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ऐसा कंद जो लोक संस्कृति का अभिन्न अंग है

दीपावली का त्यौहार समीप आते ही छत्तीसगढ़ में लोग बाड़ी-बखरी की भूमि में दबे जिमीकंद की खुदाई शुरु कर देते हैं। किलो दो किलो जिमीकंद तो मिल ही जाता है। वैसे भी वनांचल होने के कारण छत्तीसगढ़ में बहुतायत में पाया जाता है। धरती से उपजने वाला यह कंद हमारी …

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छत्तीसगढ़ का मॉरिशस जहाँ आप जरुर जाना चाहेंगे

राजधानी रायपुर से कटघोरा होते हुए 230 किलोमीटर की दूरी पर मड़ई गांव से 5 किलोमीटर की दूरी पर हसदेव बांगो बांध के डुबान क्षेत्र में विकसित पर्यटन केन्द्र बुका में नौका विहार का मजा ले सकते हैं। वन विभाग ने यहां पर्यटकों के लिए काटेज का निर्माण कराया है। …

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छेरछेरा पुन्नी : बच्चों में मनुष्यता जगाने का पर्व

हमारे देश की परम्परा तीज त्यौहारों, उत्सवों, मेलों की है। मनुष्य हमेशा उत्सव में रहना चाहता है, कहा जाए तो हमारी परम्परमा में वर्ष के सभी दिन उत्सवों के हैं। इन्हीं उत्सवों में हम छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पुन्नी मनाते हैं। इस त्यौहार में बच्चे बड़े उत्साह से भाग लेते हैं। …

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जानिये कौन से प्राचीन यंत्र का प्रयोग वर्तमान में भी हो रहा है

वर्तमान में जो भौतिक वस्तुएं एवं सभ्यता दृष्टिगोचर हो रही है, वह मानव के क्रमिक विकास का परिणाम है। पुराविद एवं इतिहासकार वर्षों से यह जानने में लगे हैं कि प्राचीन मनुष्य का रहन-सहन, खान-पान क्या था, उसका भौतिक विकास कितना हुआ था। उत्खनन में प्राप्त सामग्री के वैज्ञानिक शोध …

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आजादी के बाद राजा के निजी धन से निर्मित राजा तालाब

कहानी वर्तमान कांकेर जिले के हल्बा गाँव के टिकरापारा की है, यह एक छोटा सा गांव हैं, जहाँ के एक तालाब की चर्चा करना उपयुक्त समझता हूँ, बात 1956-57 की है, बस्तर नरेश प्रवीण चंद भंजदेव टिकरापारा पहुंचे, उनके स्वागत में सारा गाँव इकट्ठा हुआ। गाँव की चौपाल में उनके …

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बस्तर का परम्परागत द्वार निर्माण काष्ठ शिल्प

कला की अभिव्यक्ति के लिए कलाकार का मन हमेशा तत्पर रहता है और यही तत्परता उपलब्ध माध्यमों के सहारे कला की अभिव्यक्ति का अवसर देती है। वह रंग तुलिका से लेकर छेनी हथौड़ी तक को अपना औजार बनाकर कला को जन जन तक पंहुचाता है, इसमें काष्ठ कला भी कलाभिव्यक्ति …

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