टानी रास्तों से गुजरते मेला तक पहुंच पाते थे। सबसे चुनौतीपूर्ण होता था रामगिरि के शीर्ष पर पहुंचना।हरे-भरे बड़े बड़े गगनचुंबी पेड़ और हिंसक वन्य प्राणियों के बीच मेला में लोगों का पहुंचना उनकी अगाध श्रद्धा को प्रकट करता है।

स्थानीय आबादी बढ़ने के बाद रामगढ़ पहाड़ी के उपर भगवान श्रीराम माता जानकी लक्ष्मण जी के मंदिर तक पहुंचने शासन के पुरातत्व विभाग द्वारा रास्ते का निर्माण करा दिया गया। वर्तमान समय में आधुनिक व्यवस्था में रामगढ़ समाने लगा है। जिससे मेला में पहुंचने वाले लोगों को आसानी होने लगी है।

यही वजह है कि लोग गगनचुंबी पहाड़ी के उपर स्थित मंदिर में विराजमान प्रभु श्रीराम माता जानकी लखन लाल के दर्शन पूजन के बाद आयोजित मेले भी सहुलियत से पहुचने लगे। पुराने जमाने में पहाड़ी पर श्रद्धालुओं को चढ़ते वक्त बांई ओर के भयानक खाईं को ध्यान में रखते हुए सकरे चट्टानी रास्ते पर से गुजरते हुए चढ़ना पड़ता था और आज भी गुजरना पड़ता है।

लेकिन पहले के रास्ते और अब रास्ते में काफी फर्क है। पहाड़ी शीर्ष पर मेला लगता है काफी भीड़ भाड़ होती है लोग चंदन तालाब में स्नान करते हैं, पूजा अर्चना कर मेले का आनन्द उठाते है। रामगढ़ में बैगा लोग पूजा अनुष्ठान कराते हैं पंडित पुजारी कथा वार्ता बांचते है।

दर्शनार्थियों के अलावा ऋषि मुनि महात्माओं का भी जमावड़ा लगा रहता है। पहले बड़े तुर्रा के पास आकर्षक मेला लगता था पीने के पानी की बहुलता हुए करती थी, घासफूस के बने आश्रम बड़े खूबसूरत हुआ करते थे जहां महात्माओं दर्शनार्थियों का बसेरा हुआ करता था। लेकिन रामगिरि का एक हिस्सा चटक कर गिर गया जिससे बड़े तुर्रा की तस्वीर बदल गयी, तुर्रा से आने वाला जल प्रवाह बंद हो गया, जिसे पेयजल क अभाव बना रहता।

फिलहाल शासन प्रशासन के ओर से सभी सुविधाये व्यवस्थित की जा रही है। रामगढ़ मेला प्रसिद्धी के बुलंदियों को छूते जा रहा है, इसके साथ ही मेले का आधुनिक स्वरुप भी सामने आ रहा है। फ़िर भी लोग कष्टों को सहकर भगवान श्री राम के दर्शन करने के लिए रामगिरि सदियों से पहुंच रहे हैं तथा प्राचीन काल से ही रामनवमी का मेला स्थानीय लोगों के मिलन का बड़ा स्थल रहा है।

आलेख

श्री मुन्ना पाण्डे,
वरिष्ठ पत्रकार लखनपुर, सरगुजा

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