Home / इतिहास / आस्था और विश्वास का केन्द्र : नर्मदा

आस्था और विश्वास का केन्द्र : नर्मदा

सदियों से भारत अनेक संस्कृतियों का सगम स्थल रहा है। विभिन्न संस्कृतियाँ यहां आईं, पुष्पित, पल्लवित हुई और भारतीय संस्कृतियों का संगम स्थल रही। धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से प्रसिध्द हुई और अपने साथ आज भी किसी न किसी कहानी को लिए हुए उस युग का गौरवगान कर रही है।

भारत में अनेक स्थान हैं, जो धार्मिकता से ओतप्रोत हैं। चाहे वो नदियां हो, जंगल-पहाड़ हों या कोई तीर्थ स्थान। ये हमारी धार्मिक आस्था और विश्वास के प्रतीक हैं। ऐसा ही एक स्थान है- “नर्मदा।” जिसे स्थानीय भाषा में ‘नरबदा’ कहकर संबोधित किया जाता है। नर्मदा का आशय अमरकंटक से निकलने वाली पुण्य सलीला नर्मदा से कतई नहीं है। पर इसकी कहानी कहीं उससे जुड़ी हुई है।

छ्त्तीसगढ़  के राजनांदगांव जिले के गण्डई कस्बे से 6 किमी॰ दूर द्क्षिण में स्थित है यह नर्मदा। इस अंचल विशेष का प्रसिध्द मेला और स्थानीय लोगों की आस्था और श्रध्दा का केन्द्र बिन्दु। नर्मदा की प्रसिध्दि नर्मदा कुण्ड से है। जहां से गर्म जल की अजस्र धारा अनवरत प्रवाहित हो रही है। ऐसी धारा जो कभी छिजने का नाम नहीं लेती। चाहे, कितनी भी गर्मी क्यों न हो? बारहों माह निरंतर वेग से प्रवाहित हो रही है। यहां आकर हजारों लोग पवित्र स्नान करते हैं और अपने को पुण्य का भागी बनाते हैं।

नर्मदा कुण्ड ग्राम खैरा के पास स्थित है। कुण्ड की प्रसिध्दि के कारण एक और बस्ती बस गई है, जिसे नर्मदा कहा जाता है। यहां अधिसंख्या मुसलमान हैं। दोनों बस्ती की आबादी लगभग एक हजार होगी। नर्मदा हमारी धार्मिक आस्थाओं का संगम स्थल ही नहीं, बल्कि आवागमन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यंहा से राजनांदगांव, डोंगरगढ़ बालाघाट, भोपाल, कर्वधा, जबलपुर और बिलासपुर के लिये सड़क साधन उपल्ब्ध है।

नर्मदा कुण्ड के किनारे नर्मदा देवी का प्रसिध्द मंदिर है। शक्ति स्वरुपा और जीवन दायिनी नर्मदा देवी में चैत्र और कुंवार महीने में जंवारा बोया जाता है, जहाँ श्रध्दालु भक्त अपनी मनोकामना पूर्ण करने तेल और घृत की ज्योति जलाते हैं। चूंकि इसी समय डोंगरगढ का प्रसिध्द मेला भी होता है। अत: इस मार्ग से डोंगरगढ जाने वाले दर्शनार्थी नर्मदा मइया के दर्शन कर दोहरे पुण्य के भागी बनते हैं। नर्मदा में नर्मदा मइया के अतिरिक्त राम मंदिर, कृष्ण मंदिर, लोधेश्वर (शिव) मंदिर, कबीर, कुटीर व बाबा गुरुघासी दास का जैतखाम दर्शनीय है।

नर्मदा का मंदिर लगभग तीन-चार सौ साल पुराना प्रतीत होता है। किन्तु यहां रखी प्रस्तर प्रतिमाएँ क्ल्चुरि कालीन 10वीं-11वीं ई॰ की है। इन मूर्तियों का शिल्प वैभव बड़ा सुन्दर और कलात्मक है। इनमें प्रमुख गणेश, वीरभ्रद, देवी नर्मदा, बैकुण्ठधाम आदि प्रमुख हैं। अंल्कृत नंदी की प्रतिमा, शिव लिंग व जलहरी भी यहाँ स्थापित है। नर्मदा मंदिर के शिखर व जंघा भाग में मध्य कालिन कुछ मूर्तियाँ विद्यमान है। इनमें रावण, कच्छपावतार, मतस्यवतार, नर्सिंह अवतार का सुंदर अंकन है। अत: नर्मदा मंदिर का अपना पुरातात्विक महत्व भी है।

नर्मदा का प्रसिध्द मेला प्रतिवर्ष माघ-पूर्णिमा को तीन दिनों तक भरता है। जहाँ लोग हजारों की संख्या में नर्मदा स्नान व नर्मदा मइया के दर्शन के लिए आते हैं। यह इस अंचल का सबसे बड़ा मेला है। जहाँ दैनिक जरुरत की चीजों से लेकर वस्त्रभूषण तक बिकने के लिए आते हैं। मनोरंजन के साधन, झूला, सर्कस सब सुलभ होते हैं। मेला, मड़ई तो पारस्परिक स्नेह और प्रेम के आदान-प्रदान के लिए ही जाने जाते हैं। जहां लोग देवी दर्शन व मनोरंजन के साथ-साथ अपने सुख-दुख को सहज रुप में बांट लेते हैं। बैल गाड़ियों में चढकर दूर-दूर से लोग सूरज उगने से पहले यहां पहुच जाते हैं।

सायकल की ठीन-ठीन और मोटर के पोंप-पोंप से तो आने-जाने वालों के कान भर जाते हैं। ऐसी भीड़ जो एक ही स्थान कि ओर चारों दिशाओं से किसी चुम्बकीय शक्ति के जरिये खींची जा रही हो। मेला की सुव्यवस्था स्थानीय ग्राम पंचायत व मंदिर ट्र्स्ट समिति द्वारा की जाती है। नर्मदा मेला के साथ-साथ नर्मदा मइया व नर्मदा कुण्ड के यहाँ अवतरण की कथा कम रोचक नहीं हैं। इस नर्मदा कुण्ड के लिए दो राजाओं के बीच जो युध्द हुआ वह तो और भी रोमांचित कर देने वाला अविश्वसनीय, किन्तु सत्य है। जो आज भी यहाँ जनमानस में व्याप्त है।

कहा जाता है कि खैरागढ रियासत मे माँ नर्मदा के परम भक्त एक साधु थे। वे अक्सर नर्मदा स्नान के लिए पैदल मंडला जाया करते थे। पर्व विशेष में तो उनकी उपस्थिति मंडला में अनिवार्य होती थी। साधु की इस भक्ति से नर्मदा बड़ी प्रभावित हुई। नर्मदा मइया ने साधु की भक्ति से प्रसन्न होकर कहा – ”बेटा तुमने मेरी बड़ी भक्ति की है। मैं तुम से प्रसन्न हूं। तुम इतनी दूर चलकर आते हो, तुम्हारी पीड़ी मुझसे देखी नही जाती। इसलिए मैं स्वत: तुम्हारे नगर में आकर प्रकट होऊंगी।” साधु नर्मदा मइया की इस महती कृपा से गदगद हो गये और अपने स्थान पर आकर नर्मदा माँ के प्रकट होने की प्रतीक्षा करने लगे।

इधर नर्मदा मइया एक साधारण स्त्री का रुप धारण कर खैरागढ के लिए प्रस्थान हुई। दिनभर चलती, रात को विश्राम करती। फिर भिनसारे अपने गन्तव्य को चल पड़ती। पहेट के समय एक राऊत (यादव) अपनी गायों को पछेला” ढीलकर वहाँ चरा रहा था। जहाँ वर्तमान में नर्मदा कुण्ड है। छ्त्तीसगढ में राऊत मुंदरहा (भिनसरे) अपनी गायें ढीलकर चराता है। इस चरवाही को पछेला कहा जाता हैं। इसी समय नर्मदा मइया यहां से गुजर रही थी। संयोगवश राऊत की एक गाय खेत में चरने लगी। उस गाय का नाम भी नर्मदा था। राऊत ने कहा- “ये नर्मदा कहाँ जाबे?”अपना नाम सुनकर नर्मदा मइया ठिठक गई। उसने राऊत से पूछा-“भईया यह कौन सा गाँव है? राऊत ने कहा – खैरा।

खैरा नाम सुनकर नरमदा मैया ने सोचा, शायद यही तो उसका गंतव्य है। खैरा सुनकर नरमदा मैया उसी स्थान पर अजस्र जलधारा के रुप में धरती से फ़ूट पड़ी। खैरा और खैरागढ़ में गढ़ को छोड़ दें तो प्रथमत: खैरा ही है। कहा जाता है कि खैरागढ़ का नामकरण भी खैर वृक्षों की अधिकता के कारण ही हुआ है। तब से नरमदा मैया यहाँ मूर्ति के रुप में स्थापित है एवं गर्म जलधारा के रुप में प्रवाहित है। चूंकि नरमदा की जलधारा का प्रवाह-स्थान गंडई जमींदारी में है, अत: तत्कालीन गंडई जमींदार ने उक्त स्थान पर भव्य मंदिर एवं कुण्ड का निर्माण कराया।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान नरमदा कुण्ड से दस कदम दक्षिण में एक नाला है, जो तत्कालीन छुईखदान रियासत की सीमा रेखा है।  नरमदा मैया खैरागढ़ तो नहीं जा पाई फ़िर भी माँ की इस कृपा से साधू एवं खैरागढ़ नरेश अति आनंदित हुए। नरमदा कुण्ड से खैरागढ़ की दूरी 26 किलोमीटर है। सभी रियासतों एवं जमीदारी के रुप में यहाँ आकर कुण्ड में स्नान कर नरमदा मैया के दर्शन से कृतार्थ होते हैं। कुछ समय बाद एक और घटना घटी, जिसमें भक्ति की शक्ति का मूल स्रोत छिपा हुआ है।

सूर्योदय से पहले नरमदा स्नान को लेकर खैरागढ़ की रानी और गंडई की रानी लक्ष्मीबाई के मध्य विवाद हो गया। इस वाद विवाद से खैरागढ़ की रानी इतनी कुपित हुई कि उन्होंने खैरागढ़ जाकर अपने राजा को गंडई जमींदारी से युद्ध के लिए उकसाया और कहा कि- “जब तक आप गंडई जमीदारी को प्राप्त कर लक्ष्मी बाई को मेरी दासी नहीं बनाएंगे तब मैं अन्न जल ग्रहण नहीं करुंगी।

तब खैरागढ़ एक विशाल रियासत और गंडई जमींदारी थी। खैरागढ़ नरेश ने गंडई जमींदारी पर आक्रमण की योजना बनाई। खैरागढ़ नरेश के पास भरपूर सैन्य शक्ति थी। तलवार, बंदूक, भाले सबकुछ। पर गंडई जमींदारी के पास सैन्य शक्ति नहीं थी। ऐसी स्थिति में गंडई जमीदार का परास्त होना स्वाभाविक था। जब लक्ष्मी बाई को इस आक्रमण की जानकारी हुई तब भी वह विचलित नहीं हुई।

लक्ष्मी बाई धार्मिक स्वभाव की थी। भंवरदाह (भांमरी देवी) इनकी इष्ट देवी है। भंवरदाह वह स्थान है जहाँ मधुमक्खीयों के सैकड़ों छत्ते हैं। यह स्थान गंडई से आठ किलोमीटर पूर्व घने जंगल आज भी उनके वर्तमान वंशजों के द्वारा भंवरदाह की पूजा अर्चना की जाती है। रानी लक्ष्मी बाई अपनी ईष्ट देवी भामरी देवी की पूजा-प्रार्थना में तल्लीन हो गई। तब तक खैरागढ़ की विराट सेना नरमदा कुण्ड तक पहुंच चुकी थी। रानी लक्ष्मी बाई से सैन्य शक्ति के अभाव में अपने कुल की आन बान शान की रक्षा की प्रार्थना की। इस प्रार्थना से भंवरदाह के छत्तों से हजारों की संख्या में मधुमक्खियाँ उड़कर खैरागढ़ के सैनिकों पर टूट पड़ी।

मधुमक्खियाँ सैनिकों को डंक मारने लगी, सैनिक व्याकुल होकर तलवार, बंदूक, भाले छोड़कर भागने लगे। मधुमक्खियाँ सैनिकों को दूर खदेड़कर ही वापस आई। इस दैवीय कृपा से गंडई जमींदारी की रक्षा हुई। तत्कालीन गंडई जमींदार ने खैरागढ़ के सैनिंको द्वारा छोड़े गये उन बंदूक भालों को अपने आंगन में दफ़न कर दिया और उन पर चबूतरे का निर्माण कराया।  यह है कि भक्ति की शक्ति, आस्था एवं विश्वास की जीत।

नरमदा का यह पवित्र कुण्ड भक्ति और शक्ति इस कथा को अपनी निर्मल जलधारा के रुप में आज भी कह रहा है। अब न कहीं द्वेष है न कहीं ईर्ष्या, सभी लोग आते हैं स्नान करते हैं और नरमदा मैंया के दर्शन कर कृत कृत होते हैं। प्रेम और भाई चारे का प्रतीक यह  नरमद सबकी आस्था का केन्द्र है। ग्राम नरमदा में अधिसंख्यक मुसलमान परिवार हैं। जो यहाँ हर तरह का सहयोग करते हैं।

यहाँ आपसी समन्वय और सौहाद्र की सुंदर मिसाल माँ नरमदा की विशेष कृपा है। सबकी यह माता है, सब इसकी संतान।  नरमदा कुण्ड से निकली जलधारा एक छोटी नदी के रुप में आगे चलकर सुरही नदी में समाहित हो गई। सुरही नदी जिस पर पैलीमेटा में बांध बना है। यह बाँध गंडई अंचलवासियों का जीवनदाता है। पैलीमेटा बांध से ही इस अंचल में सिंचाई होती है। आस्था और विश्वास का केन्द्र नरमदा सबकी मनोकामना पूर्ण करे।

आलेख

डॉ. पीसी लाल यादव
‘साहित्य कुटीर’ गंडई पंड़रिया जिला राजनांदगांव(छ.ग.) मो. नं. 9424113122

                

About hukum

Check Also

आध्यात्म और पर्यटन का संगम गिरौदपुरी का मेला

नवगठित बलौदाबाजार भाटापारा जिलान्तर्गत बलौदाबाजार से 45 कि मी पर जोंक नदी के किनारे गिरौदपुरी …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *