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Tag Archives: बस्तर

बस्तर के जनजातीय समाज में बड़ों का सम्मान

बस्तर के जनजातीय समाज में भी अपने बुजुर्गों का सम्मान करने की परम्परा विद्यमान है, यह आदिम संस्कृति का आधारभूत सिद्धान्त है कि गाँव या समाज में सभी बड़ों का उचित तरीके से सम्मान किया जाये, जनजातीय समाज समय-समय पर अपने कार्य व्यवहार से इसे प्रदर्शित भी करता है। घर …

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छत्तीसगढ़ में पारंपरिक देहालेखन गोदना और अंतर्भाव

लोक-व्यवहार ही कालांतर में परंपराएँ बनती हैं और जीवन से जुड़ती चली जाती हैं। जब पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनका निर्वाह किया जाता है तब वह आगे चलकर संस्कृति का हिस्सा बन जाती हैं। वास्तव में लोक-व्यवहार ही एक है जो कि संस्कृति को जीवंत स्वरूप प्रदान करती है। लोक-परंपराएँ यूँ ही नहीं …

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प्रकृति की अनुपम भेंट कांगेर वैली एवं उसकी अद्भुत गुफ़ाएं

कांगेर वैली राष्ट्रीय उद्यान छत्तीसगढ़ प्रदेश के बस्तर जिले के जिला मुख्यालय जगदलपुर में स्थित है। राष्ट्रीय उद्यान को कांगेर नदी से अपना नाम मिलता है, जो उत्तर-पश्चिम से दक्षिण पूर्व दिशा में केंद्र से बहती है। वर्ष 1982 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 के तहत राष्ट्रीय उद्यान अधिसूचित किया …

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बस्तर की प्राचीन सामाजिक परम्परा : पारद

बस्तर की हल्बी बोली का शब्द है “पारद”। इसका शाब्दिक अर्थ  होता है। गोण्डी बोली में इसे “वेट्टा” कहते है।  को हिन्दी, हल्बी, गोण्डी में खेल कहकर प्रयुक्त किया जाता है। इसे हिन्दी में खेलना, हल्बी में पारद खेलतो तथा गोण्डी में “कोटुम वली दायना” कहते है। जिसका अर्थ पारद …

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भगवान जगन्नाथ मंदिर और भव्य रथयात्रा

ओडिशा राज्य के तटवर्ती क्षेत्र में स्थित जगन्नाथ मंदिर हिन्दुओं का प्राचीन एवं प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। हिन्दुओं की धार्मिक आस्था एवं कामना रहती है जीवन में एक बार भगवान जगन्नाथ के दर्शन अवश्य करें क्योंकि इसे चार धामों में से एक माना जाता है। वैष्णव परम्परा का यह मंदिर …

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बस्तर की प्राचीन राजधानी बड़ेडोंगर

बस्तर का प्रवेश द्वार केशकाल आपको तब मिलेगा जब आप बारा भाँवर (बारह मोड़ों) पर चक्कर काटते हुए पहाड़ पर चढेंगे। केशकाल क्षेत्र में अनेक प्राकृतिक झरने, आदि-मानव द्वारा निर्मित शैलचि़त्र, पत्थर से बने छैनी आदि प्रस्तर युगीन पुरावशेष यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। साल वृक्षों का घना जंगल, ऊँची- ऊँची …

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प्रकृति का आभूषण कटुमकसा घुमर : बस्तर

पहाड़ियाँ, घाटियाँ, जंगल, पठार, नदियाँ, झरने आदि न जाने कितने प्रकार के गहनों से सजाकर प्रकृति ने बस्तर को खूबसूरत बना दिया है। बस्तर के इन्हीं आभूषणों में से एक है, कटुमकसा घुमर। कुएमारी (पठार) से बहता हुआ एक नाला घोड़ाझर गाँव की सीमा में आता है। यहाँ एक जलप्रपात …

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छत्तीसगढ़ में लोक नाट्य की विधाएं

छत्तीसगढ़ का लोकनाट्य मूलः ग्राम्य जन-जीवन और लोक कलाकारों का उत्पाद है। यह गाँवों से निकलकर नगरों और महा नगरों तक पहुँचा और ख्याति प्राप्त करते हुए एक लम्बी यात्रा की। छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के अन्य प्रांतों के भी लोकनाट्य वाचिक परंपरा के ही उद्भव हैं। वाचिक परंपरा से …

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जनजातीय संस्कृति में पगड़ी का महत्व : बस्तर

भारतीय संस्कृति में पगड़ी का काफी महत्व है। प्राचिनकाल में राजा-महाराजा और आम जनता पगड़ी पहना करती थी। पगड़ी पहनने का प्रचलन उस काल से लेकर आज तक बना हुआ है। पगड़ी को सम्मान का प्रतीक माना जाता है। सिर पर बान्धने वाले परिधान को पगड़ी, साफा, पाग, कपालिका शिरस्त्राण, …

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दण्डकारण्य में राम : रामनवमी विशेष

बस्तर अपने प्राचीन पुरातात्विक महत्व, आरण्यक संस्कृति, दुर्गम वनांचल एवं अनसुलझे तथ्यों के लिए प्रसिद्ध है। बस्तर, दण्डक, चक्रकूट, भ्रमरकूट, महाकांतर जैसे अनेक नामों से परिभाषित धरती पर स्वर्ग का पर्याय है। बस्तर के पूर्वजों ने धर्म, विज्ञान, साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में जो पराक्रम किया है। वह …

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