सियादेई बालोद जिले का प्रसिद्ध धार्मिक एवं पर्यटन स्थल है। नवरात्रि में यहाँ दर्शनार्थी श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, वैसे तो आस पास के क्षेत्र से बारहों महीने यहाँ पर्यटक एवं श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं, परन्तु नवरात्रि पर्व पर बड़ी संख्या में आराधक पहुंचते हैं। यह स्थान बालोद जिला मुख्यालय से लगभग 16-17 किलोमीटर दूर घने जंगल के बीच नारागांव स्थित है।
सिया देवी की कथा प्रसिद्ध है जिसके अनुसार सियादेवी की सात बहिनें थी। सभी बहिनें बस्तर राज में ब्याही गई थी। यह सात बहिनें प्रतिदिन बारी-बारी से अपने जेठ के लिए खाना लेकर खेत जाया करती थी। एक दिन घर में काम अधिक होने के कारण खाना ले जाना भूल गई।
बाद में याद आने पर छोटी बहू खाना लेकर खेत पहुंची तो देखा जेठ भूख के मारे प्यास से व्याकुल होकर गुस्से से बैल को पीट रहा था। यह देख छोटी बहू डर गई और अपने जेठ को बिना खाना दिए घर वापस आ गई। उसने घर में जेठ के गुस्सा होने के बारे में अपनी बहनों को बताया।
सभी बहिनें अत्यधिक डर गई और डर के मारे सभी अपने ससुराल छोड़ देने की योजना बनाई। घर से निकल कर वह जा रही थी कि रास्ते में गांव के रिश्ते से एक जेठ दिखाई दिया वह कपड़ा बनाने के लिए रूई खरीद कर वापस आ रहा था। जेठ उन सात बहिनों को आते देखकर समझ गया कि ये सभी बिना बताए घर से निकलकर अपने मायके जा रही है। यह सोच समझकर उसने रूई के गट्ठे को बीच रास्ते में रख दिया।
गोंड़ जाति में नारी को शक्ति के रूप में आदर दिया जाता है इसी कारण लड़की के मां-बाप लड़के की तलाश नहीं करते बल्कि लड़के के मां-बाप लड़की की तलाश करते हैं। वधु को पुत्रवधु के साथ कुलवधु के रूप में भी सम्मान दिए जाने की परंपरा है।
कुल की परंपरा रीति -रिवाज पूजा पाठ में उनका सम्मानीय स्थल होता है। इस जाति में जेठ का स्थान सम्मानजनक होता है। जेठ के सामने आना कोई वस्तु या चीज को छूना भी वर्जित रहता है। जेठ और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद प्रेम छोटे भाई बहू के प्रति पुत्र-पुत्री के समान होता है।
रास्ते में रुई के गट्ठा को देखकर सभी बहिनें असमंजस में पड़ गए। गट्ठर को पार करना सम्मान देने की परंपरा में उल्टा था, तब सभी बहिनें बिना बताए गट्ठर को पार किये। अलग-अलग दिशा में आगे बढ़ गई। रिश्ते के जेठ ने गांव आकर इसकी सूचना उनके सगे जेठ को दी।
कुल परिवार की मान मर्यादा को ध्यान में रखते हुए जेठ बहुओं को घर वापस लाने के लिए निकल पड़ा। जैसे ही वह गट्ठर के पास गए तो देखते हैं कि बहू अलग-अलग दिशा में आगे बढ़ गईं। तब वे अपने हाथ में रखे बांस की लकड़ी में मंत्र पढ़कर जमीन पर गाड़ देता है मंत्र शक्ति के तुरंत प्रभाव से सभी बहिनें अपने -अपने स्थान में मंत्र बंधन से स्थिर हो गई।
ग्राम बरही में दुलार दाई, ग्राम नारा में सियादेवी, मुल्ले-गुड़ा में रानी माई, झलमला में गंगा मैया, बड़भूम में कंकालीन माई, गंगरेल में अंगारमोती और धमतरी में बिलाई माता के रुप में स्थिर हो गई। रुई का गट्ठर के रूप में तथा मंत्र पढ़े हुए बांस की लकड़ी बांस के झुंड के रूप में आज भी दिखाई देता है।
पर्यटन के दृष्टि से भी सियादेवी स्थल का बड़ा ही महत्व है। 15-20 फीट के ऊपर से गिरता हुआ दूधिया झरना मन को मोह लेता है। इस प्राकृतिक स्थल में दूर-दूर के लोग पिकनिक मनाने आते हैं साथ ही मां सियादेवी के दर्शन पाकर पर्यटकगण अपने को धन्य मानते हैं।