कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी को ‘छोटी दीपावली’ भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को ‘नरक चौदस’, ‘रूप चौदस’, ‘रूप चतुर्दशी’, ‘नर्क चतुर्दशी’ या ‘नरका पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है।
नरक शब्द का अभिप्राय मलिनता से है। मलिनता को दूर करना ही मुख्य लक्ष्य है। यह मलिनता शारीरिक, मानसिक और आत्मिक सभी स्तरों से दूर करने की है। हर स्थान से मलिन यानी अनुपयोगी चीजों को दूर करना ही इसका उद्देश्य है फिर चाहे वह घर हो या मनुष्य का अपना अंतर्मन।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं।
नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना शुभ माना गया है। परंपरा के अनुसार चतुर्दशी यानी नरक चौदस के दिन लक्ष्मी जी सरसों के तेल में निवास करती हैं इसलिए ऐसा माना जाता है कि इस दिन शरीर में तेल लगाने से आर्थिक रूप से संपन्नता आती है। जिन लोगों को आर्थिक रूप से तंगी रहती हो उनको इस दिन सरसों का तेल जरूर लगाना चाहिए। नरक चौदस के दिन उबटन लगाने का भी रिवाज है। उबटन लगाने के बाद गुनगुने पानी से स्नान कर श्रृंगार करने का भी महत्व है।
इस चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा व उपासना की जाती है।
शास्त्रों के अनुसार दस दिशाएं मानी गई है, जिसमें सभी दिशाओं के रक्षक दिग्पाल कह्रे जाते हैं। ऊर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारूत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत के रक्षक होते हैं।
प्राचीन काल में इन दिग्पालों की स्थापना मंदिरों की भित्तियों में इनकी दिशाओं के अनुसार की जाती है। चित्र में भुवनेश्वर के राजा रानी मंदिर में स्थापित यम दिखाई दे रहे हैं।
एक कथा के अनुसार रन्तिदेव नामक एक राजा हुए थे। वह बहुत ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा पुरूष थे। सदैव धर्म, कर्म के कार्यों में लगे रहते थे। जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उन्हें लेने के लिए आये।
वे दूत राजा को नरक में ले जाने के लिए आगे बढ़े। यमदूतों को देख कर राजा आश्चर्य चकित हो गये और उन्होंने पूछा- “मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं। कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताइये, कि किस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा ह।”. राजा की करूणा भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा- “हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा ही लौट गया था, जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है।
राजा ने यमदूतों से विनती करते हुए कहा कि वह उसे एक वर्ष का और समय देने की कृपा करें। राजा का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगे और राजा को एक वर्ष की आयु प्रदान कर वे चले गये। यमदूतों के जाने के बाद राजा इस समस्या के निदान के लिए ऋषियों के पास गया और उन्हें समस्त वृत्तांत बताया।
ऋषि, राजा से कहते हैं कि यदि राजन कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करे और ब्राह्मणों को भोजन कराये और उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करे तो वह पाप से मुक्त हो सकता है। ऋषियों के कथन के अनुसार राजा कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करता है। इस प्रकार वह पाप से मुक्त होकर भगवान विष्णु के वैकुण्ठ धाम को पाता है।
एक अन्य प्रसंगानुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह में कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके देवताओं व ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी। इसके साथ ही कृष्ण भगवान ने सोलह हज़ार कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त करवाया। इसी उपलक्ष्य में नगरवासियों ने नगर को दीपों से प्रकाशित किया और उत्सव मनाया। तभी से नरक चतुर्दशी का त्यौहार मनाया जाने लगा।
एक अन्य कथानुसार भगवान राम के भक्त महावीर हनुमान जी का जन्म आज के ही दिन हुआ था। हनुमान जी को रूद्र के अवतारों में से एक माना जाता है।
भगवान राम त्रेतायुग में धर्म की स्थापना करके पृथ्वी से अपने लोक बैकुण्ठ चले गये। लेकिन भगवान राम ने धर्म की रक्षा के लिए प्रलय काल तक हनुमान को पृथ्वी पर रहने का आग्रह किया। इसके लिए राम ने हनुमान ही को अमरता का वरदान दिया।
इस दिन के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दीए को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं।
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