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Tag Archives: छत्तीसगढ़

एक ऐसा स्थान जहाँ के पत्थर बोलते हैं

भारत में बहुत सारे स्थान ऐसे हैं जहाँ बोलते हुए पत्थर पाये जाते हैं, पत्थरों पर आघात करने से धातु जैसी ध्वनि निकलती है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा का ठिनठिनी पखना हो या कर्णाटक के हम्पी का विट्ठल मंदिर या महानवमी डिबा के पास का हाथी। इन पर चोट करने से …

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कलचुरीकालीन मंदिर में शिल्पांकित हैं रामायण के प्रसंग

छत्तीसगढ़ में कलचुरी शासक जाज्वल्य देव की नगरी जांजगीर है। यहाँ का प्राचीन मंदिर कल्चुरी काल की स्थापत्य एवं मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण है। मंदिर में जड़े पत्थर शिल्प में पुरातनकालीन परंपरा को दर्शाया गया है। अधूरा निर्माण होने के कारण इसे “नकटा” मंदिर भी कहा जाता है। इतिहास के …

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हिंदू धर्म उद्धारक शाक्यवंशी गौतम बुद्ध

भारतीय धर्म दर्शन तो सनातन है, अगर ऋग्वेद को भारतीय सभ्यता और धर्म का आधार मानें तो कम से कम 10,000 वर्ष से देश के सामाजिक, सांस्कृतिक तत्वों की निरंतरता बनी हुई है। किसी देश में रहने वाले लोगों की पहचान का आधार उनकी भाषा है जैसे फ्रांस के लोग …

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संग्रहालय दिवस एवं महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय रायपुर

भविष्य के लिए मानव बहुत कुछ सहेजने के साथ अतीत को भी सहेजता है जिससे आने वाली पीढ़ियों को ज्ञात हो सके कि उनके पूर्वजों का अतीत कैसा था? यही सहेजा गया अतीत इतिहास कहलाता है। बीत गया सो भूत हो गया पर भूत की उपस्थिति धरा पर है। सहेजे …

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छत्तीसगढ़ के इतिहास में नई कड़ियाँ जोड़ता डमरुगढ़

डमरु उत्खनन से जुड़ती है इतिहास की विलुप्त कड़ियाँ छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात राज्य सरकार ने प्रदेश के पुरातात्विक स्थलों के उत्खनन एवं संरक्षण पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया। इसके फ़लस्वरुप सिरपुर, मदकूद्वीप, पचराही में उत्खनन कार्य हुआ तथा तरीघाट, छीता बाड़ी राजिम तथा डमरु में उत्खनन कार्य हुआ। …

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धन धान्य एवं समृद्धि के लिए कठोरी पूजा

वनवासी बाहुल जिला सरगुजा की प्राकृतिक सौम्यता हरियाली लोक जीवन की झांकी, सांस्कृतिक परंपराएं, रीति-रिवाज एवं पुरातात्विक स्थल बरबस ही मनमोह लेते हैं। वैसे तो सरगुजा की लोक संस्कृति में अनेकों त्योहार पर्व मनाए जाते हैं उनमें कठोरी पूजा मनाए जाने की परंपरा प्राचीन काल से रही है। हर साल …

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राजिम त्रिवेणी स्थित कुलेश्वर मंदिर एवं संरक्षण प्रक्रिया

राजिम त्रिवेणी संगम स्थित यह मंदिर राज्य संरक्षित स्मारक है। तथापि धार्मिक स्थल होने के कारण यह मंदिर पूजित है। इस मंदिर की व्यवस्था, पूजा तथा सामान्य देखभाल स्थानीय ट्रस्ट के अधिन है। यहॉं पर नियमित रूप से दर्शनार्थी आते रहते हैं। शिवरात्रि के पर्व पर राजिम में विशाल मेला …

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केवला रानी : देवार लोकगाथा

भारत का सांस्कृतिक इतिहास अत्यंत गौरवशाली है। यहाँ प्रचलित संस्कारों, गीतों, लोकाचारों, अनुष्ठानों, व्रत और तीज-त्यौहारों में कथाओं-गाथाओं का बड़ा प्रासंगिक व मार्मिक समायोजन होता है। इन्ही गाथाओं को पुनः स्मरण करने के लिए ही तीज-त्यौहार व पर्व मनाए जाते हैं। वैसे भी भारत पर्वों व उत्सवों का देश है। …

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नायक बनजारों की देवी बंजारी माता

नवा राजधानी अटल नगर से लगभग 5 किलोमीटर एवं अभनपुर से 11 किमी की दूरी पर बंजारी ग्राम स्थित है। इस छोटे से ग्राम में लगभग 45 घर हैं, इन 45 घरों में राजपुत, धुव्र जनजाति, पैनका एवं राऊत लोग निवास करते हैं। कुर्रु और बंजारी इन दोनों गांव की …

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सतबहनिया में से एक सियादेवी : नवरात्रि विशेष

सियादेई बालोद जिले का प्रसिद्ध धार्मिक एवं पर्यटन स्थल है। नवरात्रि में यहाँ दर्शनार्थी श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, वैसे तो आस पास के क्षेत्र से बारहों महीने यहाँ पर्यटक एवं श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं, परन्तु नवरात्रि पर्व पर बड़ी संख्या में आराधक पहुंचते हैं। यह स्थान बालोद जिला मुख्यालय …

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