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Tag Archives: छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम 1857 से पूर्व प्रारंभ हुआ : विशेष आलेख

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़वासियों की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता। वर्तमान छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता संग्राम 1857 से पूर्व प्रारम्भ हो चुका था, तत्कालीन समय में यह जमींदारी क्षेत्र था तथा कलचुरियों, मराठों एवं अंग्रेजों के अधीन रहा। कभी मराठों से स्वतंत्रता पाने के लिए यहाँ …

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प्राचीन इतिहास की साक्षी घटियारी

छत्तीसगढ़ की धरती पुरातात्विक धरोहरों की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। यहां पुरातात्विक महत्व के अनेक केन्द्र हैं। जिन पुरातात्विक स्थानों पर पुरातत्ववेत्ताओं का ध्यान अधिक आकृष्ट हुआ, जिनको ज्यादा प्रचार-प्रसार मिला वे स्थान लोगों की नजरों में आये और गौरव के केन्द्र बने। जिन पर लोगों का ध्यान नहीं …

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वाल्मीकि आश्रम तुरतुरिया की मान्यता एवं प्रतिमाएं

प्राचीन दंडकवन ॠषि मुनियों की तप स्थली रहा है, रामायण में दण्डकारण्य के बहुत सारे ॠषि मुनियों का जिक्र आता है। दंडकारण्य की तत्कालीन भौगौलिक स्थिति के विषय में विद्वानों की भिन्न भिन्न राय है, परन्तु यह तो तय है कि प्राचीन दक्षिण कोसल दंडकारण्य का ही हिस्सा रहा है। …

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छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण शिल्पी : श्री अटल बिहारी बाजपेयी

भारत की आजादी के बाद राज्यों का जो नया बँटवारा हुआ उसमें पहले सी.पी. एंड बरार और बाद में मध्य प्रदेश का हिस्सा बने छत्तीसगढ़ ने कई तरह की उपेक्षाओं को महसूस किया। उपेक्षा का यह एहसास निहायत अंदरुनी था। एक तरफ, मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल …

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कोसल के कलचुरियों से बस्तर के सम्बन्ध

बस्तर रियासत पर रतनपुर के कलचुरि शासन के प्रभाव से सम्बन्धित कई तरह की कहानियाँ चलन में है; अत: थोडी बात कलचुरियों की। लगभग दसवी शताब्दी में त्रिपुरी से आ कर कलचुरियों की एक शाखा नें दक्षिण कोसल पर विजय हासिल की तथा कलिंगराज (1000-1020 ई.) नें अपनी सत्ता स्थापित …

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गुरु घासीदास जी के सात संदेश एवं बयालिस अमृतवाणियाँ

गुरु घासीदास जी के पूर्वज उत्तरी भारत में हरियाणा के नारनौल के निवासी थे। वे सतनाम संप्रदाय से संबंधित थे। सन् 1672 में मुगल बादशाह औरंगजेब से युद्ध के बाद नारनौल के सतनामी यहां से पलायन कर गए। इनमें से कुछ उत्तर प्रदेश में जा बसे और कुछ उड़ीसा के …

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साहित्य महर्षि लाला जगदलपुरी : जन्म शताब्दी

अपनी लगभग 77 वर्षों की सुदीर्घ साहित्य साधना से छत्तीसगढ़ और बस्तर वनांचल को देश और दुनिया में पहचान दिलाने वाले लाला जगदलपुरी आज अगर हमारे बीच होते तो आज 17 तारीख़ को अपनी जीवन यात्रा के सौ वर्ष पूर्ण कर 101 वें वर्ष में प्रवेश कर चुके होते। लेकिन …

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दक्षिण कोसल में संकर्षण प्रतिमाएं

बलराम अथवा संकर्षण कृष्ण के अग्रज थे और कृष्ण के साथ – साथ इनका भी चरित्र विभिन्न पुराणों और अन्य ग्रन्थों में विस्तार पूर्वक वर्णित है। वासुदेव कृष्ण के साथ वृष्णि कुल के पंचवीरों में संकर्षण बलराम को भी सम्मिलित किया गया है। विष्णु के दशावतारों में सम्मिलित देवता बलराम …

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प्राकृतिक हरितिमा और भौगोलिक सौंदर्य का अतुलनीय संगम : कुआँ धाँस

छत्तीसगढ़ अपनी प्राकृतिक और नैसर्गिक सम्पदा के लिए देश के साथ-साथ पूरे विश्व में जाना जाता है। यहाँ के जंगलों, पहाडों और झरनों की प्रसिद्धि से पयर्टक और प्रकृति प्रेमी चिर परिचित हैं। बस्तर से लेकर सरगुजा और रायगढ़ से लेकर डोंगरगढ़ के ओर-छोर तक यहाँ प्राकृतिक सुषमा बिखरी हुई …

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छत्तीसगढ़ से प्राप्त मुद्राओं पर प्रतिबिंबित शैव धर्म

इतिहास साक्ष्य सापेक्ष होता है। इतिहासकार पुरावशेषों से ज्ञात तथ्यों के आधार पर ही इतिहास का निर्माण करता है। प्राचीन मुद्राओं का इतिहास लेखन में विशिष्ट स्थान है। प्राचीन भारतीय इतिहास के अनेक तथ्यों के विषय में मुद्राएं ही साधन के रूप में प्रस्तुत होते हैं, जिससे इतिहास के अज्ञात …

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