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ॠषि परम्परा

लोक मानस में रचा बसा पर्व : अक्षय तृतीया

हिन्दू धर्म में अक्षय तृतीया का महत्व बहुत ही अधिक है। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के छठवें अवतार के रूप में भगवान परशुराम जी बैशाख शुक्ल तृतीया को अवतरित हुए, हिंदु धर्म के मुताबिक प्रथम पर्व है, इसे अक्षय तृतीया अर्थात ऐसा तिथि जो समृद्धि, आशा, आनन्द सफलता जो …

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जहाँ प्रतिदिन भालू उपस्थिति देते हैं : मुंगई माता

हमारे गाँव के बड़े बुजुर्गों ने जब से होश संभाला तब उन्होंने देखा कि उनके पूर्वज ग्राम की पहाड़ी पर पूजन सामग्री लेकर आदि शक्ति मां जगदम्बा भवानी की नित्य पूजा अर्चना करते रहते हैं और अपने ग्राम्य जीवन की सुख-शांति, खुशहाली की कामना करते हैं। आज भी इसी रीति …

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पंडो जनजाति का लाटा त्यौहार

सरगुजा अंचल में निवासरत पंडो जनजाति का लाटा त्यौहार चैत्र माह में मनाया जाता है। लोक त्यौहारों में लाटा त्योहार मनाने प्रथा प्राचीन से रही है। पंडो वनवासी समुदाय के लोग इस त्यौहार को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। दरअसल यह त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रि के समय …

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लोकदेवी पतई माता

भारत में प्रकृति रुपी देवी देवताओं पूजा सनातन काल होती आ रही है क्योंकि प्रकृति के साथ ही जीवन की कल्पना की जा सकती है, प्रकृति से विमुख होकर नहीं। भारत देश का राज्य प्राचीन दक्षिण कोसल वर्तमान छत्तीसगढ़ और भी अधिक प्रकृति के सानिध्य में बसा है। प्राचीन ग्रंथों …

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नवागाँव वाली छछान माता

छछान माता नवागांव वाली भी आदि शक्ति मां भवानी जगतजननी जगदम्बा का रूप और नाम है। छछान माता छत्तीसगढ़ प्रान्त के जिला महासमुंद मुख्यालय से तुमगांव स्थित बम्बई कलकत्ता राष्ट्रीय राजमार्ग पर महासमुंद से लगभग 22 किलोमीटर दूरी पर सीधे हाथ की ओर लगभग 300 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित …

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शक्ति तीर्थ डोंगरगढ़ की बमलाई माता

राजनांदगांव से 36 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित डोंगरगढ नगरी धार्मिक विश्वास एवं श्रध्दा का प्रतीक है। डोंगरगढ की पहाड़ी पर स्थित शक्तिरुपा माँ बम्लेश्वरी  देवी का विख्यात मंदिर सभी श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहां मां बम्लेश्वरी देवी के दो विख्यात मंदिर है। डोंगरगढ की पहाड़ी पर 1600 …

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महानदी तट पर स्थित चंद्रहासिनी देवी

भारत के सम्बन्ध में विद्वानों का मानना है कि सिंधु घाटी की सभ्यता के नागरिक जिन देवताओं की पूजा-अर्चना करते थे वे आगामी वैदिक सभ्यता में पशुपति और रुद्र कहलाएं तथा वे जिस मातृका की उपासना करते थे वे वैदिक सभ्यता में देवी का आरम्भिक रुप बनी। भारतीय इतिहास गवाह …

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बस्तर में शक्ति उपासना की प्राचीन परंपरा

बस्तर प्राचीनकाल में दंडकारण्य कहलाता था। छत्तीसगढ़ के दक्षिण में ”बस्तर“ ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है। आदिम युग से अर्वाचीन काल तक बस्तर में अनेक राजवंशों का उत्थान और पतन हुआ। बस्तर के विशाल अंचल को देवी-देवताओं की धरा कहें तो कोई अतिशोक्ति नहीं हैं। बस्तर की देवियां-राज …

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सरई वृक्ष में विराजमान सरई श्रृंगारिणी माता

सरई श्रृंगारिणी माता का मंदिर 22•9’82″उत्तरी अक्षांश और 82•32’9″ पूर्वी देशांतर पर समुद्र तल से लगभग 910 फिट की ऊँचाई पर बलौदा ब्लाक के ग्राम डोंगरी में स्थित है। सरई श्रृंगारिणी डोंगरी में सरई पेड़ में विराजमान है। अंचल के लोगों की सरई श्रृंगारिणी माता के प्रति अपार श्रद्घा और …

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नव संवत्सर एवं चैत्र नवरात्रि का पर्व

विश्व भर में विभिन्न जाति-धर्म सम्प्रदायों के मानने वाले अपनी संस्कृति-सभ्यता अनुसार परंपरागत रूप से भिन्न-भिन्न मासों एवं तिथियों में नववर्ष मनाते हैं। एक जनवरी को जार्जियन केलेंडर के अनुसार नया वर्ष मनाया जाता है। परंतु हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि को नया वर्ष, …

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