Home / इतिहास / भगवान जगन्नाथ मंदिर और भव्य रथयात्रा

भगवान जगन्नाथ मंदिर और भव्य रथयात्रा

ओडिशा राज्य के तटवर्ती क्षेत्र में स्थित जगन्नाथ मंदिर हिन्दुओं का प्राचीन एवं प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। हिन्दुओं की धार्मिक आस्था एवं कामना रहती है जीवन में एक बार भगवान जगन्नाथ के दर्शन अवश्य करें क्योंकि इसे चार धामों में से एक माना जाता है। वैष्णव परम्परा का यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर में तीन मुख्य देवता भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा एवं बड़े भैया बलभ्रद की पूजा होती है।

यहाँ हर वर्ष भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती हैं जो भारत ही नहीं वरन विश्व प्रसिद्ध हैं। ऐसी मान्यता है कि जो इस रथयात्रा में शामिल होकर रथ को खींचते हैं उन्हें सौ यज्ञ के बराबर पुण्य लाभ मिलता हैं। रथयात्रा के दौरान लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं एवं रथ को खींचने के लिए श्रद्धालुओं का भारी तांता लगता हैं। जगन्नाथ यात्रा हिन्दू पंचाग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती हैं। जगन्नाथ रथ उत्सव 10 दिन का होता हैं इस दौरान यहाँ देशभर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं।

जगन्नाथ मंदिर का विहंगम दृश्य, फ़ोटो – ललित शर्मा

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण

इस मंदिर का निर्माण कलिंग राजा अनंतवर्मन गंगदेव ने कराया था। मंदिर का जगमोहन एवं विमान भाग इनके शासन काल (1078-11148 ई) में निर्मित हुआ था। फिर सन 1147 में राजा अनंग भीम देव ने इस मंदिर को वर्तमान रुप दिया था। इसका ताम्रपत्रों में उल्लेख बताया जाता है। मंदिर में जगन्नाथ अर्चना सन १५५८ तक होती रही। इस वर्ष काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला किया और मूर्तियां तथा मंदिर के भाग ध्वंस किए और पूजा बंद करा दी तथा विग्रहो को चिलिका झील मे स्थित एक द्वीप मे गुप्त रखा गया। बाद में, रामचंद्र देब के खुर्दा में स्वतंत्र राज्य स्थापित करने पर, मंदिर और इसकी मूर्तियों की पुनर्स्थापना हुई।

मंदिर का विहंगम दृश्य

कलिंग शैली में निर्मित इस मंदिर को हम देखें तो वर्तमान में भी काला पहाड़ द्वारा किए गए विध्वंस के चिन्ह दिखाई देते हैं। मुख्य मंदिर के आमलक एवं जगमोहन की छत को उसके द्वारा तोड़ दिया गया प्रतीत होता है। प्रस्तर निर्मित इस मंदिर के विशाल आमलक एवं जगमोहन की छत का पुनर्निर्माण हुआ है। जो प्रस्तर निर्मित न होकर चूना सुर्खी से बना हुआ है अलग ही दिखाई देता है। राजा ने जगन्नाथ मंदिर का भव्य निर्माण कराया था। इसकी भित्तियों पर अप्सराएं, वादक, भारसाधक, व्यालों के साथ मिथुन मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं। इसकी भव्यता देखते ही बनती है।

विहंगम दृश्य, फ़ोटो – ललित शर्मा

मंदिर का विस्तार बृहत क्षेत्र में है, जो लगभग चार लाख वर्ग फुट में विस्तारित है और चारदिवारी से घिरा हुआ कलिंग स्थापत्यकला एवं शिल्प का उदाहरण है तथा यह भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक है। मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र (आठ आरों का चक्र) मंडित है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है। मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फ़ुट (65 मी) ऊंचे पाषाण चबूतरे पर बना है। इसके भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

सिंह द्वार पर स्थापित गरुड़ स्तंभ

मंदिर का मुख्य भाग विशाल है। मंदिर की पिरामिडाकार छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिकारूपी मुख्य मंदिर के निकट होते हुए ऊंचे होते गये हैं। यह एक पर्वत को घेरी हुई छोटी पहाड़ियों एवं टीलों के समुह सदृश दिखाई देता है। मुख्य भवन एक बीस फ़ुट (6.1 मी) ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है। इसका द्वार दो सिंहों द्वारा रक्षित हैं। मंदिर के शिखर पर स्थित चक्र, सुदर्शन चक्र का प्रतीक है और लाल ध्वज भगवान जगन्नाथ का प्रतीक माना जाता है।

गरुड़ स्तंभ – फ़ोटो – प्रकाश बिस्वाल पुरी

विश्व प्रसिद्ध भव्य रथयात्रा

वैसे तो रथयात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से आरंभ होती है। जगन्नाथ रथयात्रा में सबसे आगे भगवान बालभद्र का रथ रहता हैं मध्य में भगवान की बहन सुभद्रा का एवं अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ रहता हैं। यह यात्रा मुख्य मंदिर से शुरू होकर 2 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर पर समाप्त होती है। गुंडिचा माता मंदिर में भारी तैयारी की जाती हैं एवं मंदिर की सफाई के लिये इंद्रद्युमन सरोवर से जल लाया जाता हैं, जहां भगवान जगन्नाथ सात दिन तक विश्राम करते हैं और आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन फिर से वापसी यात्रा होती है, जो मुख्य मंदिर पहुंचती है। यह बहुड़ा यात्रा कहलाती है। जगन्नाथ रथयात्रा एक महोत्सव और पर्व के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस रथयात्रा के मात्र रथ के शिखर दर्शन से ही व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। स्कन्दपुराण में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।

रथ – फ़ोटो – प्रकाश बिस्वाल, पुरी

रथयात्रा के लिए भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा- तीनों के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। ये लकड़ी वजन में भी अन्य लकड़ियों की तुलना में हल्की होती है और इसे आसानी से खींचा जा सकता है। भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है और यह अन्य रथों से आकार में बड़ा भी होता है। यह रथ यात्रा में बलभद्र और सुभद्रा के रथ के पीछे होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ के कई नाम हैं जैसे- गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष आदि। इस रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व है, जिनका रंग सफेद होता है। इस रथ के सारथी का नाम दारुक है।

रथारुढ़ होते भगवान जगन्नाथ – फ़ोटो – प्रकाश बिस्वाल, पुरी

भगवान जगन्नाथ के रथ पर हनुमानजी और नरसिंह भगवान का प्रतीक होता है। इसके अलावा भगवान जगन्नाथ के रथ पर सुदर्शन स्तंभ भी होता है। यह स्तंभ रथ की रक्षा का प्रतीक माना जाता है। इस रथ के रक्षक भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ हैं। रथ की ध्वजा यानि झंडा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाता है। रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, वह शंखचूड़ नाम से जानी जाती है। इसके 16 पहिए होते हैं व ऊंचाई साढ़े 13 मीटर तक होती है। इसमें लगभग 1100 मीटर कपड़ा रथ को ढंकने के लिए उपयोग में लाया जाता है।

स्वर्ण सम्मार्जनी से बुहारते राजा – फ़ोटो – प्रकाश बिस्वाल, पुरी

बलरामजी के रथ का नाम तालध्वज है। इनके रथ पर महादेवजी का प्रतीक होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इसके अश्व हैं। यह 13.2 मीटर ऊंचा 14 पहियों का होता है, जो लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है। सुभद्राजी के रथ पर देवी दुर्गा का प्रतीक मढ़ा जाता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। रथ का ध्वज नदंबिक कहलाता है। रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता इसके अश्व होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचुड़ा कहते हैं। 12.9 मीटर ऊंचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का इस्तेमाल होता है।

भगवान के तीनों रथ – फ़ोटो – प्रकाश बिस्वाल, पुरी

भगवान जगन्नाथ, बलराम व सुभद्रा के रथों पर जो घोड़ों की कृतियां मढ़ी जाती हैं, उसमें भी अंतर होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ पर मढ़े घोड़ों का रंग सफेद, सुभद्राजी के रथ पर कॉफी रंग का, जबकि बलरामजी के रथ पर मढ़े गए घोड़ों का रंग नीला होता है। रथयात्रा में तीनों रथों के शिखरों के रंग भी अलग-अलग होते हैं। बलरामजी के रथ का शिखर लाल-पीला, सुभद्राजी के रथ का शिखर लाल और ग्रे रंग का, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ के शिखर का रंग लाल और हरा होता है।

गरुड़ स्तंभ एवं जगन्नाथ मन्दिर का प्रवेश द्वार – फ़ोटो – प्रकाश बिस्वाल, पुरी

उल्लेखनीय है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा देश में एक पर्व की तरह मनाई जाती हैं इसलिए पुरी के अलावा देश के अनेक स्थानों पर यात्रा निकाली जाती हैं। यात्रा का वर्णन स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण, बह्म पुराण आदि में मिलता हैं। इसलिए यह यात्रा हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्वपूर्ण है।

आलेख

ललित शर्मा इण्डोलॉजिस्ट रायपुर, छत्तीसगढ़

About admin

Check Also

आध्यात्म और पर्यटन का संगम गिरौदपुरी का मेला

नवगठित बलौदाबाजार भाटापारा जिलान्तर्गत बलौदाबाजार से 45 कि मी पर जोंक नदी के किनारे गिरौदपुरी …

2 comments

  1. बहुत शानदार कव्हरेज …. खूबसूरत प्रस्तुति के लिए आभार

  2. Vijaya Pant Tuli

    बहुत सुंदर जानकारी
    जय जगन्नाथ 🌹🙏🌹

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *