माँझीनगढ़ के शैलचित्र एवं गढ़मावली देवी जातरा

भारतीय ग्राम्य एवं वन संस्कृति अद्भुत है, जहाँ विभिन्न प्रकार की मान्यताएं, देवी-देवता, प्राचीन स्थल एवं जीवनोपयोगी जानकारियाँ मिलती हैं। सरल एवं सहज जीवन के साथ प्राकृतिक वातावरण शहरी मनुष्य को सहज ही आकर्षित करता है। ऐसा ही एक स्थल छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिला मुख्यालय से 60 कि.मी.की दूरी पर …

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बस्तर का बांस शिल्प

वर्तमान बस्तर को पहले चक्रकाट, महाकान्तार, महावन, दण्डकारण्य, आटविक राज्य आदि नाम से संम्बोधित किया जाता था। अचल में प्रचलित एक किंवदन्ती के अनुसार वारंगल के राजा प्रताप रुद्रदेव का भाई अन्नमदेव राज्य स्थापना की नीयत से यहां आया तो बाँस तरी में (बाँस झुरमुट के नीचे) अपना पहला पड़ाव …

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छत्तीसगढ़ का पर्यटन स्थल : बैताल रानी घाट

प्रकृति जीवन है, हमारा प्राण है। प्राण के बिना हम अपने होने की कल्पना भी नहीं कर सकते। जो प्रकृति के निकट हैं, प्रकृति से जुड़े हुए हैं। वे सुरक्षित हैं। जो प्रकृति से कट गए हैं, या जो दूर हो रहे है, उनका जीवन खतरे में है। इसका प्रत्यक्ष …

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स्वतंत्रता का सन्देश देता श्रीकृष्ण का जीवन : जनमाष्टमी विशेष

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ। पर स्वतंत्र होने तथा अपनों को दुःख की बेड़ियों से मुक्त करने की चाह देखिए, जन्म लेते ही माता देवकी तथा पिता वसुदेव को बेड़ियों से मुक्त कर दिया। इतना ही नहीं तो नवजात शिशु कृष्ण की इच्छा से कारागार के द्वार स्वतः …

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अनमोल जैव विविधता को संजोता पर्व हलछठ

भारत के पर्व प्रकृति को संजोते हैं, जीवों को संरक्षित करते हैं। सदियों से चले आये पर्वों के रीति रिवाज को जब हम तिलांजलि दे रहे हैं तब उनकी महत्ता हमारे सामने आ रही है। हलषष्ठी एक ऐसा ही त्यौहार है जिसमें जैव विविधता, भू-जल को संरक्षित कर व्यवहारिक रूप …

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छत्तीसगढ़ में मैत्री का पारंपरिक त्योहार : भोजली

प्राचीनकाल से देवी देवताओं की पूजा के साथ प्रकृति की पूजा किसी न किसी रुप में की जाती है। पेड पौधे, फल फुल आदि के रूप में पूर्ण आस्था के साथ आराधना की जाती है। इसी पर आधारित ग्रामीण आंचल में भोजली बोने की परंपरा का निर्वहन पूर्ण श्रद्धा के …

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श्रावणी उपाकर्म : विद्याध्यन प्रारंभ करने का पर्व

वैदिक काल में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को श्रावणी पर्व के रुप में मनाया जाता था। इसे श्रावणी उपाकर्म भी कहा जाता है। उस काल में वेद और वैदिक साहित्य का स्वाध्याय होता था। लोग प्रतिदिन वैदिक साहित्य का पठन करते थे, लेकिन वर्षा काल में वेद …

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सामाजिक नियमों में बंधा हुआ बस्तर का जनजातीय समाज

बस्तर का जनजातीय समाज अपनी अलौकिक सांस्कृतिक विरासत के लिये जाना जाता है और यही संस्कृति उनकी पहचान है। इस संस्कृति को उनके पूर्वजों ने उसी रूप में सौंपा है, जिस रूप में उन्होने अपने समय में निभाया था। अपनी सांस्कृतिक विरासत का आज की पीढ़ी भी उसी तरह से …

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जहां प्रकृति स्वयं करती है शिव का जलाभिषेक

छत्तीसगढ़ के हृदय स्थल जांजगीर-चांपा जिले के अति पावन धरा तुर्रीधाम शिवभक्तों के लिए अत्यंत ही पूजनीय है। सावन मास में हजारों की संख्या में शिव भक्त अपनी मनोकामना लेकर तुर्रीधाम पहुंचते है। स्थानीय दृष्टिकोण से यहाँ उपस्थित शिवलिंग, प्रमुख ज्योतिर्लिंगों के समान ही वंदनीय है। यह शिवालय सक्ति-चांपा मार्ग …

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महादेव ने जहाँ पत्थर पर डमरु दे मारा : सावन विशेष

बस्तर भूषण को बस्तर का प्रथम प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इस गंथ के लेखक ने अपने मित्र तहसीलदार द्वारा साझा किया गया एक संस्मरण का उल्लेख करते हुए लिखते हैं- “एक मित्र जो कोण्डागाँव में तहसीलदार थे, मुझसे कहते थे कि बड़ाडोंगर (बस्तर रियासत में दो डोंगर है, अर्थात …

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