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Tag Archives: बस्तर

केशकाल का भव्य झरना : उमरादाह

प्रकृति की अपार खूबसूरती से भरा बस्तर संभाग अपने अकूत प्राकृतिक सौंदर्य और खनिज संपदा के लिए जाना जाता है। इसी क्रम में अविभाजित बस्तर जिले से मुक्त होकर बने नवीन जिले कोंडागांव में पर्यटन की अपार संभावनाएं है, जिसका सिरमौर केशकाल विकासखंड है। विगत एक दो वर्षों में चर्चा …

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शाक्त धर्म एवं महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमाएं : छत्तीसगढ़

भारतवर्ष में मातृदेवी एवं शक्ति के रूप में देवी पूजन की परम्पराएं प्रचलित रही हैं। भारतीय संस्कृति की धार्मिक पृष्ठभूमि में शाक्त धर्म का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सृष्टि के उद्भव से लेकर वर्तमान काल तक के संपूर्ण विकास में शक्ति पूजा का योगदान दिखाई देता है। नारी शक्ति को …

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तेलीन सत्ती माई : छत्तीसगढ़ नवरात्रि विशेष

देवी देवताओं के प्रति गहरी आस्था और अटल विश्वास के कारण आदिम जनजीवन में देवी देवताओं का विशिष्ट स्थान है। बस्तर में इन देवी देवताओं का एक अलौकिक साम्राज्य है और इस अलौकिक साम्राज्य की राजा हैं देवी माँ भंगाराम माई। बस्तर का प्रवेश द्वार बार मोड़ों वाली केशकाल घाटी …

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एक बेल जो जंगल में राह भूला देती है

दुनिया अजब गजब है, इस धरती पर इतने रहस्य छुपे हुए हैं, जिनकी कल्पना नहीं की जा सकती। भले ही आज मानव चाँद पर पहुंचकर मंगल ग्रह पर बस्ती बसाने का प्रयत्न कर हो, पर धरती के रहस्य उसे अचंभे में डाल ही देते हैं। छत्तीसगढ़ प्रदेश भी कुछ ऐसा …

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यहाँ था खरदूषण का मदिरालय

प्राकृतिक सुन्दरता तो मानो ऊपर वाले ने दिल खोल कर बस्तर में उंडेल दी है। जगह-जगह झरने. घने वन, नदी, पहाड, गुफा, वनफूलों की महक और महुए की गमक लिए इन वनस्थली पर शिवलिंग की उपस्थिति प्रकृति के प्रति उत्सुकता और हमारी आस्था को बढ़ाती ही है । किन्तु बस्तर …

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बस्तर के जनजातीय समाज में पितृ पूजन

बस्तर संभाग में जनजाति बाहुल्य गांव में और मिश्रित जनजाति के गांव में दो धाराएं स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। एक धारा देव संस्कृति को मानने वाली होती है और दूसरी धारा देव संस्कृति के साथ वैदिक संस्कृति को भी अपने कार्य व्यवहार में समाहित कर लेती है। …

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बस्तर के जाति एवं जनजाति समाज में जोगनी

दक्षिण कौशल का दक्षिणी भाग बस्तर संभाग कहलाता है, बस्तर में किसी भी नए फसल उपज को सबसे पहले अपने परगना के देवता कुलदेवता इष्ट देवता और पितृ देवता में अर्पण करने की परंपरा है। उसके बाद ही बस्तर का जाति एवं जनजाति समाज उस फसल या उपज को ग्रहण …

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दक्षिण कोसल के रामायण कालीन ऋषि मुनि एवं उनके आश्रम : वेबीनार रिपोर्ट

दक्षिण कोसल के रामायण कालीन ऋषि मुनि एवं उनके आश्रम विषय पर ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण उत्तर प्रदेश और सेंटर फॉर स्टडी एंड हॉलिस्टिक डेवलपमेंट छत्तीसगढ़ द्वारा अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार श्रृंखला की 9 वीं कड़ी का आयोजन दिनाँक 9/8/ 2020, रविवार, शाम 7:00 से 8:30 के मध्य किया गया। इस वेबीनार …

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जनजातीय संस्कृति में निहित टोटमवाद और पर्यावरण संरक्षण

भारतीय संस्कृति में वृक्षों की बड़ी महत्ता है। वृक्षों को ‘देव’ माना गया है। हमारी संस्कृति में पीपल, बरगद, नीम, आम, आंवला इत्यादि वृक्ष पूजनीय है, इन्हें ग्राम्य वृक्ष माना गया है। इसी कारण वृक्षों को न ही काटने की परंपरा है न ही जलाने की। आज भी गाँव में …

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बस्तर के जनजातीय समाज में बड़ों का सम्मान

बस्तर के जनजातीय समाज में भी अपने बुजुर्गों का सम्मान करने की परम्परा विद्यमान है, यह आदिम संस्कृति का आधारभूत सिद्धान्त है कि गाँव या समाज में सभी बड़ों का उचित तरीके से सम्मान किया जाये, जनजातीय समाज समय-समय पर अपने कार्य व्यवहार से इसे प्रदर्शित भी करता है। घर …

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