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इतिहास

इतिहास विभाग में वैदिक साहित्य में इतिहास, पौराणिक इतिहास, जनजातीय कथाओं में इतिहास, रामायण, महाभारत एवं जैन-बौद्ध ग्रंभों में इतिहास, भारतीय राजवंशो का इतिहास, विदेशी आक्रमणकारियों (मुगल एवं अंग्रेज) का इतिहास, स्वात्रंत्येतर इतिहास, बस्तर भूमकाल विद्रोह, नक्सल इतिहास, घुमक्कड़ परिव्राजक ॠषि मुनि तथा आदिम बसाहटों के इतिहास को स्थान दिया गया है।

आदिवासी वीरांगनाओं की स्मृति में भरता है यह कुंभ जैसा भव्य मेला

मेदाराम दंडकारण्य का एक हिस्सा है, यह तेलंगाना के जयशंकर भूपालापल्ली जिले में गोदावरी नदी की सहायक नदी जामपन्ना वागु के किनारे स्थित है। यहाँ प्रति दो वर्षों में हिन्दू वनवासियों का विश्व का सबसे बड़ा (जातरा) मेला भरता है। गत वर्ष 2018 के चार दिवसीय मेले में लगभग एक …

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दक्षिण कोसल : कल और आज -1

पृथ्वी की उत्पत्ति के उपरांत ही देश, काल के अनुसार ही दुनिया भर में स्थानों के नाम समय-समय पर बदलते रहे है। हमारे लेख का विषय छत्तीसगढ़, जिसे दक्षिण कोसल का नाम इतिहासकार देते हैं और आज भी दक्षिण कोसल ही छत्तीसगढ़ क्षेत्र की पहचान के रूप में मान्य है। …

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भक्त शिरोमणी माता राजिम जयंती पर विशेष

छत्तीसगढ़ का प्रयाग राजिम एक पवित्र सांस्कृतिक एवं एतिहासिक नगरी है जो अपने आप में गौरवशाली पुरातन इतिहास व परम्पराओं को आत्मसात किये हुये है । इसे भगवान विष्णु की नगरी भी कहा जाता है । विशेषकर माघ पूर्णिमा से शिवरात्रि तक सांस्कृतिक एकता के पवित्र बंधन में बंधे हुए …

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राम भजो भाई, गोबिन्द भजो भाई का संकीर्तन कर समाज को बुराईयों के प्रति जागृत करने वाली माता राजमोहनी देवी

समाज में किसी के जनोत्थान एवं समाज सेवा के कार्य इतने अधिक हो जाएं कि समाज उसे देवतुल्य स्थान दे दे। यह समाज सेवा की पराकाष्ठा ही मानी जाती है, खैर लोक देवताओं की मान्यता एवं स्थापना भी ऐसे ही होती है। हम आपको बताने जा रहे हैं सरगुजा की …

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देहि शिवा वर मोहि इहै, शुभ करमन ते कबहू न टरौं

गुरु गोविंद सिंह सिर्फ़ सिख समुदाय के ही नहीं, सारी मानवता के चहेते हैं। उनकी दूरदर्शिता अकल्पनीय है, उन्होंने भविष्य को देखते हुए श्री ग्रंथ साहिब को गुरु मानने की आज्ञा दी तथा खालसा पंथ की स्थापना की। आज्ञा भयी अकाल की, तभे चलायो पंथ। सब सिखन को हुकम है, …

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दक्षिण कोसल का एक ऐसा स्थान जहाँ भयंकर युद्ध के अवशेष मिलते हैं

बालोद से दुर्ग मार्ग में पैरी नामक छोटा सा ग्राम है। पैरी ग्राम से लगा हुआ एक छोटा सा ग्राम है गौरेया। बालोद से आने वाली तांदुला नदी पैरी एवं गौरेया ग्राम की सीमा रेखा बनाती है। बालोद क्षेत्र अपने एतिहासिक एवं दर्शनीय स्थलों के लिये छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है। …

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जानिए पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक कौन थे एवं कहाँ है उनकी जन्मभूमि?

छत्तीसगढ के रायपुर जिले के अभनपुर ब्लॉक के ग्राम चांपाझर में पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मभूमि स्थित है। देश-विदेश से बहुतायत में तीर्थ यात्री दर्शनार्थ आते है पुण्य लाभ प्राप्त करने। कहते हैं कि कभी इस क्षेत्र में चम्पावन होने के कारण इसका नाम चांपाझर पड़ा। कालांतर में …

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राजा कर्ण जिनके राज्याभिषेक होने पर उनका कल्चुरी संवत प्रारंभ हुआ

मेकलसुता रेवा का उद्गम स्थल अमरकंटक है, यहां प्राचीन काल के अवशेष मिलते हैं तथा यह ॠषि मुनियों की तपोस्थली रही है। इतिहास से ज्ञात होता है कि वैदिक काल में महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में ‘यदु कबीला’ इस क्षेत्र में आकर बसा और यहीं से इस क्षेत्र में अन्यों का …

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बन बाग उपवन वाटिका, सर कूप वापी सोहाई

दक्षिण कोसल के प्राचीन महानगरों में जल आपूर्ति के साधन के रुप में हमें कुंए प्राप्त होते हैं। कई कुंए तो ऐसे हैं जो हजार बरस से अद्यतन सतत जलापूर्ति कर रहे हैं। आज भी ग्रामीण अंचल की जल निस्तारी का प्रमुख साधन कुंए ही हैं। कुंए का मीठा एवं …

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जानिए देवालयों की भित्ति में यह प्रतिमा क्यों स्थापित की जाती है

प्राचीन मंदिरों के स्थापत्य में बाह्य भित्तियों पर हमें कौतुहल पैदा करने वाली एक प्रतिमा बहुधा दिखाई दे जाती है, जिसकी मुखाकृति राक्षस जैसी भयावह दिखाई देती है। जानकारी न होने के कारण इसे लोग शिवगण मानकर आगे बढ़ जाते हैं। कई बार मंदिरों में उपस्थित लोगों से पूछते भी …

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