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वैदिक संस्कृति

विराट भारत का महा संकल्प दिवस : श्रावणी पर्व

भारत की कृषिप्रधान और ऋषि परम्परा की संस्कृति में त्योहारों और पर्व उत्सवों का विशेष महत्वपूर्ण स्थान प्राचीन काल से ही रह है। यहां बाराहोमास ऋतु, तिथि, कर्म, धर्मानुसार पर्व और उपासना का विशेष महत्व रहा है ताकि जीवन मे रंग और उत्स बना रहे यद्यपि कुछ पर्वों के मनाने …

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मानव इतिहास को सहेजती गोत्र प्रणाली

जो समाज अपने पूर्वजों के बारे में जानकारी नहीं रखता, अपने पुरखों की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण न कर उन्हें भूल जाता है ,वहां समाजीकरण में अत्यंत वीभत्स दृश्य पैदा होते है और अंततः विप्लप या आतंक का कारण बनते है। प्राचीन भारतीय मनीषी इस मनोवैज्ञानिक सत्य से भलीभांति परिचित थे …

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योग मानव जाति के लिए संजीवनी

भारतीय मनीषियों एवं ॠषियों ने मन की एकाग्रता एवं शरीर के सुचारु संचालन के लिए योग जैसे शक्तिदायक क्रिया की प्रादुर्भाव किया। जिसका उन्होंने पालन कर परिणाम जग के समक्ष रखा तथा इसे योग का नाम देकर विश्व के मनुष्यों को निरोग, स्वस्थ एवं बलशाली बनाने का रसायन दिया। वर्तमान …

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भोजन में निहित है मनुष्य के स्वास्थ्य का राज

धरती के किसी भी प्राणी को जीवन संचालन के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है एवं प्राण संचालन की उर्जा भोजन से प्राप्त होती है। मनुष्य भी चौरासी लाख योनियों में एक विवेकशील प्राणी माना गया है, इसे भी उर्जा के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। अन्य सभी प्राणियों …

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वसंत पंचमी का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व

हमारा भारत पर्वों, उत्सवों का देश है, यहाँ साल के बारहों महीनें कोई न कोई उत्सव एवं पर्व मनाए जाते हैं। पृथ्वी का यह एकमात्र ऐसा भू-भाग है, जहाँ वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमंत नामक छ: ॠतुएं होती हैं। वैसे तो इनमें सभी ॠतुओं का अपना-अपना महत्व है। …

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चंदैनी गोंदा के अप्रतिम कला साधक: रामचन्द्र देशमुख

छत्तीसगढ़ माटी की अपनी विशिष्ट पहचान है। जहां राग-रागिनियों, लोककला और लोक संस्कृति से यह अंचल महक उठता है और लोक संस्कृति की सुगंध बिखेरने वाली समूचे छत्तीसगढ़ अंचल की अस्मिता का नाम है ‘चंदैनी गोंदा’। चंदैनी गोंदा कला सौंदर्य की मधुर अभिव्यक्ति है। यह आत्मा का वह संगीत है …

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कृषि संस्कृति और ऋषि संस्कृति आधारित त्यौहार : नवाखाई

भारत कृषि प्रधान देश है, यहां की संस्कृति भी कृषि आधारित होने के कारण यहाँ कृषि कार्य से संबंधित पर्व एवं त्यौहार मनाने की परम्परा है। इसमें एक त्यौहार नवान्ह ग्रहण का मनाया जाता है, जिसे नुआखाई या नवाखाई कहते हैं। यह पर्व नई फ़सल आने पर देव, पीतरों को …

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देवालयों में संगीत द्वारा ईश्वरीय आराधना की परंपरा

संगीत मनुष्य की आत्मा में निवास करता है, जब भी कहीं सुगम संगीत बजता हुआ सुनाई दे जाए मन तरंगित हो उठता है। प्राचीन भारतीय संस्कृति में संगीत का प्रमुख स्थान है। धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष नामक पुरुषार्थ चतुष्टय में इसे मोक्ष प्राप्ति का सुगम मार्ग माना जाता है। …

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बरन-बरन तरु फुले उपवन वन : वसंतोत्सव विशेष

भारतवर्ष मे ऋतु परिवर्तन के साथ त्यौहार मनाने की परंम्परा है। ऋतुओं के विभाजन में बसंत ऋतु का विशेष महत्व है क्योंकि इस ॠतु का सौंदर्य अनुपम एवं छटा निराली होती है। शीत ऋतु की समाप्ति और ग्रीष्म ॠतु की आहट की धमक के बीच का काल वसंत काल होता …

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गज लक्ष्मी एवं लक्ष्मी पूजन की परम्परा

‘महालक्ष्‍मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि।हरि प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे।।’ प्राचीन काल से श्री लक्ष्मी का संबंध धन-एश्वर्य, श्री कीर्ति से माना जाता है। पौराणिक शास्त्रों में लक्ष्मी के अष्ट रुप माने गए हैं, जो आदि लक्ष्मी या महालक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धन्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, सनातना लक्ष्मी, विजया लक्ष्मी या जाया लक्ष्मी …

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