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Tag Archives: डॉ पीसी लाल यादव

छत्तीसगढ़ी फाग का लोकरंग

भारतीय जीवन और संस्कृति में जो सर्वाधिक आभामय और विविध रंगी हैं, वह ‘लोक’ ही है | लोक केवल गाँव में ही नहीं बसता, बल्कि शहरों में भी बसता है | यह वह लोक है जिसे शहरी जीवन और सुविधाओं ने उसे उसकी जड़ से काटने की कोशिश की, पर …

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कुदरत का नजारा, धाँस की जलधारा

नदी-कछार, जंगल-पहार, खेत-खार, पशु-पक्षी यानी कि प्रकृति ने मेरे बालमन को सदैव अपनी ओर आकर्षित किया है। 40 वर्षों तक पढ़ते-पढ़ाते स्कूल में बच्चों के बीच रहा। सेवा-निवृत्ति के बाद आज भी मेरे अंतस मे बाल स्वभाव नित हिलोरें लेता है। बच्चों को देखकर मन स्मृतियों में खो जाता है। …

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छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में नदियों का महत्व

भारतीय संस्कृति में नदियों का बड़ा सम्मान जनक स्थान है। नदियों को माँ कहकर इनकी पूजा की जाती है। ये हमारा पोषण अपने अमृत समान जल से करती हैं। अन्य सभ्यताओं में देखें तो उनमें नदियों का केवल लौकिक महत्व है। लेकिन भारत में लौकिक जीवन के साथ– साथ पारलौकिक …

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नरोधी नर्मदा जहाँ झिरिया से बुलबुलों में निकलता है जल

लोक गाँवों में बसता है। इसलिए लोक जीवन में सरसता है। निरसता उससे कोसों दूर रहती है। लोक की इस सरसता का प्रमुख कारण, प्रकृति से उसका जुड़ाव है। लोक प्रकृति की पूजा करता है। आज भी गाँवों में जल को वह चाहे नदी हो, या तालाब का, किसी झरने …

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रमणीय बुजबुजी एवं नथेला दाई

प्रकृति बड़ी उदार है। प्रकृति के सारे उपादान लोक हित के लिए हैं। नदी जल देती है। सूरज और चांँद प्रकाश देते हैं। पेड़ फूल, फल और जीवन वायु देते हैं। प्रकृति का कण-ंउचयकण लोक हितकारी है। इसलिए प्रकृति और पर्यावरण को सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। परन्तु अपने कर्तव्यों …

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प्रदक्षिणा की संस्कृति : राजिम की पंचकोशी यात्रा

जीवन के लिए गति आवश्यक है। गति से ऊर्जा मिलती है। केवल मनुष्य ही नही, अपितु प्रकृति के लिए यह आवश्यक है। ग्रह-उपग्रह, नक्षत्र सब गतिमान हैं। इनकी यह गतिमानता जीव-जन्तुओं व प्रकृति के अन्य उपादानों में ऊर्जा भरती है। समूची सृष्टि गति के अधीन है। गति भी कैसी? रैखिक …

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लोक संस्कृति का जीवन सरिताएं

पर्यावरण दिवस विशेष आलेख भारतीय संस्कृति में नदियों का बड़ा सम्मान जनक स्थान है। नदियों को माँ कहकर इनकी पूजा की जाती है। ये हमारा पोषण अपने अमृत समान जल से करती हैं। अन्य सभ्यताओं में देखें तो उनमें नदियों का केवल लौकिक महत्व है। लेकिन भारत में लौकिक जीवन …

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परम्परा के संवाहक भ्रमणशील कथा गायक : बसदेवा

भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने में भ्रमणशील समुदायों का बड़ा योगदान रहा है। ये समुदाय जिन्हें घुमंन्तु जातियों के नाम से जाना पहचाना जाता है । यायावरी संस्कृति के पोषक ये जातियाँ हमारी परम्पराओं के संवाहक हैं, जो कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक और गुजरात से लेकर असम तक …

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बकरकट्टा के बैगा और उनका देवलोक

बस्तर और सरगुजा के बीहड़ वन प्रांतरों से आच्छदित छत्तीसगढ़ का पश्चिमी भाग भी वनों से आच्छादित है, जो मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र प्रदेशों से लगा हुआ है। राजनांदगाँव जिला छत्तीसगढ़ का पश्चिमी भाग है। इसी राजनांदगाँव जिले के छुईखदान विकासखंड में बैगा जनजाति का निवास है। जिला मुख्यालय से लगभग …

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कोल जनजाति का देवलोक

भारतीय समाज और संस्कृति इंद्रधनुष की तरह विविध रंगी है। जिसमें जनजाति समुदायों के सांस्कृतिक छवि की पृथक ही पहचान है। उन जनजातियों में ‘कोल‘ प्रमुख है। कोल जनजाति भारत की प्राचीन जनजाति है और देश के विभिन्न भागों में यह निवास करती है। कोल जनजाति के नामकरण को लेकर …

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