Home / इतिहास / राम भजो भाई, गोबिन्द भजो भाई का संकीर्तन कर समाज को बुराईयों के प्रति जागृत करने वाली माता राजमोहनी देवी
मंदिर में स्थापित माता राजमोहिनी देवी की प्रतिमा

राम भजो भाई, गोबिन्द भजो भाई का संकीर्तन कर समाज को बुराईयों के प्रति जागृत करने वाली माता राजमोहनी देवी

समाज में किसी के जनोत्थान एवं समाज सेवा के कार्य इतने अधिक हो जाएं कि समाज उसे देवतुल्य स्थान दे दे। यह समाज सेवा की पराकाष्ठा ही मानी जाती है, खैर लोक देवताओं की मान्यता एवं स्थापना भी ऐसे ही होती है। हम आपको बताने जा रहे हैं सरगुजा की माता राजमोहनी देवी जी के बारे में।

माता राजमोहिनी देवी

सरगुजा में माता राजमोहनी देवी कहलाने वाली राजो-रजमन देवी का जन्म 7 जुलाई 1914 को वाड्रफ़नगर विकासखंड के सरसेड़ा (शारदापुर) नामक ग्राम में हुआ था। इनका विवाह प्रतापपुर विकासखंड के गोविंदपुर ग्राम के रंजीत गोंड़ के साथ हुआ। इनके दो पुत्र एवं पाँच पुत्रियाँ हुई। परिवार के साथ बीस बरसों तक रहने के बाद इन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई कि अब समाज को उनकी सेवा की आवश्यकता है।

इन्होंने जीवन भर समाज और देश सेवा का संकल्प लिया। इनके बचपन का नाम राजो और रजमन देवी था, बाद में राजमोहनी देवी के नाम से विख्यात हुई। माता राजमोहनी देवी पैदल गाँव-गाँव घूम-घूम कर दारू, मुर्गा, और अत्याचार का विरोध करने लगी। गांव के लोगों को अपने साथ जोड कर प्रचार-प्रसार करती थी। उनका कहना था कि धर्म-कर्म करो, साफ-सफाई से रहो, शराब मांस, मछली, छोडो, समाज मे फैली बुराईयों को मिटाओं। राम का नाम जपो।

माता राजमोहिनी देवी का मंदिर

माता राजमोहनी देवी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपना गुरू मानती थी। वे सत्य, अहिंसा को अपनाने, अपने हाथ से कात कर सूती वस्त्र पहनने, सादगी और सत्य के लिए आगंन में सफेद झण्डा गाड़ने के लिए कहती थी। झण्डा के नीचे चबुतरे में तुलसी पौधा लगाकर जल चढाने और पूजा पाठ करने का संदेश देती थी।

जब विनोबा भावे का भूदान आन्दोलन प्रारंभ हुआ तब राजमोहनी देवी उनसे प्रेरणा लेकर गौ हत्या बन्द करने के लिए अपने सहयोगियो के साथ गोहाटी में अनसन पर बैठी थी तथा अम्बिकापुर में गौव हत्या बन्दी के लिए 4 दिवसीय उपवास पर भी बैठी थी।

यद्यपि माता राजमोहनी देवी पढ़ी लिखी नहीं थी, किन्तु शिक्षा के प्रचार-प्रसार में अपना पूरा जीवन लगा दिया। गोविंन्दपुर में एक स्कूल भी खोली थी। सूखा भूखमरी और आकाल जैसी आपदाओं से निपटने के लिए माता ने ग्राम अन्नकोश की स्थापना की। माता राजमोहनी देवी विधवा- विवाह, सगाई विवाह का समर्थन करती थी। वे जादू-टोना, भूत- प्रेत, को एक ढकोसला कहती थी।

माता जी के अनुयायियों की सभा

राजमोहनी देवी ने 28 मार्च 1953 में शराब भट्ठी तोड़ो सत्याग्रह प्रारंभ किया। कहते हैं कि दुद्धी के लकड़ाबाध भट्ठी तोड़ो सत्याग्राह में 40-50 हजार लोग साथ थे। इस आंदोलन से उतरप्रदेश के दुद्धी, सिंगरौली, अगोरी, विजयगढ़, राँची, केरल, मध्य प्रदेश, बिहार और पटना की भट्ठियां तोडी गयी। इस सत्याग्रह का संदेश था कि शराब से तन, मन, धन तीनों का नुकसान होता है।

माता राजमोहनी देवी ने सन् 1963-64 में अखिल भारतीय नशाबंदी परिषद के सम्मेलन में शराबबंदी से संबंधित अपना व्याख्यान दिया था। इनके व्याख्यान से खुश होकर श्री लाल बहादूर शास्त्री और मोरारजी देसाई ने बधाईयां दी थी।

माता राजमोहनी देवी ने छठवें दशक में आचार्य विनोबा भावे द्वारा चलाये जा रहे भू-दान महायज्ञ को सरगुजाचंल सहित आस-पास राज्यों में चलाया। उन्होंने विनोबा भावे का भू-दान का संदेश लेकर सरगुजाचंल में पदयात्रा की, जिसके फ़लस्वरुप प्रेरणा लेकर सरगुजा में सैकड़ों एकड़ भूमि लोगों ने भू-दान यज्ञ में दान में दे दी।

माता राजमोहनी देवी ने बापू धर्म सभा, आदिवासी सेवा मंडल का गठन किया। इनके आश्रम को धार्मिक संस्था की मान्यता 20 मार्च 1954 को मिली। माता राजमोहनी देवी वर्ष में तीन बड़े कार्यक्रम चैत नवमी, क्वांर नवमी और माद्य पूर्णिमा में करती थीं । इन कार्यक्रमों में राज्य भर के भक्त लोग प्रसिद्ध भजन “राम भजो भाई, गोबिन्द भजो भाई’’गाते बजाते इक्ट्ठा होते थे। इनका प्रसिद्ध वाद्य यंत्र झांझ, मंजीरा और मृदंग हुआ करता था। जब इनके अनुयायियों का जन सैलाब उमड़ता तो एकता का माहौल देखते ही बनता था।

राम नाम जपो संकीर्तन करते हुए अनुयायी

इनके द्वारा समाजोत्थान के किए गए कार्यों को लोग दैवीय प्रेरणा मानते तथा इनके समाज के लोगों ने इन्हें दुर्गा का अवतार माना तथा प्रतापपुर विकासखण्ड के गोविन्दपुर गांव में माता राजमोहनी देवी मंदिर स्थापित किया, जिसमें दुर्गा देवी के साथ माता राजमोहनी देवी की प्रतिमा स्थापित की।

माता राजमोहनी देवी किए जा रहे सामाजिक जागरण और देश सेवा के लिए मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अम्बिकापुर प्रवास के दौरान बधाईयां दी । राजमोहनी देवी को 19 नवम्बर 1986 में इंदिरा गांधी पुरस्कार और 25 मई 1989 में मद्श्री पुरस्कार मिला था।

राजमोहनी देवी का देहावसांन 6 जनवरी 1994 को हुआ, इस दिन समाज को दिशा देने एवं जनकल्याण के लिए धरती पर आई हुई आत्मा, परमात्मा में विलीन हो गई। उनके आदर्श आज भी समाज में प्रेरणा देने के लिए स्थापित हैं।

 

आलेख एवं चित्र

अजय कुमार चतुर्वेदी
(राज्यपाल पुरस्कृत शिक्षक)
ग्राम-बैकोना
प्रतापपुर, सरगुजा

 

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