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संस्कृति

संस्कृति विभाग में लोक संस्कृति, नृत्य, त्यौहार-पर्व, परम्पराएं, शिष्टाचार, सामुदायिक त्यौहार एवं लोक उत्सव को स्थान दिया गया है।

रामसाय की सुरमोहनी भरथरी गायिका सुरुज बाई खांडे

“घोड़ा रोवय घोड़ासार म, हाथी रोवय हाथीसार म …मोर रानी ये या, महलों में रोवय …” भरथरी की विधा में इस गीत का राग-संगीत तबले की थाप, बांसुरी के सुर में जीवन की सच्चाई को ब्यक्त करता है। छत्तीसगढ़ को इतिहास को झांक कर देंखें तो यहाँ का इतिहास यहाँ …

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नवसस्येष्टि यज्ञ :पौराणिक ऐतिहासिक संदर्भ

भारत पर्वोत्सव की परम्परा अत्यन्त प्राचीन रही है फिर चाहे वह कोई भी त्यौहार क्यो न हो, हमारी उत्सवधर्मी संस्कृति में इसकी न केवल सदीर्घ परम्परा मौजुद है वरन् कई-कई प्रचलित रीतियों के साथ-साथ लोकमान्यताओं, अध्यात्मिक चेतना एवं धार्मिर्क आस्थाओं के बीज भी विद्यमान है। ऋतुराज वसंत की पूर्णाहुति पर …

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वसंत पंचमी से रंगपंचमी तक मनाया जाता रहा मदनोत्सव

प्रकृति से लेकर चराचर जगत का अभिनव स्वरूप जब नित निखरता सृजन की ओर अग्रसर होता है तो ऐसे समय में ऋतुराज वसंत का पदार्पण होता है। सूर्य देव के उत्तरायण होते ही समूची प्रकृति भी अपना कलेवर बदलती मनमोहक हो उठती है। वसंत के आगमन से पेड़- पौधों के …

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जानिए बस्तर के घोटुल को

इसे बस्तर का दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिये कि इसे जाने-समझे बिना इसकी संस्कृति, विशेषत: इसकी जनजातीय संस्कृति, के विषय में जिसके मन में जो आये कह दिया जाता रहा है। गोंड जनजाति, विशेषत: इस जनजाति की मुरिया शाखा, में प्रचलित रहे आये “घोटुल” संस्था के विषय में मानव विज्ञानी …

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मान दान का पर्व : छेरछेरा तिहार

छेरछेरा त्यौहार छत्तीसगढ़ का लोक पर्व है । अंग्रेज़ी के जनवरी माह में व हिन्दी के पुष पुन्नी त्यौहार छेरछेरा को मनाया जाता है। त्यौहार के पहले घर की साफ़-सफ़ाई की जाती है। छत्तीसगढ़ में धान कटाई, मिसाई के बाद यह त्यौहार को मनाया जाता है। यह त्यौहार छत्तीसगढ़ का …

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छत्तीसगढ़ की घुमन्तू जनजाति : नट

अनेकता में एकता ही भारतीय संस्कृति है और उस अनेकता के मूल में निश्चित रुप से भारत के विभिन्न प्रदेशों में स्थित जनजातीय है। भारत में घुमंतू जनजातियों के लोग हर क्षेत्र में निवास करते हैं इनकी जीवन पद्धति अन्य लोगों से भिन्न है। घुमंतू जनजातियों की वेशभूषा, खान पान, …

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भुंजिया जनजाति का चांउर धोनी परब

छत्तीसगढ़ की संस्कृति अद्भुत है। वन्य प्रांतर, नदियों और पहाड़ियों से आच्छादित छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है। मैदानी इलाकों में अनेक परंपराएं देखने को मिलती है। वैसे ही सुदूर वनांचल क्षेत्रों में निवासरत जनजातियों की भी अपनी समृद्ध परंपरा और संस्कृति है। छत्तीसगढ़ में निवासरत कई जनजातियों …

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गौवंश का गुरुकुल : दईहान

छत्तीसगढ़ में गौ-पालन की समृद्ध परंपरा रही है। पहले गांवों में प्राय: हर घर में गाय रखी जाती थी और घर में अनिवार्यतः कोठा(गौशाला)भी हुआ करती थी। अब घर से गौशाला गायब है और गौशाला के स्थान पर गाड़ी रखने का शेड बना मिलता है; जहां गाय की जगह मोटरसाइकिल …

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शौर्य और श्रृंगार का लोकनृत्य

कार्तिक एकादशी से छत्तीसगढ़ के गाँवों और नगरों की गलियों में उल्लास और आनंद से सराबोर राउतों की टोलियाँ अपने संग गड़वा बाजा की मनमोहक थाप पर झूमते-नाचते हुए जब निकलती हैं तब समझिये राउत समाज का देवारी पर्व प्रारंभ हो गया है। इस पर्व में राउत नाचा का आयोजन …

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गौधन अलंकरण एवं शृंगार : सुहई

भारतीय समाज में गोधन अलंकर एवं पूजा की परंपरा है। तदनुरूप राउत जाति के लोग भी गौ पूजा अलंकरण में विश्वास करते है। वृद्ध और युवा पीढ़ी के मध्य विचारों में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन न आने के कारण दोनों पीढ़ियों के द्वारा समान रूप से परंपरागत ढंग से …

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