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गौधन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व पोला तिहार

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जननी, महारानी कौशिल्या का मायका दक्षिण कोसल जिसे छत्तीसगढ़ के रूप में जाना जाता है, सदैव राष्ट्रीय सांस्कृतिक भावधारा का संवाहक रहा है।

पुण्य सलिला महानदी, शिवनाथ, सोंढुर, अरपा, पैरी, इंद्रावती आदि नदियों से आप्लावित यह उर्वर भूमि अपनी कृषि आधारित ग्रामीण पृष्ठभूमि के लिए विश्व विख्यात है।

यहाँ के सरल-हृदय, मेहनतकश किसान उत्सव धर्मी हैं। यही कारण है कि इसके वातावरण में अनेकानेक लोक पर्वों की खुशबू बिखरी होती है।

कृषि आधारित जीवन शैली होने के कारण सभी त्योहारों में किसी न किसी रूप में खेती में काम आने वाले जानवरों जैसे बैल, भैंसा, गाय आदि व औजारों नाँगर, कुदाली, राँपा-रँपली, हँसिया आदि की पूजा की जाती है।

हमारे सभी त्योहारों में आनंदवर्धिका, संस्कार संरक्षिका, शक्ति स्वरूपा नारियों का योगदान तो होता ही है उन्हें विशेष रूप से मान- सम्मान भी दिया जाता है ।

पूजा के लिए नांदिया बैल खरीदते हुए ग्राहक

छत्तीसगढ़ में हरेली से प्रारंभ होने वाले लोक पर्वों-त्योहारों में पोला का प्रमुख स्थान है। यह पर्व भादो मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। पोला तिहार कृषि कार्य में संलग्न गौधन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का पर्व है।

इस दिन किसान अपने बैलों को तालाब या नदियों में हल्दी तेल का उबटन लगाकर नहलाते हैं। उनके सींगों में रंग-रोगन किया जाता है। साथ ही साथ उनके नाक में कसे नाथ (रस्सी) को निकाल देते हैं और नया पहनाते हैं। उन्हें कौड़ी जड़े गहनों से सजाया जाता है। कोई-कोई बैलों को नवीन वस्त्र से ढँककर सजाते हैं।

घरों में महिलाएं ठेठरी, खुरमी, चीला, गुलगुला भजिया आदि परंपरागत पकवान बनाती हैं। बैलों को, गायों को खिलाने के लिए खिचड़ी भी पकाई जाती है। फिर थाल में आते सजाकर बैलों की पूजा की जाती है। उनके माथे पर रोली- चंदन, गुलाल का टीका लगाया जाता है। नारियल फोड़कर प्रसाद वितरण भी करते हैं।

गाँवों में संध्या के समय बैल दौड़ का आयोजन किया जाता है। कबड्डी खो-खो, पित्तुल, फुगड़ी, रस्सा खींच, दौड़ आदि खेलों का आयोजन किया जाता है। बच्चे हरेली के समय बाँस से जो गेड़ी बनाये थे उसमें चढ़कर गलियों में घूमते हैं।

महिलाओं के द्वारा सुआ नृत्य किया जाता है। पोला पर्व के दिन बच्चों के मिट्टी और लकड़ी से बने खिलौने जैसे बैल गाड़ी, चूल्हा-चुकिया पोरा आदि की पूजा की जाती है। अपने मामा के घर आए बच्चे इसे खेलते हैं। यह ऐसा महान लोक पर्व है जिसमें बच्चों को अपनी संस्कृति से जुड़ने का अवसर मिलता है।

नांदिया बैल एवं चुकी पोरा की दुकान

पोला का पर्व छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व कर्नाटक में विशेष रूप से मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ का तो यह प्रमुख त्योहार है ही। पोला-तीजा मनाने के लिए महिलाएँ अपने मायके आती हैं। चाहे वह नवविवाहिता हो या बुजुर्ग।

माता-पिता या भाइयों के द्वारा उन्हें भेंट स्वरूप नवीन वस्त्र व सिंगार की सामग्रियाँ प्रदान की जाती है। इसे पहनकर वे मिट्टी से बने पोला में रोटी भरकर गाँव के बाहर पोला पटकने (पोला को पटककर फोड़ने) जाती हैं।

ऐसी मान्यता है कि पोला को गाँव के बाहर फोडकर वे अपने मायके के कष्टों को मिटा देती हैं। पोला पर्व के मनाने के पीछे यह मान्यता भी है कि भगवान विष्णु ने अपने कृष्ण अवतार के समय नटखट बाल कन्हैया के रूप में अत्याचारी कंस के भेजे पोलासुर को मारा था। वह तिथि भादो माह की अमावस्या थी। उसी के यादगार में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

एक मान्यता यह भी है कि इस तिथि को धान की फसल गर्भाधारण करती है जिसे पोटरियाना कहते हैं। पोला पर्व के रूप में यह गर्भधारण संस्कार उत्सव भी है। इस प्रकार हम देखते हैं कि छत्तीसगढ़ में व्यापक रूप से मनाया जाने वाला पोला एक प्रमुख त्योहार है। यह पशुओं के प्रति, फसलों के प्रति व नारियों के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करने का महान लोकपर्व है।

आलेख

चोवा राम वर्मा ‘बादल’
हथबंद, छत्तीसगढ़

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