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Tag Archives: बस्तर

एक बेल जो जंगल में राह भूला देती है

दुनिया अजब गजब है, इस धरती पर इतने रहस्य छुपे हुए हैं, जिनकी कल्पना नहीं की जा सकती। भले ही आज मानव चाँद पर पहुंचकर मंगल ग्रह पर बस्ती बसाने का प्रयत्न कर हो, पर धरती के रहस्य उसे अचंभे में डाल ही देते हैं। छत्तीसगढ़ प्रदेश भी कुछ ऐसा …

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यहाँ था खरदूषण का मदिरालय

प्राकृतिक सुन्दरता तो मानो ऊपर वाले ने दिल खोल कर बस्तर में उंडेल दी है। जगह-जगह झरने. घने वन, नदी, पहाड, गुफा, वनफूलों की महक और महुए की गमक लिए इन वनस्थली पर शिवलिंग की उपस्थिति प्रकृति के प्रति उत्सुकता और हमारी आस्था को बढ़ाती ही है । किन्तु बस्तर …

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बस्तर के जनजातीय समाज में पितृ पूजन

बस्तर संभाग में जनजाति बाहुल्य गांव में और मिश्रित जनजाति के गांव में दो धाराएं स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। एक धारा देव संस्कृति को मानने वाली होती है और दूसरी धारा देव संस्कृति के साथ वैदिक संस्कृति को भी अपने कार्य व्यवहार में समाहित कर लेती है। …

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बस्तर के जाति एवं जनजाति समाज में जोगनी

दक्षिण कौशल का दक्षिणी भाग बस्तर संभाग कहलाता है, बस्तर में किसी भी नए फसल उपज को सबसे पहले अपने परगना के देवता कुलदेवता इष्ट देवता और पितृ देवता में अर्पण करने की परंपरा है। उसके बाद ही बस्तर का जाति एवं जनजाति समाज उस फसल या उपज को ग्रहण …

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दक्षिण कोसल के रामायण कालीन ऋषि मुनि एवं उनके आश्रम : वेबीनार रिपोर्ट

दक्षिण कोसल के रामायण कालीन ऋषि मुनि एवं उनके आश्रम विषय पर ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण उत्तर प्रदेश और सेंटर फॉर स्टडी एंड हॉलिस्टिक डेवलपमेंट छत्तीसगढ़ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार श्रृंखला की 9 वीं कड़ी का आयोजन दिनाँक 9/8/ 2020, रविवार, शाम 7:00 से 8:30 के मध्य किया गया। इस वेबीनार …

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जनजातीय संस्कृति में निहित टोटमवाद और पर्यावरण संरक्षण

भारतीय संस्कृति में वृक्षों की बड़ी महत्ता है। वृक्षों को ‘देव’ माना गया है। हमारी संस्कृति में पीपल, बरगद, नीम, आम, आंवला इत्यादि वृक्ष पूजनीय है, इन्हें ग्राम्य वृक्ष माना गया है। इसी कारण वृक्षों को न ही काटने की परंपरा है न ही जलाने की। आज भी गाँव में …

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बस्तर के जनजातीय समाज में बड़ों का सम्मान

बस्तर के जनजातीय समाज में भी अपने बुजुर्गों का सम्मान करने की परम्परा विद्यमान है, यह आदिम संस्कृति का आधारभूत सिद्धान्त है कि गाँव या समाज में सभी बड़ों का उचित तरीके से सम्मान किया जाये, जनजातीय समाज समय-समय पर अपने कार्य व्यवहार से इसे प्रदर्शित भी करता है। घर …

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छत्तीसगढ़ में पारंपरिक देहालेखन गोदना और अंतर्भाव

लोक-व्यवहार ही कालांतर में परंपराएँ बनती हैं और जीवन से जुड़ती चली जाती हैं। जब पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनका निर्वाह किया जाता है तब वह आगे चलकर संस्कृति का हिस्सा बन जाती हैं। वास्तव में लोक-व्यवहार ही एक है जो कि संस्कृति को जीवंत स्वरूप प्रदान करती है। लोक-परंपराएँ यूँ ही नहीं …

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प्रकृति की अनुपम भेंट कांगेर वैली एवं उसकी अद्भुत गुफ़ाएं

कांगेर वैली राष्ट्रीय उद्यान छत्तीसगढ़ प्रदेश के बस्तर जिले के जिला मुख्यालय जगदलपुर में स्थित है। राष्ट्रीय उद्यान को कांगेर नदी से अपना नाम मिलता है, जो उत्तर-पश्चिम से दक्षिण पूर्व दिशा में केंद्र से बहती है। वर्ष 1982 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत राष्ट्रीय उद्यान अधिसूचित किया …

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बस्तर की प्राचीन सामाजिक परम्परा : पारद

बस्तर की हल्बी बोली का शब्द है “पारद”। इसका शाब्दिक अर्थ  होता है। गोण्डी बोली में इसे “वेट्टा” कहते है।  को हिन्दी, हल्बी, गोण्डी में खेल कहकर प्रयुक्त किया जाता है। इसे हिन्दी में खेलना, हल्बी में पारद खेलतो तथा गोण्डी में “कोटुम वली दायना” कहते है। जिसका अर्थ पारद …

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