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ॠषि परम्परा

बस्तर में शक्ति उपासना की प्राचीन परंपरा

बस्तर प्राचीनकाल में दंडकारण्य कहलाता था। छत्तीसगढ़ के दक्षिण में ”बस्तर“ ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। आदिम युग से अर्वाचीन काल तक बस्तर में अनेक राजवंशों का उत्थान और पतन हुआ। बस्तर के विशाल अंचल को देवी-देवताओं की धरा कहें तो कोई अतिशोक्ति नहीं हैं। बस्तर की देवियां-राज …

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सरई वृक्ष में विराजमान सरई श्रृंगारिणी माता

सरई श्रृंगारिणी माता का मंदिर 22•9’82″उत्तरी अक्षांश और 82•32’9″ पूर्वी देशांतर पर समुद्र तल से लगभग 910 फिट की ऊँचाई पर बलौदा ब्लाक के ग्राम डोंगरी में स्थित है। सरई श्रृंगारिणी डोंगरी में सरई पेड़ में विराजमान है। अंचल के लोगों की सरई श्रृंगारिणी माता के प्रति अपार श्रद्घा और …

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नव संवत्सर एवं चैत्र नवरात्रि का पर्व

विश्व भर में विभिन्न जाति-धर्म सम्प्रदायों के मानने वाले अपनी संस्कृति-सभ्यता अनुसार परंपरागत रूप से भिन्न-भिन्न मासों एवं तिथियों में नववर्ष मनाते हैं। एक जनवरी को जार्जियन केलेंडर के अनुसार नया वर्ष मनाया जाता है। परंतु हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि को नया वर्ष, …

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छत्तीसगढ़ में शिवोपासना की परंपरा

छत्तीसगढ़ वैदिक और पौराणिक काल से ही विभिन्न संस्कृतियों का विकास केंद्र रहा है। यहां प्राप्त मंदिरों, देवालयों और उनके भग्नावशेषों से ज्ञात होता है कि यहां वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध, जैन धर्म एवं संस्कृतियों का प्रभाव रहा है। शैवधर्म का छत्तीसगढ़ में व्यापक प्रभाव परिलक्षित होता है। जिसका प्रमाण …

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विजयी भारत के प्रेरणास्रोत : छत्रपति शिवाजी महाराज

पूरे उत्तर भारत में मुगलों का शासन था। औरंगजेब जैसा राजा दिल्ली के तख्त पर था। दक्षिण में निजामशाही थी। हिन्दू धर्म खतरे में था। छोटे-बड़े हिन्दू राजा, सेनापति जो अपना पराक्रम, शौर्य मुगलों के लिए खर्च करते थे। ऐसे समय पर 15 वर्षीय बालक शिवाजी सामान्य परिवारों के अपने …

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लोक कल्याण हेतु दान का पर्व : छेरछेरा

छतीसगढ़ के त्योहारों में परम्परा का गजब समन्वय है, देश भर में होली दिवाली सहित अनेक पर्व तो मनाते ही है किंतु माता पहुंचनी, पोरा, तीजा, इतवारी, नवाखाई, बढोना, छेवर और छेरछेरा ऐसे लोक स्थापित पर्व हैं जिसे लोक अपने स्तर और तरीके से नियत तिथि को मनाता है। छेरछेरा …

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प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि का पर्व : मकर संक्रांति

संक्रांति का तात्पर्य संक्रमण से है, सूर्य का एक राशि से अगली राशि में जाना संक्रमण कहलाता है। वैसे तो वर्ष में 12 संक्रांतियाँ होती हैं, परन्तु मकर, मेष, धनु, कर्क आदि चार संक्रांतियाँ देश के विभिन्न भू-भागों पर मनाई जाती हैं। इसमें अधिक महत्व मकर संक्रांति को दिया जाता …

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संसार को भारत के ‘स्व’ से परिचित कराने वाले स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद ऐसे संन्यासी हैं, जिन्होंने हिमालय की कंदराओं में जाकर स्वयं के मोक्ष के प्रयास नहीं किये बल्कि भारत के उत्थान के लिए अपना जीवन खपा दिया। विश्व धर्म सम्मलेन के मंच से दुनिया को भारत के ‘स्व’ से परिचित कराने का सामर्थ्य स्वामी विवेकानंद में ही था, क्योंकि …

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अवघट म मिलय राम : मातर विशेष

प्रकाशपर्व दीपावली की प्रतीक्षा हर वर्ग करता है। विशेषकर गौचारण और गौ-पालन करने वाले यदुवंशियों को इस पर्व की विशेष प्रतीक्षा होती है। क्योंकि ये पर्व उनको गौधन के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है। दीपावली के दूसरे दिन अर्थात गोवर्धन पूजा के दिन से अहीर समुदाय …

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जानिए नरक चौदस का महत्व

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी को ‘छोटी दीपावली’ भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को ‘नरक चौदस’, ‘रूप चौदस’, ‘रूप चतुर्दशी’, ‘नर्क चतुर्दशी’ या ‘नरका पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है। नरक शब्द का अभिप्राय मलिनता से …

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