बारहमासी लोकगीत : छत्तीसगढ़

लोककला मन में उठने वाले भावों को सहज रुप में अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्वत: स्थानांतरित हो जाने वाली विधा है। लोक कला हमारी संस्कृति की पहचान होती है, हमारी खुशी को प्रकट करने का माध्यम होती है। लोककला का क्षेत्र …

Read More »

बिंद्रानवागढ़ की जमींदारी

बिंद्रानवागढ जमींदारी का इतिहास शुरु होता है लांजीगढ के राजकुमार सिंघलशाह के छुरा में आकर बसने से। तत्कालीन समय में यहां भुंजिया जाति के राजा चिंडा भुंजिया का शासन था। यहां की जमींदारी मरदा जमींदारी कहलाती थी। राजकुमार सिंघलशाह चूंकि एक राजपुत्र था, उसके छुरा में आकर बसने से चिंडा …

Read More »

रामसाय की सुरमोहनी भरथरी गायिका सुरुज बाई खांडे

“घोड़ा रोवय घोड़ासार म, हाथी रोवय हाथीसार म …मोर रानी ये या, महलों में रोवय …” भरथरी की विधा में इस गीत का राग-संगीत तबले की थाप, बांसुरी के सुर में जीवन की सच्चाई को ब्यक्त करता है। छत्तीसगढ़ को इतिहास को झांक कर देंखें तो यहाँ का इतिहास यहाँ …

Read More »

नवसस्येष्टि यज्ञ :पौराणिक ऐतिहासिक संदर्भ

भारत पर्वोत्सव की परम्परा अत्यन्त प्राचीन रही है फिर चाहे वह कोई भी त्यौहार क्यो न हो, हमारी उत्सवधर्मी संस्कृति में इसकी न केवल सदीर्घ परम्परा मौजुद है वरन् कई-कई प्रचलित रीतियों के साथ-साथ लोकमान्यताओं, अध्यात्मिक चेतना एवं धार्मिर्क आस्थाओं के बीज भी विद्यमान है। ऋतुराज वसंत की पूर्णाहुति पर …

Read More »

वसंत पंचमी से रंगपंचमी तक मनाया जाता रहा मदनोत्सव

प्रकृति से लेकर चराचर जगत का अभिनव स्वरूप जब नित निखरता सृजन की ओर अग्रसर होता है तो ऐसे समय में ऋतुराज वसंत का पदार्पण होता है। सूर्य देव के उत्तरायण होते ही समूची प्रकृति भी अपना कलेवर बदलती मनमोहक हो उठती है। वसंत के आगमन से पेड़- पौधों के …

Read More »

प्राचीन मूर्तिकला में केश विन्यास एवं अलंकरण

सौंदर्य के प्रति मानव प्राचीन काल से ही सजग रहा है, देह के अलंकरण में उसने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी एवं नख सिख से लेकर गुह्यांग तक अलंकरण करने के लिए नवोन्मेष किए। सौंदर्य वृद्धि के लिए किए गए भिन्न भिन्न अलंकरण हमें तत्कालीन प्रतिमा शिल्प में दिखाई देते …

Read More »

आजादी के आंदोलन में छत्तीसगढ़ अंचल की भूमिका

गणतंत्र दिवस विशेष आलेख आजादी के आंदोलन में सक्रीय भागीदारी के साथ भारत को गणतंत्र के रुप में स्थापित करने में छत्तीसगढ़ अंचल की भी महती भूमिका रही है, यहाँ के लोगों के स्वातंत्र्य समर में बढ़-चढ़कर भागीदारी निभाई। भारतीय दृष्टिकोण से 1857 की घटनाओं को देखने पर ज्ञात होता …

Read More »

सुभाष चंद्र बोस और जवाहर लाल नेहरू

सुभाष चंद्र बोस जन्म दिवस विशेष आलेख गंगाधर नेहरू का परिवार दिल्ली से उखड़ गया और 1857 में आगरा पहुंचा। 34 वर्ष की आयु में 1861 के वर्ष उनका निधन हो गया। इसके 3 महीने बाद मोतीलाल नेहरू का जन्म हुआ। मोतीलाल जी के बड़े भाई वंशीधर नेहरू आगरा में …

Read More »

भारतवर्ष का शाश्वत प्रतीक – स्वामी विवेकानन्द

“मेरा विश्वास आधुनिक पीढ़ी में है, युवा पीढ़ी में है, इन्हीं में से मेरे कार्यकर्ता निकलेंगे जो सिंह की तरह हर समस्या का समाधान कर देंगे।” – स्वामी विवेकानन्द स्वामी विवेकानन्द ‘आयु में कम, किन्तु ज्ञान में असीम थे’। मात्र 39 वर्ष के अपने जीवन काल में स्वामीजी ने विश्वभर …

Read More »

जानिए बस्तर के घोटुल को

इसे बस्तर का दुर्भाग्य ही कहा जाना चाहिये कि इसे जाने-समझे बिना इसकी संस्कृति, विशेषत: इसकी जनजातीय संस्कृति, के विषय में जिसके मन में जो आये कह दिया जाता रहा है। गोंड जनजाति, विशेषत: इस जनजाति की मुरिया शाखा, में प्रचलित रहे आये “घोटुल” संस्था के विषय में मानव विज्ञानी …

Read More »