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छत्तीसगढ़ी संस्कृति में रामकथा की व्याप्ति : वेबीनार रिपोर्ट

रामायण के इनसायक्लोपीडिया निर्माण को लेकर दिनांक 21/6 /2020 को शाम 5:00 से 6:30 तक “छत्तीसगढ़ी संस्कृति में रामकथा की व्याप्ति” नामक अंतरराष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया। इस आयोजन में देश-विदेश से लगभग 109 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इस अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी वेबीनार का आयोजन सेंटर फॉर स्टडी हॉलिस्टिक डेवलपमेंट छत्तीसगढ़ ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ रामायण उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया। आयोजन के उद्घाटन उद्बोधक श्री विवेक सक्सेना सचिव सी एस एच डी छत्तीसगढ़ थे। मुख्य अतिथि श्री जितेंद्र कुमार आईएएस प्रमुख सचिव संस्कृति पर्यटन एवं भाषा उत्तर प्रदेश शासन, मुख्य वक्ता प्रोफेसर डॉ राजन यादव हिंदी विभाग इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ छत्तीसगढ़ तथा अध्यक्षता डॉक्टर योगेंद्र प्रताप सिंह जी निदेशक अयोध्या शोध संस्थान अयोध्या उत्तर प्रदेश की। इस कार्यक्रम का संचालन इंडोलॉजिस्ट श्री ललित शर्मा जो ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण छत्तीसगढ़ के संयोजक भी हैं, ने किया।

सर्वप्रथम कार्यक्रम के संचालक श्री ललित शर्मा जी ने संपूर्ण अतिथियों का स्वागत करते हुए उद्घाटन संबोधन के लिए आयोजक श्री विवेक सक्सेना जी से आग्रह किया। विवेक सक्सेना जी ने अतिथि वक्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि “समग्र विकास की तुलना में केवल भौतिक विकास एकांगी न होकर मानसिक, शारीरिक, सामाजिक विकास को लेकर सर्वांगीण विकास की बात हम करते हैं। बाकी दुनिया भौतिक विकास पर काम करती है, जबकि हम सर्वांगीण विकास पर काम करते हैं। ललित शर्मा जी दक्षिण कौशल टुडे नामक वेब पोर्टल चलाते हैं। जिसमें 250 से अधिक लेख का वेब प्रकाशन शुरू हो गया है। जिसका उपयोग प्रतियोगी परीक्षा में विद्यार्थी करते हैं। लोक संस्कृति में राम जगह-जगह हैं। ऐसा ही एक गीत है “अटकन बटकन दही चटाका लौहा लाटा बनके कांटा-जिसमें गंगा से गोदावरी तक की बातें भी होती हैं। यहाँ की संस्कृति में राम को जाना जा सकता है। मेरे साथी और इस कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉक्टर योगेंद्र प्रताप सिंह जी एक अच्छे वक्ता हैं। हम सब उन्हें सुनेंगे। मैं सभी श्रोताओं का स्वागत करता हूँ।” इसके बाद ललित शर्मा जी ने प्रमुख वक्ता डॉ राजन यादव जी को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया।

वेबीनार को संबोधित करते हुएअभिवादन पश्चात् प्रमुख वक्ता डॉक्टर राजन यादव जी, जो हिंदी विभाग इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के प्रोफ़ेसर भी हैं। उन्होंने अतिथियों और श्रोताओं को कहा कि लोकाभिराम राम के भारतीय ईश्वरत्व और मनुष्यत्व की गौरव गाथा लोक साहित्य में भरे पड़े हैं। किसी परिचित अपरिचित व्यक्ति के अभिवादन के लिए राम-राम, सीताराम ,जय राम कहते हैं। इसका अभिप्राय हमारे व्यवहारिक जीवन में अभिवादन का नाम श्री राम है ।कोई व्यक्ति यदि निंदनीय कार्य कर दिया हो जिसकी अनुमति हमारी मान्यताएँ नहीं देती तो लोग कहते हैं राम राम! उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था।

यहाँ अपूज्य विचारों की भर्त्सना का नाम भी ‘श्री राम’ है। किसी की पुत्री की विवाह न हो पा रहा हो तो उदास पिता को सांत्वना देते हुए कहा जाता है कि “निराश मत हो भाई । होईहैं सोई जो राम रचि राखा।” आशय यह है कि हमारे व्यावहारिक जीवन के आस्था और विश्वास का अवलंब है ‘श्री राम’। कोई अप्रत्याशित घटना के घटित हो जाने पर लोग आश्चर्यचकित हो अनायास ही कह उठते हैं।’ हे राम! यह क्या हो गया।’ आशय यह है कि हमारे जीवन में आश्चर्य का नाम भी ‘श्री राम’ है। इसी प्रकार हाय राम!, हरे राम!, राम -राम, राम नाम सत्य है, जो रघुवीर की इच्छा, जो चाहे रघुवीर, रघुवर की कृपा इत्यादि किसी भी शुभ-अशुभ परिस्थिति को देखते सुनते ही हमारे मुख से अनायास ही स्वाँस की तरह श्री राम उच्छवासित हो जाता है।

हमारे देश की सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश में श्री राम अभिवादन से लेकर आश्चर्य तक सर्वत्र व्याप्त है श्री राम कथा हमारे गौरव में अतीत तक विशेष कालखंड का दर्पण होते हुए भी सर्वकालिक एवं सार्वभौमिक गरिमा से युक्त रही है। कथा और चरित्र के रूप में भले ही इसका वर्णन हुआ है, किंतु इसकी विस्तृति में लोक शब्द से युक्त किया गया है । लोक भी अनेक हैं और जहाँ तक आलोक हैं, वहाँ तक रामायण का लोक व्याप्त है। रामायण ही मूल शक्ति का ज्ञान है। इसके कई पहलू हैं। कभी वह शब्द के रूप में व्यक्त होता है तो कभी विचार के रूप में, कभी संचरण के रूप में हमारे साथ चलता है और कभी आचरण के रूप में, हमें चलना सिखाता है। कभी-कभी वह मौन धारण कर हमारे मन में नमन की भावना पैदा करता है, कभी आज्ञा बनकर हमें आदेश दे देता है और कभी संज्ञा बनकर संदेश का सार सुनाता है। कभी प्रज्ञा बनकर पंडित को प्रबुद्ध बनाता है, कभी विद्या बनकर विज्ञ को विद्वान बना देता है। कभी कर्म की भावना जगाता है और कभी धर्म का रहस्य खोलता है। कभी मुक्ति का मार्ग दिखाता है और कभी भक्ति का मार्ग दिखाता है, और कभी भक्ति का गीत सुनाता है।

चिरकाल से राम लोक जीवन के आलोक, लोककाव्य के आलोकिक छंद रहे हैं। भारतीय सामाजिक जीवन में राम की सत्ता लोक के साथ अस्तित्व मान होती है। रामकथा का जो स्वरूप लोक में प्रचलित था, वह छनकर शास्त्र में आया और कालांतर में लोकोत्तर रूप में प्रतिष्ठित हुआ भारत में ऐसा कोई गाँव नहीं जहाँ राम की पूजा न हो रही हो या राम नामधारी व्यक्ति का अभाव हो राम की लोक सेवा के प्रति तत्परता, व्याकुलता, भारतीय समाज का आत्म भाव है। इसलिए इन चरित्रों से लोक प्रकाशित होता है। राम संस्कृति ,लोक प्रकाश की ज्योति बनी। जिसका आश्रय ग्रहण कर विभिन्न समाजों ने आत्म नियंत्रित सामाजिक संरचना का निर्माण किया।

लोकगीतों में पूरी रामायण बिखरी है। खेत में काम करते कृषक, नाव खेने वाले नाविक, बच्चों को सुलाने वाली माताएं, पतिगृह को जाने वाली नववधुएँ, विभिन्न प्रकार के लोकनाट्य परिवेषण करने वाले नाट्य दल, भीख माँगने वाले भिखारी, विवाह में मंगल गान करने वाली महिलाएँ, सभी लोकगीत गाते हुए पाए जाते हैं। जिनमें रामकथा के प्रसंग किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं। किंतु इन लोकगीतों में चित्रित राम या राम कथा की दृष्टि भंगी, धार्मिक ,अध्यात्मिक या शास्त्रीय न होकर लोक से संबंधित है।

उत्सवधर्मी छत्तीसगढ़ के लोकगीतों में रामकथा गुथे हुए हैं। यहाँ जन्म संस्कार के समय आचारों का लंबा अनुष्ठान होता है। इस अवसर पर गीत भी गाए जाते हैं। जिसे जन्म के गीत कहते हैं। जिसमें सोहर प्रधान हैं। लोक की अयोध्या में, राम का अवतार होते ही उनका अभिनंदन जिन भावभीनी स्वरों में किया जाता है, वह जन्म संबंधी गीतों में देखते ही बनता है। महिलाएँ विभिन्न प्रकार से, नवजात और उसकी माता की चिरायु होने की कामना करती हैं। इन गीतों में ननंद भौजाई की शर्त होती है। कुछ गीतों में वेदना का वर्णन होता है। जैसेः-
कउने घड़ी भय सिरी रामे, कउने घड़ी लछिमन हो,
ललना कउने घड़ी भरत भूलाल, तीनों घर सोहर हो,
भले घड़ी भये सिरी रामे, भले घड़ी लछिमन हो
ललना भले घड़ी भरत भूलाल, तीनों घर सोहर हो,

नवजात बालक या बालिका में राम एवं सीता जी की छवि देखकर आनंदित माताएं अपनी जीवन के अभावों को भूल कर कौशल्या और सुनयना के समान सुख पाती हैं। सामाजिक व्यवस्था के नेगियों को भरपूर दान दक्षिणा से उपकृत करना चाहती हैं।
राम जनम लिन्हें, राम जनम लिन्हें
चईत रामनवमी में राम जनम लिन्हें
सुईन आवय नेरूवा छिनय
नेरूवा छिनवनी देबो मन के मड़वनी
सखियाँ आवयँ , सोहर गावयँ
सोहर गववनी देबो, मन के मड़वनी
चईत रामनवमी म राम जनम लिन्हें

विवाह सभी संस्कारों में महत्वपूर्ण है। इसमें दो आत्माओं का मिलन के साथ सृष्टि के विकास का बीज भी समाहित है। छत्तीसगढ़ी लोकजीवन की अभिव्यक्ति, विवाह गीतों से सुस्पष्ट है। लोक में विवाह के अवसर पर, वर-वधु, विष्णु-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, सीता-राम, राधा-कृष्ण के रूप में पूजित होते हैं। लोक की यह विशेषता है कि वह ईश्वरत्व में मनुष्यत्व और मनुष्यत्व में ईश्वरत्व को प्रतिष्ठापित करता है। श्री राम कथा परक, विवाह गीतों में अभिव्यक्ति देखिए—
एक तेल चढ़िगे हो, हरियर-हरियर
मड़वा म दुलरु तोर बदन कुम्हलाए
रामलखन के ओ, रामलखन के
तेल ओ चढ़थे दाई, तेल ओ चढ़थे
कँहवा के दियना होवय अंजोर
राम-लखन के दाई, तेल ओ चढ़थे
कौसल्या के दियना मोर होवय अंजोर

आँगन में मंडप सजा कर कलश स्थापित करते हैं ।इस अवसर पर यह गीत गाते हैं-
सराई सौगोना के दाई मड़वा छवाई ले
वही सिरिस वही खाम
सीता ल बिहावय, राजाराम
नदिया के तिर-तिर दाई पड़की परेवना
कनकी ल चुनी-चुनी खाय
कि अय मोर दाई, सीता ल बिहावय राजाराम

यह लोक की आस्था और श्री सीताराम के प्रति श्रद्धा भाव है कि सप्तपदी लेते वर-वधु में राम-सीता की झाँकी देखते हैं-
भाँवर परत हे हो, भाँवर परत हे हो,
नोनी दुलरी के होवत हे, दाई
मोर राम आऊ सीता के बिहाव
एक भाँवर परगे ,एक भाँवर परगे
हो नोनी दुलारी के, हो नोनी दुलारी के
अगिन देवता, दाई, हावय मोर साखी।

लोक पर्व भोजली के गीतों में पौराणिक ऐतिहासिक प्रसंगों के साथ-साथ राम, महतारी कौशल्या जी तथा श्री राम और सीता जी का भी पावन उल्लेख मिलता है। जैसेः-
देवी गंगा ,देवी गंगा ,लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा
हमरो देवी भोजली के, भींजय आठो अंगा
अहो देवी गंगा $$$$
कौसल्या के मइके म, भोजली सरोबो
सियाराम के दरसन करके, तोला परघाबो
अहो देवी गंगा $$$$

छत्तीसगढ़ी लोकगीतों की रानी ददरिया की गूंज में ,सामूहिक चेतन धारा की संगीत का स्वर सुनाई देता है । फिर भी लोक- प्रेम के इस लोकगीत में रामकथा के पात्रों का सहज उल्लेख मिलता है। इसके अंतर्गत श्री राम वन गमन, सीता अन्वेषण तथा मुक्तिदाता के रूप में श्री राम का स्मरण किया जाता है। जैसे :-
बोलो बोलो मुनिरंजन, हरिगुन गावो रे, चिरैया बोले
बागा ल बाँधे, पुरुत-पुरुत करके
राम झिरिया नहा ले सुरुत करके
कोन बन म आमा, कवन बन म जाम
कोन बन के चिरैया बोलथे, राजाराम
राम धरे धनुहि, लखन धरे बान
सीतामाई के खोजन बर, जुटे हे हनुमान।

राउत नाचा के दोहो में स्वाभाविकता, जीवन का यथार्थ अनुभूत भावनाएं, प्रमुख विषय बनती है। परिवारिक सामाजिक जीवन के प्रसंग, हास्य व्यंग्य सुभाषित तथा राम कथा परख दोहे भी इस गीत में समाहित होते हैं :-
नीलकंठ कीरा भखय, मुखय बिराजे राम
करनी सो कैसे रहय, दरसन सोहै काम
कारी बनके करोवाँ , बन धवाई के छछान
साल्हे बन के सुअना, भजो राम के नाम
राजा जनक के छोकरी ,भर लावत हे नीर
एड़ी मांजत ,मुख धोवत निरखे बदन सरीर
बेटा कारन दसरथ मरगे बहिनी कारन कंस
सीता कारन रावन मरगे ,उहूँ हे निरबंस।

लोकविधा पंडवानी में राम कथा रूपी भव्य भवन के महाद्वार वीर हनुमान की कथा विशेष रुप से गाई जाती है। भीम-अर्जुन के गर्व हरण प्रसंग हो या कुरुक्षेत्र के समरांगण में श्री कृष्ण के संकेत पर कई वीरोचीत कार्य हो, सब में हनुमत वीर की वीरता ही काम आती है। वीरमति शैली की पंडवानी की शुरुआत तो राम की आलाप से ही शुरू होती है। भले ही कथा महाभारत के महानायक युगावतारी कृष्ण और पांडवों की हो-
रघुपति चरण मनाई के, बियास देव धरि ध्यान
आदि पर्व भासा रचे, सबल सिंह चौहान
रामे -रामे -रामे-रामे गा भइया जी
रामे रामे रामे गा रामे भाई
राजे जनमेजय पूछन लागे भइया जी
वैशंपायन कहन लागे भाई

छत्तीसगढ़ के पुरुष नृत्य गीतों में डंडा प्रमुख है जिसे यहां रास कहा जाता है इसके नृत्य गीतों में रामायण के लोक प्रचलित प्रसंग प्रमुख रूप से मिलते हैं। सीता अन्वेषण का एक- एक प्रसंग दृष्टव्य है-
तरिहारि नाना मोर नाना रे भइया
ए हरि नाना मोर नाना रे भाई
राम-लखन दुनो भइया मिलके,
जानकी खोजत , चले जाए हो लाल ।
बेंदरा भालू के दल-बल साजे ,
भूंई बेंदरा न समाय हो लाल ।।
कटकत रहय मोर बेंदरा-भालू ,
सागर के तीर म जाए हो लाल ।।

सुआ केवल स्त्रियों की नृत्य है। इसलिए लास्य प्रधान है। सुआ गीत में स्त्री जाति की आत्मा बोलती है । जिसमें नारी जीवन की व्यथा के साथ रामकथा भी इस नृत्य गीत के विषय होते हैं। वन पथ पर गमन करते राम, लक्ष्मण और सीता की छवि देखकर गाँव वाले महिलाओं की अभिव्यक्ति में उनकी भक्ति झलक रही है-
आये रहय राम संगे म ,आये सीता रे सुअना रे
ये हावे ये लछिमन जीवन लाहो-लइबो रे सुअना रे
आवो-आवो बहिनि जीवन लाहो-लइबो रे सुअना रे
नयना हा जा ली रे जुड़ाय ना रे सुआ हो $$$$ $

आल्हा गायकी में दोनों धाराओं का परिचय मिलता है, शाक्त और वैष्णव
पहिली सुमरनी हिंगलाज को, मैहर की शारदा माय।
कछुक सुमरनि लहुरावीर के,जो बाँयें में होय समाय

वैष्णव-
सुमिरन करके रामचंद्र को लैबन भला का नाम।

लोक में जब भी कोई मांगलिक कार्य संपन्न होता है, तो लोकगीतों की लाली बिखर जाती है। रामकथा परक इन लोकगीतों की पंक्तियां वेद की रिचाओं की भाँति, कहीं उल्लास से तो कहीं, भक्ति भाव से गाई जाती हैं। रामकथा के प्रसंगों को गाकर गायक लोक गायकी की मौखिक परंपरा को गतिशील करते हैं। जिसमें भक्ति प्रेम और लोक विश्वास झलकता है जैसे-
कइसे के चिन्हँव सीता जानकी, कईसे चिन्हव भगवान
करसा बोहे चिन्हँव सीता जानकी, मुकुट खोंचे भगवान
कामा मैं चिन्हँव सीताजानकी,कामा मैं चिन्हँव भगवान
जामत चिन्हेंव अटहर-कटहर, मौरत चिन्हेंव आमाडार
चउक म चिन्हेंव सीता जानकी ल मटुक म चिन्हेंव राम
आगु-आगु मोर राम चलत हे पीछू-पीछू लछिमन भाई
अउ मंझोलग मोर सीताजानकी,चित्रकुट बर चले जाई

वाचिक परंपरा में प्रचलित राम कथा का सरवन या बसदेवा गीत में मोहक प्रस्तुति होती है। मर्यादा के विपरीत रावण के कार्यों का मारीच के द्वारा विरोध किया जाता है। विवश होकर अंत में मारीच सोने का मृग बनने के लिए तैयार भी हो जाता है। बसदेव गीत में मारीच के मनोभाव का सुंदर चित्रण, इस सरवन गीत में हुआ है-
जे जावय मारीच दरबार ,मारीचमामा सून मोर बात।जय गंगान—
पंचवटी चल जाबो गा ,सीताहरण कर लाबो गा। जय गंगान—-
मोर दुई बालक बनवासी होए, सीताहरण बन हिरन।करव। जय गंगान—-
मोर उलटा मारीच दे ललकार,सुन ले गरभी रावन बात. जय गंगान—-
मोर जगत के , जानकी माता आय, जिनके ऊपर लगइहों हात। जय गंगान—
जा तेरे कुल कुल का होइंहैं नास, रावन गुस्सा तेज होई जाए। जय गंगान—-
मोर खींच लेइन हाथें तलवार, मामा मारीच होय लाचार। जय गंगान–
मोर तंय धरले जोगी का रूप, मैं धरिहंव मिरगा के रूप। जय गंगान—
तुम पहिरव नौलखा हार की जय हो $$$$

लोक गायकों ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के अवध की गलियों और सरयू तट में होली खेलने का गान किया है। जो लीला प्रधान कम चरित्र प्रधान अधिक है। जब-जब उग्र युग आए और देश को बल, वीर्य, युद्ध और आक्रमण की आवश्यकता हुई, देव-मूर्तियाँ भी उसी के साथ उग्र हो गई। रक्त पान करती हुई, सहस्त्र आयुध धारिणी दुर्गा, महावीर, विक्रम बजरंगी हनुमान, प्रलयंकर रुद्र आदि की हमने सर्जना ही नहीं की वरन उपासना भी की। जब-जब अमंगल का भय होता है, हम यही करते है, क्योंकि हमने एकांगी अहिंसा या हिंसा को स्वीकार नहीं किया। साधुओं की रक्षा और दुष्टों का संहार साथ चलते हैं। यही हमारी राष्ट्रीय अहिंसा की कल्पना में है।

मस्ती एवं भक्ति के फाग लोकगीतों में सीता अन्वेषण लंका दहन, अंगद रावण संवाद, राम रावण युद्ध आदि प्रसंगों में हनुमान और जामवान आदि के पराक्रम गान अधिक हुआ है। लंका में युद्ध प्रसंग का एक दृश्य देखिए जिसमें रामदल के वीरों की वीरता का बखान किया गया है–
हाँ हाँ रे रावन छोड़ दे आशा लंका के—–
गढ़ लंका चढ़े राजाराम, छोड़ दे आसा लंका के।
पहले द्वार अंगद ठाढ़े,जेन सभा म रोपे पाँव ।रावन–
दूसर द्वार नल-नील ठाढ़े, जिन सागर बांधे सेत।रावन-

रामकथा परक निर्गुणियाँ या कायाखड़ी लोक भजनों में जीवन की नश्वरता मोह माया की अष्टपदी जाल की ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या का भाव खूब उभरा है। इस नश्वर संसार में राम नाम ही केवल सार है।-
मन मेरो अजान (2) केवल राम सुमर ले हो
बिना पांख के सुअना रे, उड़ रहो आगास,
जहाँ धूप न छाया।
जहाँ भूख लगे न प्यास, केवल राम सुमर ले
पांच तत्व के पिंजरा रे जा में सुआ अमोल
बइठे कदम की छँईहा, जहां करत किलोक$$$
एक ईट की बनी अटारी रे जहां भंवरा गुंजार
राम लखन की जोड़ी किनने हर लीन
राम लखन की जोड़ी रावन हर लीन
केवल राम सुमर ले रे$$$$

अर्धस्वर्ग में उड़ान भर रहा लोक का जटायु सीता की परिचय पूछता है, और विश्व विजेता रावण से भीड़ जाता है। परहितरत जटायु का भले ही प्राणांत हो जाता है, पर आज भी अत्याचारों के विरुद्ध उठ खड़े होने की प्रेरणा देता है। डंडा नृत्य गीत के गायक आज भी उक्त प्रसंग को गाते हैं
काकर हव तुम धीया पतोईया
काकर तुम भौजाई हो लाल
काकर हवा तुम प्रेमपियारी
कौने हर ले जाई हो लाल
दसरथ के मैं तो धिया पतोहिया ,
लछिमन के भौजाई हो लाल
हव रघुवीर के प्रेमपियारी
रावन हर ले जाई हो लाल
ओतका ल सुन मोर बुढ़वा जटायु
आधा सरग मेंड़राई हो लाल।

जटायु रामकथा का एक ऐसा पात्र है, जिसका गहरा परिचय पाए बिना रामायण पढ़ना अपूर्ण ही कहा जाएगा। जटायु उस वृत्ति का प्रतीक है जो प्राण की बाजी लगाकर भी अन्याय और अनिष्ठा का सामना करता है। इतना ही नहीं वह अपता वृत्ति आगे बढ़कर मौत को आमंत्रित करता है। देश और दुनिया में दूषित शक्तियाँ, मनुष्य को परेशान कर रही है। इन वैश्विक और अशुभ तथा पापी ताकतों को ऋग्वेद में ‘विश्वानि दूरितानि’ कहा गया है। भगवत गीता में इन पापियों के लिए आततायिनः शब्द प्रयोग किया गया है।

अशोक वाटिका में बंदनी जगतजननी सीता के करुण कातर स्वर लोक ने सुना और खूब गाया भी। इन गीतों में भाव के प्रवणता, सहजता और क्षेत्रियता की छाप है। हनुमतवीर से सीता जी पूछ रही हैं-
कब आहिं पवनसूत, रामे लखन कब आहिं,
धर-धर रोए, सिया जानकी, नयना दरस कब पाहिं
पवनसूत$$$$——
एक-एक दिन जैसे जुग-जुग लागे रात लागे चौमासा
रोई-रोई नयना के नीर सुखागे राम दरस के पियासा
जग भर के तहिं दुःख के हरैया, दुख मोर कब नदाही
पवनसूत $$$$——

बस्तर के जनजातियों में प्रचलित जगार गीतों से लेकर चिल्पी घाटी के बैगा जनजाति तक श्री राम कथा की गूंज है। वन प्राणांतर की आदिवासी युवा-युवति, प्रौढ़-वृद्ध जब मिलते हैं, तो “सीताराम लय रे” कहते हुए हाथ मिलाकर घुटने का स्पर्श करते हैं। छत्तीसगढ़ के जनमानस में श्री राम कथा की गहरी पैठ है। इसमें सर्वाधिक प्रभाव तुलसीकृत रामचरितमानस का है। जिसे अंगूठा टेक हलवाहे से लेकर उच्च शिक्षित समाज के लोग किसी न किसी रूप में स्मरण करते हैं। प्रभातफेरी, खेलगीत, रामधुन में भी रामकथा की मोहक प्रस्तुति होती है। श्रीराम में विष्णु के अनेक अवतारों को समाहित कर दिया जाता है। सीता निर्वासन को छत्तीसगढ़ के लोक में उचित नहीं माना जाता है। लोकगीत में गाते हैं, जनपदीय कवियों ने भी लिखा है। गर्भिणी सीता का परित्याग उचित नहीं था। राम आप भगवान हैं। अपनी महिमा आप जाने किंतु यह ठीक नहीं हुआ। जैसे-
काबर तियागे हो रामा, काबर तियागे हो रामा
काबर दिये बिसारे, सीतामाई ल राम
बनोवास म रावन मारे, राजा होय सिय हारे
परमारथ सब हुए अकारण दुविधा म जिय हारे
सीता माई ल राम, काबर तियागे-

लोक गायक में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के अवध की गलियों और सरयू तट पर होली खेलने का काम किया है। जो लीला प्रधान कम, चरित्र प्रधान अधिक है। जैसे-
चल हां अवध में, बाँधे मुकुट खेले होरी
दशरथ के चारों लाल अवध में
बाँधे मुकुट खेले होरी
इस तरह छत्तीसगढ़ी संस्कृति में रामकथा की व्याप्ति कण कण में हैं, हर मन में हैं हर ह्रदय में हैं।

जब मुख्य वक्ता प्रोफेसर डॉ राजन यादव जी की वार्ता चल रही थी, उसी मध्य इस वेबीनार के मेहमान वक्ता थाईलैंड के प्रोफ़ेसर विलार्ड वेन डी बोगार्ड जी ने थाईलैंड से वेबीनार को संबोधित किया वे बैंकॉक विश्वविद्यालय थाईलैंड में प्रोफेसर हैं। वे वहाँ रहकर भगवान राम से जुड़े हुए साक्ष्यों को एकत्र कर रहे हैं। अपने साथियों के साथ उन्होंने जो खोज की है, वह खोज इंडोनेशिया और कंबोडिया के संस्कृति को 12000 bc तक ले गई है। वह अपने साथियों के साथ मिलकर थाईलैंड में स्थाई रूप से भगवान राम के ऊपर एक सेंटर खोलने का विचार कर रहे हैं। रामायण में उनका गहरा काम है। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण एक अच्छी पहल है, और इनका स्थानीय भाषा और ब्रिटिश इंग्लिश में अच्छे से अनुवाद होगा। उन्होंने सभी कार्यकर्ताओं और अतिथियों को धन्यवाद दिया। जो इस कार्य में लगे हुए हैं। उन्होंने संयोजक और इंडोलॉजिस्ट श्री ललित शर्मा जी को स्पेशल धन्यवाद दिया। जिसके कारण यह वेबीनार सफलतापूर्वक चल रहा है और इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण के लिए तन मन धन से लगे हुए हैं।

उसके बाद बैंकॉक नेशनल म्यूजियम की गाइड श्रीमती अनिता बोस जी ने भी वेबीनार को संबोधित करते हुए बताया कि डॉक्टर चिरापद के साथ मिलकर वे लोग थाईलैंड में काम कर रहे हैं। राम के विषय में, राम की खोज में उनका बहुत बड़ा योगदान है। दक्षिण पूर्व एशिया में भारतीय संस्कृति का बहुत बड़ा महत्व है। वे लोग थाईलैंड में स्थाई रूप से सेंटर खोलने पर विचार कर रहे हैं। रामायण में उनका गहरा काम है। विलार्ड जी ने थाईलैंड में बहुत बड़ा काम किया है। थाईलैंड के सैनिकों में हनुमान जी की बहुत मान है। वे अपने झंडे में हनुमान जी की तस्वीर लगाते हैं। उनका मानना है की यदि हम हनुमान जी को ध्वज में लगाकर लड़ाई लड़ने जाएंगे तो निश्चय ही जीत होगी। यह यहाँ की सैनिकों में गहरी आस्था है। दक्षिण पूर्व एशिया में हनुमान जी पावर मैन की तरह जी रहे हैं। कैसे वे हमारे राम और हनुमान को लेकर जी रहे हैं, यही मेरी भी स्टडी है और यहाँ पर काम करने वाले सारे खोजी लोगों के मन में भी उत्साह बढ़ा है।

इसके बाद इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण के कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह जी जो अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक भी हैं, ने वेबीनार को संबोधित करते हुए कहा कि अयोध्या से सब को मेरा प्रणाम है। यादव जी की लोकगीतों में गहरी पकड़ है। प्रोफेसर होते हुए भी उनका काम अद्भुत है। हम उनकी भावना को इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण में कैसे उपयोग कर सकते हैं, हमारी क्या-क्या चुनौतियाँ होंगी, हम सब भागीरथ कैसे बन सकते हैं? इसकी आवश्यकता है। साउथ ईस्ट में यह मान्यता है कि हनुमान जी का विवाह मीनाक्षी से हुआ था और उनके दो बच्चे भी हैं। यह बात यहाँ लोग स्वीकार नहीं कर पाएंगे, परंतु साउथ ईस्ट में यह प्रचलन में हैं और वे उन्हें वीर पुरुष के रूप में देखते हैं। उड़ीसा के शिल्प का साउथ ईस्ट में गहरा प्रभाव रहा है। हमें यह देखना है कि इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण में हमारे लिए क्या-क्या चुनौतियाँ आएँगी? इसका हम हल कैसे ढूंढ पायेंगे यही हमारा काम है।

डॉ महेंद्र कुमार मिश्रा जी ने आदिवासी और उड़ीसा के तीन रामायणों अनुवाद किया है यह उन्होंने बताया। जो शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। विजुअल आर्ट टेक्स्ट में कितना काम करना है यह हम सब करके दिखा पाएंगे। कितनी राम कथा लिखित और सुरक्षित हैं। दक्षिण कौशल में साहित्य और संस्कृति में बहुत बड़ा मौखिक रामायण हैं। जो 500-600 से ज्यादा हैं। इन सब का भी कैसे हम अध्ययन कर पायेंगे यह भी हमारे लिए चुनौती है।

डॉ पूर्णिमा केलकर जी ने भी अपनी भावना प्रकट करते हुए कहा कि तुरतुरिया ग्राम में लव कुश का जन्म हुआ था। यहां दंडकारण्य में विराट, सरभंग आदि ऋषियों का आश्रम है। जनस्थान में शूर्पणखा को राक्षसी और कामरूपिणी के रूप में देखा जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि दंडकारण्य में कुछ लोग श्रीलंका को मानते हैं। आज उनके कई प्रश्न थे जिस पर ललित शर्मा जी ने जवाब देते हुए कहा कि हम सब राम के काम में लगे हैं हम ही बंदर भालू की तरह ही राम के साथ मिलकर इस कार्य को करेंगे और सफल होंगे। इस तरह उन्होंने इस वेबीनार में शामिल हुए सभी लोगों का हृदय से आभार प्रकट किया इस शिविर में लगभग 109 लोगों ने अपनी प्रतिभागिता दी। हम सब का आभारी हैं।

रिपोर्टिंग

हरि सिंह क्षत्री
मार्गदर्शक – जिला पुरातत्व संग्रहालय कोरबा, छत्तीसगढ़ मो. नं.-9407920525, 9827189845

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