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दण्डकारण्य में राम : रामनवमी विशेष

बस्तर अपने प्राचीन पुरातात्विक महत्व, आरण्यक संस्कृति, दुर्गम वनांचल एवं अनसुलझे तथ्यों के लिए प्रसिद्ध है। बस्तर, दण्डक, चक्रकूट, भ्रमरकूट, महाकांतर जैसे अनेक नामों से परिभाषित धरती पर स्वर्ग का पर्याय है। बस्तर के पूर्वजों ने धर्म, विज्ञान, साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में जो पराक्रम किया है। वह सारा विस्तार बस्तर के भू-भाग में परिलक्षित है, जिसके तेज को आज भी बस्तरवासी साक्षात अनुभव करते हैं।

भगवान श्री राम के बस्तर आगमन के अनेकों कथा, प्रसंग, किंवदन्तियों व जन श्रुतियों में है। जिसे बस्तर भू-भाग के पौराणिक एवं पुरातात्विक साक्ष्य प्रमाणित करते प्रतीत होते हैं। इस साक्ष्य का रामायण जैसे प्रमाणिक ग्रंथ में उल्लेख मिलता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रामायण काल का स्पष्ट प्रभाव मिलना दूर्लभ है। रामायणकाल की घटना लगभग नौ लाख चौरासी हजार वर्ष की है, यह तिथि रावण की संहिता में भी दर्ज है।

भारतीय ज्योतिषियों के काल गणना अनुसार त्रेता युग के आधार पर भगवान राम का जन्म 15 से 26 लाख वर्ष पूर्व माना जाना चाहिए। अन्य गणन के आधार पर भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वीं पूर्व माना जाता है। धर्म ग्रंथों में सम्मिलित अगस्त्य संहिता के अनुसार चैत्र शुक्ल नवमीं के दिन पुनर्वसु नक्षत्र कर्क लग्न में जब सूर्य अन्य पांच ग्रंहों की शुभ दृष्टि के साथ मेष राशि में विराजमान थे, तब साक्षात भगवान राम ने माता कौसिल्या के गर्भ से जन्म लिया था।

भैरमगढ़ के प्रस्तर शिल्प में हनुमान – फ़ोटो ओम सोनी गीदम

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के चरित्र पर आधारित प्रसंग हजारों वर्षों से बस्तर की भूमि पर प्रवाहमान है। बस्तर की भूमि में रामचंद्र जी का पूरा जीवन मर्यादाओं की ऐतिहासिक यात्रा से परिपूर्ण था।

राम एक आदर्श राजा होने के साथ ही कर्तव्य को समझने वाले भाईयों के प्रेम का आदर करने वाले तथा वानर राज सुग्रीव की मित्रता को अन्त तक निभाने वाले सगे मित्र के रुप में भी जाने जाते हैं। यही कारण है कि बस्तरवासियों ने राम को आदर्श के रुप में स्वीकार किया।

बुनियादी अभाव, प्रताड़ना, शोषण से संघर्ष कर रहे बस्तरवासियों में राम आसुरी शक्तियों को समाप्त करने वाले देव के रुप में स्थापित हैं। राम का देवदूत के रुप में बस्तरवासियों में स्थापित होने के कई साक्ष्य बस्तर भू पर विद्यमान हैं।

पुरातात्विक साक्ष्य शैल चित्रों के रुप में

बस्तर का वनांचल नैसर्गिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, सुंदरवन कल-कल करती नदियों का जल, कलरव करते पक्षी, मुग्ध सुंगध, प्रवाहित सुवासित बयार ऐसे रमणिय और आनंददायक वातावरण में शैलचित्र के रुप में बस्तर के अनेक स्थानों में रामायण में घटित घटनाओं का शिल्पांकन मिलता है।

प्राचीन काल में दक्षिण कोसल के नाम से जाने जाना वाला यह प्रदेश वनों से आच्छादित था और बस्तर परिक्षेत्र को दण्डकारण्य के नाम से जाना जाता है, अत: बस्तर का रामायण से निकट संबंध दिखाई देता है और यही कारण है कि बस्तर के अनेक स्थलों पर भगवान राम के अनेक प्राचीन देवालय स्थापित हैं।

जिला उत्तर बस्तर के चारामा विकास खंड के गोटी टोला पहाड़ी के विशाल शिलाखंड पर राम दरबार के शैल चित्र उत्कीर्ण हैं। राम दरबार के साथ अबुझमाड़ शैली में तीर धनुष और शिकार करता मानव तथा अन्य साक्ष्य दिखाई देते हैं। ऐसे ही साक्ष्य शैलचित्र समीपस्थ ग्राम उड़कुड़ा (जोगी गुफ़ा) गाड़ा गौरी में बना है।

ग्राम कुलगाँव मोहपुर में भी इसी आशय का शैलचित्र है। ग्राम रिसेवाड़ा विकासखंड नरहरपुर के वन क्षेत्र में 11 वीं शताब्दी के देऊर (छोटा देवालय) के गर्भ गृह में शिव पावर्ती और राम सीता की प्राचीन प्रतिमाएं हैं।

कांकेर शहर के अनेक स्थलों में प्राचीन राम देवालय मिलते हैं। यह प्राचीन प्रस्तर प्रतिमाएं भगवान राम बस्तर आगमन के साक्ष्य को रेखांकित करते हैं। ग्राम रामपुर, जुनवानी विकासखंड, कांकेर में राम लक्ष्मण के द्वारा विष्णु जी की पूजा करने की जनश्रुति है। जिसका साक्ष्य ग्राम में प्राचीण विष्णु जी मूर्ति व देवालय है।

भगवान श्री राम महानदी और दूध नदी होते हुए कांकेर और कांकेर से कोटरी नदी मार्ग से केसकाल होते हुए गढ़ धनोरा पहुंचे थे, उसके पश्चात नारायणपुर, छोटे डोंगर, बारसूर, चित्रकोट, नारायणपाल आदि स्थलों पर राम भ्रमण का उल्लेख मिलता है। वैसे भी वनवास काल में श्री राम के वन गमन मार्ग में बस्तर का उल्लेख मिलता है कि रामचंद्र जी के पर्णकुटी प्रस्थान करने के पूर्व उनकी भेंट गीदम के गिद्धराज जटायू से हुई थी।

चित्रकोट में हनुमान – फ़ोटो ओम सोनी गीदम

गीदम से दंतेवाड़ा शंखिनी-डंकिनी नदी मार्ग से होते हुए तीरथगढ़ पहुंचने का कथा प्रसंग है। तीरथगढ़ जल प्रपात के स्थल पर सीता नहानी है। जहाँ माता सीता ने स्नान कर पास के प्राचीन देवालय में शिव जी की पूजा की थी। यहाँ प्राकृतिक रुप में अनेक शिवलिंग मिलते हैं। बस्तर के कोंटा (इंजरम) होते हुए आंध्र प्रदेश के भद्राचलम जाने का वर्णन श्लोक में वर्णित है-

प्रविश्य तु महारण्यं दंडकरण्य मात्मवान् ।
रामा दशर्श दुर्धर्ष स्तापसा श्रम मण्डलम्।।

बस्तर के लोक साहित्य, लोकगीतों, लोकनाट्यों में भगवान राम

बस्तर का लोकसाहित्य मुख्यत: दो भागों में प्रवाहित है, पारम्परिक (वाचिक) व अपारम्परिक (लिखित)। सृजन की इस भाव भूमि में मौखिक या लोक साहित्य (हल्बी-भतरी) भगवान श्री राम का कथा प्रसंग सदियों पूर्व बस्तर के भू-भाग में झालियाना, छेरता और तारा आदि लोकगीत में विद्यमान है। किन्तु जगार गीत में भगवान का वर्णन लोक साहित्य की गरिमा का परिचायक है।

बस्तर में सदियों से धनकुल गीत में रामायण व महाभारत के प्रतिकात्मक कथाओं के माध्यम से भगवान श्री राम लोक साहित्य में विद्यमान हैं। ठाकुर पुरण सिंह, स्व: पं गणेश प्रसाद सामंत के 1937 में हल्बी में प्रकाशित लोक साहित्य इसके उदाहरण हैं। 1950 में स्व: पं गंभीरनाथ पाणीग्रही का गजामूंग, हल्बी पंचतंत्र, रामकथा, राम चालिसा प्रसंगवश रामकथा की आख्यायिका निश्चित तौर पर बस्तर में राम के वन आगमन का सुक्ष्म साक्ष्य है।

बस्तर का जगार गीत प्रबंध काव्य के अंतर्गत आता है। अंचल का प्रबंध काव्य जब मौखिक परम्परा के अंतर्गत प्रस्तुत होता है तब इसमें महाकाव्य के सारे लक्षण सुनाई देते हैं। जगार लोकगाथाएं हैं – सीता स्वयंवर, शिव विवाह आदि प्रसंग आरंभ करने से पूर्व दायित्व निर्वहन करने वाली गुरुमांय अपनी वंदना राम शब्द के उच्चारण पश्चात ही प्रारंभ करती हैं।

यथा: हरी हरी मयं राम राम
हरी हरी मयं राम राम
हरी पद चाले बाबा
गुरुमांयं नमना करे हरी बोल
हरी हरी मयं राम राम

यह श्रद्धा भक्ति युक्त साक्ष्य बस्तर में सहज प्रवेश नहीं कर गया। अपितु इसका ऐतिहासिक कारण अवश्य है।

पारम्परिकता लोकनाट्य की गरिमा की कसौटी होती है। यह उसकी आत्मा है। बस्तर के भतरा नाट में पौराणिक धार्मिक प्रसंगों का मंचन प्राचीन समय से अनवरत हो रहा है, जिसमें राम रावन युद्ध, सीता हरण, सीता स्वयंवर, राम द्वारा राक्षस वध आदि नाट का यहाँ प्रचलन यहां काफ़ी पुराना है। नाट जैसे विद्या भागोक्तम में भी भगवान राम के चरित्र का दृश्य एवं श्रव्य रुप में मंचीय प्रस्तुतिकरण है।

भागोक्तम के प्रसिद्ध कथा प्रसंग राम जन्म, भरत मिलाप, राम रावण युद्ध आदि तथ्यों को रेखांकित करता है कि सदियों पूर्व बस्तर के भू-भाग में भगवान श्री राम का आगमन हुआ था। इन्हीं कथा प्रसंगों गौरम्मा जी पर्व पर खेलगीत के रुप में दक्षिण बस्तर में बालिकाएं पुष्प का मीनार बनाकर रामायण के दोहों का सस्वर गायन करती हैं। यह क्रम नौ दिनों तक चलता रहता है।

चैतरई दशहरा

बस्तर में दशहरा पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। आश्विन (अक्टुबर) मास में प्रतिवर्ष धूमधाम से मनाने वाले दशहरा के अलावा चैत मास में संक्षिप्त रुप से चैतरई दशहरा या छोटा दशहरा मनाया जाता है। चैतरई दशहरा का संबंध भगवान राम के जीवन प्रसंग से जुड़ा होता है परन्तु इस दशहरे में रावण वध की परम्परा नहीं है। महिषासुर के प्रतीक महिष को मारा जाता है। यह गणना के हिसाब से 15 दिनों तक चलता है। चैतरई दशहरा के माध्यम से बस्तरवासी के हृदय में सदियों से भगवान श्री राम विराजमान हैं। यह तथ्य भगवान के बस्तर में आगमन का प्रमाण है।

गोबर बोहरानी

रामनवमीं के ठीक पहले आयोजित होने वाले इस पर्व पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्म प्रसंग पर आधारित ग्राम्य देवों की आराधना की जाती है। गोबर बोहरानी ग्राम के खुले मैदान छापर पर ग्राम्य पुजारी भगत के निर्देश पर आयोजित होता है। यहाँ आखेट में प्रयुक्त होने वाले शस्त्र धनुष तीर, कुल्हाड़ी, फ़रसा आदि की विधिवत पूजा करते हैं। यह रस्म बस्तर के वनवासियों में अंतर्निहीत होने के कारण श्री राम के प्रति आस्था मात्र अपितु श्री राम के इनके भू-भाग पर आगमन है।

बाली वध के पश्चात तारा विलाप, मल्हार – फ़ोटो ललित शर्मा अभनपुर

बस्तर के मूल निवासी माड़िया, मुरिया, गोंड़, किरात, निषाद, शबर, कोल से श्री राम की मित्रता व इन मित्रों द्वारा भगवान श्री राम का वनवास के दौरान सहयोग करना भगवान का बस्तर आगमन का साक्ष्य है। बस्तर अंचल का सारा जीवन प्रकृति पर अवलंबित है, अत: बस्तर में प्रथम प्रकृति की पूजा की जाती है। इसमें माटी तिहार (बीज पुटनी), विज्जापण्डुम, चरुजात्रा, दियारी तिहारी और लछमी जगार में प्रभु राम की आराधना कर धार्मिक कार्य सम्पन्न करते हैं।

बस्तर के बाह्य व्यवहारों में भले ही भिन्नता दिखाई पर थोड़ी सी अंतर दृष्टि डालने से एकात्मकता का प्रत्यक्ष परिचय प्राप्त होता है। बस्तर के लोगों का पुण्य सलिला वन भूमि, प्रकृति देव, दंतेश्वरी माई, कृष्ण एवं राम के प्रति श्रद्धा आस्था जन-जन में व्याप्त है। श्री राम कथा की धारा भक्ति भाव पैदाकर लोगों के नैतिक जीवन प्रवाह को सुंदर से सुंदरतम रुप दे रही है।

वनवासी के मन में पारिवारिक प्रेम उत्पन्न कर आदर्श अभिमुख आचरण की प्रेरणा देने वाले राम औरों को भी प्रेरित करने वाले हैं। यही कारण है कि बस्तर अंचल में एक भी ऐसा पर्व नहीं होगा जिसका संबंध राम से न हो। यही राम बस्तर के वनवासियों के जीवन में नवीन चेतना का संचार कर रहे हैं। राम से संबंधित पर्व सामुहिक रुप से मनाए जाने के कारण यहाँ के लोगों में सामुदायिक समरसता का भाव निरंतर प्रवाहमान है।

दिनेश वर्मा
बाजार पारा चारामा,
जिला कांकेर, छत्तीसगढ़

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