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Tag Archives: कु. शुभ्रा रजक

दक्षिण कोसल में गाणपत्य सम्प्रदाय एवं प्राचीन गणपति प्रतिमाएँ

भारतीय धार्मिक परंपरा में गाणपत्य सम्प्रदाय का प्रमुख स्थान माना गया है। वैदिक काल से देव के रूप में गणपति की प्रतिष्ठा हो गई थी। ऋग्वेद में रूद्र के गण मस्तों का वर्णन किया गया है।1 इन गणों के नायक को गणपति कहा गया है। पौराणिक देवमण्डल में गणपति का …

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संग्रहालय दिवस एवं महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय रायपुर

भविष्य के लिए मानव बहुत कुछ सहेजने के साथ अतीत को भी सहेजता है जिससे आने वाली पीढ़ियों को ज्ञात हो सके कि उनके पूर्वजों का अतीत कैसा था? यही सहेजा गया अतीत इतिहास कहलाता है। बीत गया सो भूत हो गया पर भूत की उपस्थिति धरा पर है। सहेजे …

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रामनामी : जिनकी देह पर अंकित हैं श्री राम जी के हस्ताक्षर

प्राचीन छत्तीसगढ़ (दक्षिण कोसल) प्राचीन काल से ही राम नाम से सराबोर रहा है। छत्तीसगढ़ की जीवन दायनी नदी जिसका पुराणों में नाम चित्रोत्पला रहा है, राजिम स्थित इस नदी के संगम को छत्तीसगढ़ का प्रयागराज कहा जाता है। महानदी के किनारे स्थित सिहावा, राजिम, सिरपुर, खरौद, शिवरीनारायण, तुरतुरिया आदि …

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दक्षिण कोसल में संकर्षण प्रतिमाएं

बलराम अथवा संकर्षण कृष्ण के अग्रज थे और कृष्ण के साथ – साथ इनका भी चरित्र विभिन्न पुराणों और अन्य ग्रन्थों में विस्तार पूर्वक वर्णित है। वासुदेव कृष्ण के साथ वृष्णि कुल के पंचवीरों में संकर्षण बलराम को भी सम्मिलित किया गया है। विष्णु के दशावतारों में सम्मिलित देवता बलराम …

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छत्तीसगढ़ से प्राप्त मुद्राओं पर प्रतिबिंबित शैव धर्म

इतिहास साक्ष्य सापेक्ष होता है। इतिहासकार पुरावशेषों से ज्ञात तथ्यों के आधार पर ही इतिहास का निर्माण करता है। प्राचीन मुद्राओं का इतिहास लेखन में विशिष्ट स्थान है। प्राचीन भारतीय इतिहास के अनेक तथ्यों के विषय में मुद्राएं ही साधन के रूप में प्रस्तुत होते हैं, जिससे इतिहास के अज्ञात …

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दक्षिण कोसल की स्थापत्य कला में लक्ष्मी का प्रतिमांकन

प्राचीन काल में भारत में शक्ति उपासना सर्वत्र व्याप्त थी, जिसके प्रमाण हमें अनेक अभिलेखों, मुहरों, मुद्राओं, मंदिर स्थापत्य एवं मूर्तियों में दिखाई देते हैं। शैव धर्म में पार्वती या दुर्गा तथा वैष्णव धर्म में लक्ष्मी के रूप में देवी उपासना का पर्याप्त प्रचार-प्रसार हुआ। लक्ष्मी जी को समृद्धि सौभाग्य …

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दक्षिण कोसल की कुबेर प्रतिमाएं

सनातन धर्म में त्रिदेववाद और पंचायतन पूजा के साथ – साथ अष्टदिक्पालों की उपासना और पूजा पाठ का विशेष महत्व रहा है। दिकपालों को पृथ्वी का संरंक्षक कहा गया है। इन्हें लोकपाल भी कहा जाता है। साधारणतया भूतल और आकाश की दिशाओं को छोड़कर इस पृथ्वी पर आठ दिशाएं मानी …

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शाक्त धर्म एवं महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमाएं : छत्तीसगढ़

भारतवर्ष में मातृदेवी एवं शक्ति के रूप में देवी पूजन की परम्पराएं प्रचलित रही हैं। भारतीय संस्कृति की धार्मिक पृष्ठभूमि में शाक्त धर्म का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सृष्टि के उद्भव से लेकर वर्तमान काल तक के संपूर्ण विकास में शक्ति पूजा का योगदान दिखाई देता है। नारी शक्ति को …

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बौद्ध धर्म एवं उसका विकास : छत्तीसगढ़

(अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर) भारतीय संस्कृति में धर्म का स्थान उसी प्रकार सुनिश्चित किया जा सकता है, जिस प्रकार शरीर में प्राण। धर्म को प्राचीनकाल से ही एक पवित्र प्रेरक के रूप में आत्मसात् किया गया है। भारत की यह धरा अनेक धर्मों के उत्थान एवं पतन की साक्षी …

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छत्तीसगढ़ में सूर्योपासना परम्परा : कलात्मक अभिव्यक्ति

मानव धर्म के माध्यम से अपनी मानसिक अभिव्यक्ति करता है। इसके अंतर्गत मानव ऐसी उच्चतर अदृश्य शक्ति के प्रति अपना विश्वास प्रकट करता है, जो उसके समस्त मानवीय जीवन को प्रभावित करती है। इसमें आज्ञाकारिता, शील, सम्मान तथा अराधना की भावना अंर्तनिहित होती है। अपने प्रारम्भिक अवस्था में मानव ने …

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