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अनमोल जैव विविधता को संजोता पर्व हलछठ

भारत के पर्व प्रकृति को संजोते हैं, जीवों को संरक्षित करते हैं। सदियों से चले आये पर्वों के रीति रिवाज को जब हम तिलांजलि दे रहे हैं तब उनकी महत्ता हमारे सामने आ रही है। हलषष्ठी एक ऐसा ही त्यौहार है जिसमें जैव विविधता, भू-जल को संरक्षित कर व्यवहारिक रूप …

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छत्तीसगढ़ में मैत्री का पारंपरिक त्योहार : भोजली

प्राचीनकाल से देवी देवताओं की पूजा के साथ प्रकृति की पूजा किसी न किसी रुप में की जाती है। पेड पौधे, फल फुल आदि के रूप में पूर्ण आस्था के साथ आराधना की जाती है। इसी पर आधारित ग्रामीण आंचल में भोजली बोने की परंपरा का निर्वहन पूर्ण श्रद्धा के …

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श्रावणी उपाकर्म : विद्याध्यन प्रारंभ करने का पर्व

वैदिक काल में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को श्रावणी पर्व के रुप में मनाया जाता था। इसे श्रावणी उपाकर्म भी कहा जाता है। उस काल में वेद और वैदिक साहित्य का स्वाध्याय होता था। लोग प्रतिदिन वैदिक साहित्य का पठन करते थे, लेकिन वर्षा काल में वेद …

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सामाजिक नियमों में बंधा हुआ बस्तर का जनजातीय समाज

बस्तर का जनजातीय समाज अपनी अलौकिक सांस्कृतिक विरासत के लिये जाना जाता है और यही संस्कृति उनकी पहचान है। इस संस्कृति को उनके पूर्वजों ने उसी रूप में सौंपा है, जिस रूप में उन्होने अपने समय में निभाया था। अपनी सांस्कृतिक विरासत का आज की पीढ़ी भी उसी तरह से …

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जहां प्रकृति स्वयं करती है शिव का जलाभिषेक

छत्तीसगढ़ के हृदय स्थल जांजगीर-चांपा जिले के अति पावन धरा तुर्रीधाम शिवभक्तों के लिए अत्यंत ही पूजनीय है। सावन मास में हजारों की संख्या में शिव भक्त अपनी मनोकामना लेकर तुर्रीधाम पहुंचते है। स्थानीय दृष्टिकोण से यहाँ उपस्थित शिवलिंग, प्रमुख ज्योतिर्लिंगों के समान ही वंदनीय है। यह शिवालय सक्ति-चांपा मार्ग …

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महादेव ने जहाँ पत्थर पर डमरु दे मारा : सावन विशेष

बस्तर भूषण को बस्तर का प्रथम प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इस गंथ के लेखक ने अपने मित्र तहसीलदार द्वारा साझा किया गया एक संस्मरण का उल्लेख करते हुए लिखते हैं- “एक मित्र जो कोण्डागाँव में तहसीलदार थे, मुझसे कहते थे कि बड़ाडोंगर (बस्तर रियासत में दो डोंगर है, अर्थात …

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नागपंचमी के दिन गुरु मंत्र सिद्ध करने वाले नगमतिहा

छत्तीसगढ़िया लोक समाज में विभिन्न परंपराओं की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। यहाँ शैव, वैष्णव और शाक्त मत के अलावा सिद्धों और नाथों का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। हरियाली अमावस्या को मनाए जाने वाले पर्व “हरेली” को कृषि यंत्रों की पूजा के साथ गांव देहात में मंत्र दीक्षा …

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चोड़रापाट के डोंगेश्वर महादेव : सावन विशेष

वर्तमान समय आपाधापी का समय है। मनुष्य इस आपाधापी के कारण मानसिक शांति से कोसों दूर हैं। सुख-सुविधा की चाहत में मनुष्य इतना उलझ गया है कि भौतिक संपदाओं की उपलब्धि के बावजूद भी न तो उसकी आंखों में नींद है, और न ही मन में चैन। ऐसी स्थिति में …

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जानिए मूल निवासी दिवस क्या है और मनाने की परम्परा क्यों प्रारंभ हुई?

कुछ वर्षों से भारत में प्रतिवर्ष 9 अगस्त को मूल निवासी दिवस को आदिवासी दिवस के रूप में मनाने की परम्परा प्रारंभ होती दिखाई देती है, परंतु इस विषय पर जानकारी का विस्तार सामान्य जन के बीच पूर्ण रूप से नहीं है। ये क्या दिवस है ? यह दिवस क्यों …

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छत्तीसगढ़ी लोक पर्व हरेली तिहार

आषाढ़ मास में माता पहुचनी के बाद श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या को किसान अपना द्वितीय पर्व ‘हरियाली’ मनाता है। किसान अपने खेती में इस प्रकार हल जोतता है मानों अपने कंधा रूपी हल से धरती माँ के केशों को सवांर रहा हो मांग निकालता है, जिसे किसानी भाषा में कुंड़ …

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