महर्षि अरविन्द कहते हैं कि श्रीराम का अवतार किसी आध्यात्मिक साम्राज्य की स्थापना के लिए नहीं हुआ था। राम परमात्मा थे, जिन्होंने मानवीय मानसिकता के आधार को स्वीकार किया और उसे शोभामय सम्मान दिया। माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर कहते हैं कि संपूर्ण भारतीय समाज के लिए समान आदर्श के रूप में …
Read More »स्वामी विवेकानन्द की धर्म की अवधारणा
12 जनवरी युवा दिवस विशेष आलेख ‘उठो! जागो!…और लक्ष्य प्राप्ति तक रूको मत!‘ भारत की आध्यात्मिक शक्ति, सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का गौरव विश्वभर में स्थापित करते हुए मानवता के कल्याण और राष्ट्र पुनरूत्थान के प्रति जीवन समर्पित कर देने वाले युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द का यह हृदयभेदी आह्वान …
Read More »अवध वहीं जहाँ राम गुण आचरण
गोस्वामी तुलसीदास जी रचित श्रीरामचरितमानस में वर्णित लक्ष्मण-सुमित्रा संवाद में लक्ष्मण भावपूर्ण होकर कहते हैं-‘‘अवध तहाँ जहँ राम निवासु। तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू।। इसका भावार्थ है कि ‘जहाँ सूर्य का प्रकाश हो वहीं दिन होता है, इसी प्रकार जहाँ श्रीराम का निवास हो वहीं अयोध्या है।‘ मानस में इस …
Read More »भारतीय सांस्कृतिक गौरव पर चिन्तन का माह है दिसम्बर
‘उठो! जागो!…और लक्ष्य प्राप्ति तक रूको मत!‘ भारत की आध्यात्मिक शक्ति, सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का गौरव विश्वभर में स्थापित करते हुए मानवता के कल्याण और राष्ट्र पुनरूत्थान के प्रति जीवन समर्पित कर देने वाले युवा सन्यासी स्वामी विवेकानन्द का यह हृदयभेदी आह्वान आज भी युवा पीढ़ी को प्रेरणा …
Read More »राष्ट्रीय एकात्मता का प्रतीक : विवेकानन्द शिला स्मारक
स्वामी विवेकानन्द ने 19 मार्च, 1894 को स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखे पत्र में कहा था – “भारत के अंतिम छोर पर स्थित शिला पर बैठकर मेरे मन में एक योजना का उदय हुआ- मान लें कि कुछ निःस्वार्थ सन्यासी, जो दूसरों के लिए कुछ अच्छा करने की इच्छा रखते हैं, …
Read More »भारतीय संस्कृति में पक्षियों का स्थान
पक्षी प्रेम और पक्षी निहारने की बहुत ही सशक्त परम्परा भारतीय समाज में प्राचीन काल से रही है। विविध पक्षियों को देवताओं के वाहन के रूप में विशेष सम्मान दिया गया है। भारतीय संस्कृति में पक्षियों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। विष्णु का वाहन गरूड, ब्रह्मा और सरस्वती का …
Read More »भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर स्वामी विवेकानंद का प्रभाव
भारत के राष्ट्रीय आंदोलन पर स्वामी विवेकानंद के प्रभाव का वर्णन स्वयं स्वतंत्रता के नायकों ने किया है। गांधीजी जब 1901 में पहली बार कांग्रेस अधिवेशन में हिस्सा लेने कलकत्ता पहुंचे तो उन्होंने स्वामी जी से मिलने का प्रयास भी किया था। अपनी आत्मकथा में गांधी लिखते हैं कि उत्साह …
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