बस्तर की हल्बी बोली का शब्द है “पारद”। इसका शाब्दिक अर्थ हिन्दी, हल्बी, गोण्डी में खेल होता है। गोण्डी बोली में इसे “वेट्टा” कहते है। हिन्दी में खेलना, हल्बी में पारद खेलतो तथा गोण्डी में “कोटुम वली दायना” कहते है। जिसका अर्थ पारद (शिकार) खेलने जाना है। सामान्यतः अपने के …
Read More »जनजातीय समुदाय में श्री जगन्नाथ धाम का माहात्म्य
जनजातीय समुदाय में श्री जगन्नाथ धाम का माहात्म्यजगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8 वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है। यह भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है। इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी …
Read More »सिंधुघाटी की परंपराएं अभी शेष हैं बस्तर में
सिंधु निवासियों ने आगे बढ़कर भारत में अपने निवास के लिए वैसे ही क्षेत्र को चुना जैसा सिंधु का इलाका रहा, भरपूर जल, घने वन और सहचर जीव, जानवर। उन स्थलों में आज का बस्तर अधिक उपयुक्त रहा। छत्तीसगढ़ के सुदूर दक्षिण में घने जंगलों, नदी घाटियों से आच्छदित यह क्षेत्र आज अपने अंदर विश्व की सबसे पुरानी संस्कृति को आत्मसात किए हुए हैं।
Read More »दो व्यवस्थाओं की खींचतान के बीच पहला आमचुनाव और बस्तर (आलेख – 1)
बस्तर संभाग में चुनावों की परिपाटी को समझने के लिए उस क्षितिज की ओर चलना होगा जिन समयों में साम्राज्यवादिता का अवसान हुआ और नए नए स्वाधीन हुए देश भारत में लोकतंत्र की आहट सुनाई पड़ने लगी थी।
Read More »मड़ई में गाली बकने की परम्परा
बस्तर के वनवासी अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों को संजोए हुए होली मनाते हैं, दंतेवाड़ा के माई मंदिर में। छत्तीसगढ़ के बस्तर का दंतेवाड़ा जहां विराजी हैं वनवासियों की आराध्य मां दंतेश्वरी देवी। डंकिनी- शंखिनी नदी संगम के तट पर बसा है दंतेवाड़ा। हर बरस माता के दरबार में होली मनाने आ …
Read More »अंग्रेजों से मुक्ति के लिये छत्तीसगढ़ के परलकोट में सशस्त्र क्राँति
भारत को अंग्रेजों से मुक्ति सरलता से नहीं मिली। पूरा देश मानों भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने उठ खड़ा हुआ था। क्या नगर वासी, क्या ग्राम वासी और क्या वनवासी। सभी क्षेत्रों में क्रान्ति की ज्वाला धधक उठी। ऐसे ही क्राँतिकारी थे वनवासी गेंद सिंह जिन्होने छत्तीसगढ के बस्तर …
Read More »लोक मंगल का नृत्य करमा
लोकगीत और लोकनृत्यों में छत्तीसगढ़ का उल्लासित परिवेश साकार हो उठता है। जन्म से मृत्यु पर्यंत, पर्व और उत्सवों में, जीवन की विसंगतियों में होता आया लोक नृत्यों आज भी जीवंत है,समूचे जनजीवन में। ऐसा ही एक लोक नृत्य है करमा, जो विविध परिवेश में प्रचलित है। इसे छत्तीसगढ़ के …
Read More »जानिए बस्तर के घोटुल को
इसे बस्तर का दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिये कि इसे जाने-समझे बिना इसकी संस्कृति, विशेषत: इसकी जनजातीय संस्कृति, के विषय में जिसके मन में जो आये कह दिया जाता रहा है। गोंड जनजाति, विशेषत: इस जनजाति की मुरिया शाखा, में प्रचलित रहे आये “घोटुल” संस्था के विषय में मानव विज्ञानी …
Read More »जानिए भंगाराम देवी हैं या देवता?
बस्तर अंचल के कोंडागाँव जिले में रायपुर-जगदलपुर राजमार्ग पर कोंडागाँव से लगभग 52 किलोमीटर पहले या जगदलपुर की ओर से चलें तो जगदलपुर-रायपुर राजमार्ग पर जगदलपुर से 129 किलोमीटर दूर केसकाल नामक गाँव है। इसी गाँव के एक मोहल्ले सुरडोंगर से हो कर जाते हैं एक पहाड़ी की ओर जहाँ …
Read More »झिटकू मिटकी : बस्तर की लोक कथा
ढाई आखर प्रेम का पढ़ कर पण्डित होने की बात तो सुनी थी किन्तु देवता होने की घटना हमें छत्तीसगढ़ के जनजाति बहुल अंचल बस्तर में ही सुनायी पड़ती है। केवल इतना ही नहीं किन्तु इनकी विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना भी होती है। इनमें से एक प्रेमी युगल है “झिटकू-मिटकी” और …
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