अठारहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध। ब्रिटिश काल में अंग्रेजों का राज्य विस्तार इतना अधिक था कि उनके राज्य में कभी सूरज अस्त नहीं होता था, ऐसे विशाल साम्राज्य को चुनौती देकर उनके विरुध्द विद्रोह का शंखनाद करने वाली छ्त्तीसगढ में एक छोटी-सी रियासत थी सोनाखान। सोनाखान की शल्य-श्यामला भूमि में वीर …
Read More »दक्षिण कोसल के वनों की पहचान : साल वृक्ष
दक्षिण कोसल के वनों की पहचान साल यानी सरई, सखुआ और न जाने स्थानीय लोग इसे क्या-क्या नाम से जानते-पहचानते हैं। साल जिसका वैज्ञानिक नाम सोरिया रोबस्टा है। अपनी सैकड़ों खूबियों की वजह से आज यह वृक्ष न सिर्फ पवित्र माना जाता है, यह पूजनीय भी है। आदिकाल से यह …
Read More »आदिमानवों की शरणस्थली हितापुंगार घुमर
बस्तर अपनी जनजातीय संस्कृति एवं प्राकृतिक सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है । बस्तर का प्रवेश द्वार केसकाल ही बस्तर की जनजातीय कला एवं संस्कृति, धरोहर के रूप में अनेक प्राचीन भग्नावशेष, कल-कल छल-छल करते झरने एवं जलप्रपात बस्तर की प्राकृतिक एवं पुरातात्विक वैभव का आभास करा देता है। केसकाल में …
Read More »भारत की नाथ सन्यास परम्परा एवं योगी आदित्यनाथ
भारत में नाथ परम्परा प्राचीन काल से ही विद्यमान है, नाथ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है स्वामी तथा जगत के नाथ आदिनाथ (भगवान शंकर) को प्रथम नाथ माना जाता है, इन्हीं से नाथ संप्रदाय का प्रारंभ होता है। इसके पश्चात अन्य नाथ प्रकाशित होते हैं, जिनमें भगवान दत्तात्रेय एवं …
Read More »दक्षिण कोसल का वन वैभव : उदंती अभयारण्य
उदंती अभयारण्य वर्ष 1984 में 237.5 वर्ग किमी के क्षेत्रफ़ल में स्थापित किया गया है। छत्तीसगढ़ उड़ीसा से लगे रायपुर-देवभोग मार्ग पर स्थित है। समुद्र सतह से इसकी ऊंचाई 320 से 370 मी है। अभयारण्य का तापमान न्यूनतम 7 सेंटीग्रेड से अधिकतम 40 सेंटीग्रेड रहता है। पश्चिम से पूर्व की …
Read More »कबीरपंथियों के आस्था का केन्द्र दामाखेड़ा
छत्तीसगढ़ में कबीरपंथियों की तीर्थ स्थली दामाखेड़ा, रायपुर बिलासपुर मार्ग पर सिमगा से 10 किमी दूरी पर एक छोटा सा ग्राम है। यह कबीरपंथियों की आस्था का सबसे बड़ा केन्द्र माना जाता है। कबीर साहब के सत्य, ज्ञान तथा मानवतावादी सिद्धांतों पर आधारित दामाखेड़ा में कबीर मठ की स्थापना वर्ष …
Read More »दक्षिण कोसल के प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्र
प्रागैतिहासिक काल के मानव संस्कृति का अध्ययन एक रोचक विषय है। छत्तीसगढ़ अंचल में प्रागैतिहासिक काल के शैलचित्रों की विस्तृत श्रृंखला ज्ञात है। पुरातत्व की एक विधा चित्रित शैलाश्रयों का अध्ययन है। चित्रित शैलाश्रयों के चित्रों के अध्ययन से विगत युग की मानव संस्कृति, उस काल के पर्यावरण एवं प्रकृति …
Read More »आस्था और विश्वास का केन्द्र : नर्मदा
सदियों से भारत अनेक संस्कृतियों का सगम स्थल रहा है। विभिन्न संस्कृतियाँ यहां आईं, पुष्पित, पल्लवित हुई और भारतीय संस्कृतियों का संगम स्थल रही। धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से प्रसिध्द हुई और अपने साथ आज भी किसी न किसी कहानी को लिए हुए उस युग का गौरवगान कर रही है। …
Read More »पुसौर के धातु शिल्पकार एवं बर्तन उद्योग
किसी ज़माने में राजे -महाराजे भले ही सोने -चाँदी के बर्तनों में भोजन करते रहे हों, लेकिन उस दौर में सामान्य प्रजा के घरों में काँसे और पीतल के बर्तनों का ही प्रचलन था। आधुनिक युग में भी अधिकांश भारतीय घरों में काँसे और पीतल के बर्तनों की खनक लम्बे …
Read More »छत्तीसगढ़ का सीतानदी अभयारण्य
सीतानदी अभयारण्य की स्थापना 1974 में हुई थी एवं इसका क्षेत्रफ़ल 553 .36 वर्ग किमी है। यहाँ की विशेषताओं में 1600 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा, तापमान न्यूनतम 8.5 से अधिकतम 44.5 डिग्री सेल्सियस पर रहता है। सीतानदी के आधार पर अभयारण्य को सीतानदी नाम दिया गया है। जो कि अभयारण्य में …
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