भारतीय मनीषियों एवं ॠषियों ने मन की एकाग्रता एवं शरीर के सुचारु संचालन के लिए योग जैसे शक्तिदायक क्रिया की प्रादुर्भाव किया। जिसका उन्होंने पालन कर परिणाम जग के समक्ष रखा तथा इसे योग का नाम देकर विश्व के मनुष्यों को निरोग, स्वस्थ एवं बलशाली बनाने का रसायन दिया। वर्तमान में योग क्रिया का पालन कर सम्पूर्ण विश्व लाभ पा रहा है। महर्षि पतंजलि कहते हैं – योगश्चित्त वृत्ति निरोध:। योग मन की चंचलता का शमन कर मनुष्य को एकाग्रचित्त करता है, जिससे कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
योग ऐसी प्रक्रिया है जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का कार्य होता है। योग शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के युञ्ज धातु से से हुई। जिसका अर्थ है जुड़ना या एकजुट होना। योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का आधार होता है। सर्वप्रथम योग शब्द का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है इसके पश्चात अनेक उपनिषदों, ग्रंथों एवं प्राचीन साहित्यों उल्लेख प्राप्त होता है।
श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय नौ के मंत्र बाईस में श्री कृष्ण ने कहा है-“अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते, तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।9.22।।” अर्थात जो अनन्य भक्त मेरा चिन्तन करते हुए मेरी उपासना करते हैं, मेरे में निरन्तर लगे हुए उन भक्तोंका योगक्षेम (अप्राप्त की प्राप्ति और प्राप्तकी रक्षा) मैं वहन करता हूँ
“योगक्षेमं वहाम्यहम्”
योग का अर्थ है अधिक से अधिक आध्यात्मिक शक्ति एवं क्षेम का अर्थ है आध्यात्म का चरम लक्ष्य परमानंद की प्राप्ति। योग का मूल सिद्धांत ही मनुष्य को स्वस्थ्य, निरोगी, दीर्घायु बनाना है। लक्ष्य को निश्चित कर ध्यान लगाते हुए दृढ़ संकल्प शक्ति का प्रयोग करने से ही जीवन में किसी भी कार्यक्षेत्र में उन्नति संभव है क्योकि संकल्प शक्ति से कर्मबल भी दृढ़ होता है। लक्ष्य से भटकने से शक्ति भी बिखर जाती है।
मनुष्य एकाग्रचित्त होकर सफलता प्राप्त कर सकता है। प्राप्ति अर्थात मानव योनि में जन्म की प्राप्ति एवं अप्राप्ति अर्थात इस जीवन को सुरक्षित एवं संवर्धित करने के लिए किए गए प्रयास जिससे परमानन्द की अनुभूति होती है। इसके लिए मनुष्यों में संकल्प, समर्पण, आत्मसंयम, एकाग्रता, आनन्द, समृद्धि, कल्याण आदि की एकजुटता से ही जीवन में सफलता प्राप्त हो सकती है किंतु सफलता केवल विचार करने से ही नहीं बल्कि कर्मप्रधान होने से प्राप्त होती है। तभी शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहने लिए योग की विभिन्न क्रियाओं द्वारा मनुष्य स्वयं को निरोगी रख कर सुख-समृद्धि को प्राप्त कर जीवन व्यतीत करता है।
प्राचीन मान्यता के अनुसार विभिन्न आसनों सहित योग विद्या की खोज शिव जी ने की और अपनी प्रथम शिष्या पार्वती जी को सिखलाया। पार्वती को अखिल ब्रह्मांड की जननी मानते हुए परम् ज्ञान का अवतार माना गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार शिव को परमचेतना का प्रतीक माना गया है। योग विज्ञान वेदों से भी प्राचीन है। हड़प्पा-मोहनजोदड़ो में पुरातात्विक खुदाई में प्राप्त मूर्तियों में शिव-पार्वती को विभिन्न योगासनों में अंकित किया गया है।
हमारे ऋषि-मुनियों,योगियों ने जंगलों,पहाड़ों में जाकर तपस्या करते हुए सीधा-सरल जीवन व्यतीत किया। उनके मार्गदर्शक और गुरु, प्रकृति एवं जंगल के जानवर,जीव-जंतु ही थे। क्योंकि उनका जीवन सांसारिक समस्याओं एवं रोगों से मुक्त था। उन्हें अपनी चिकित्सा हेतु किसी वैद्य या चिकित्सक की आवश्यकता नहीं थी। प्रकृति ही उनकी सहायक थी। हमारे ऋषि-मुनियों, योगियों ने इसका अवलोकन एवं अन्वेषण किया परिणामस्वरूप योग की अनेक विधियों का विकास हुआ और सभी प्रकार के रोगों के उपचार का प्राकृतिक और प्रभावशाली उपाय योग को ही माना है।
श्री कृष्ण ने गीता में कहा है ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ (कर्मों में कुशलता ही योग है। पतंजलि ने योग सूत्र में योग को परिभाषित करते हुए लिखा है – योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम योग है। इस वाक्य के दो अर्थ हो सकते हैं: चित्तवृत्तियों के निरोध की अवस्था का नाम योग है या इस अवस्था को लाने के उपाय को योग कहते हैं। अर्थात मन को इधर-उधर भटकने ना देना केवल एक ही वस्तु में स्थिर रहना ही योग है। इसे ही योग मानकर यम नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि आदि योग अष्टांग का मूल सिद्धांत स्थापित किया।
श्रीमद्भागवत गीता के चतुर्थ अध्याय में ज्ञान योग के संबंध में कहा गया है—-
“इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् ।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥” (१)
अर्थ – मैंने इस योग का उपदेश सृष्टि के आरम्भ में सूर्य देव को दिया था, सूर्य ने अपने पुत्र मनु को यह योग सिखाया तथा मनु ने यह उपदेश अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु को दिया। इसके बाद राजऋषियों कि एक लंबी परंपरा चली।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून को मनाया जाता है। यह दिन वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। पहली बार यह दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया, जिसकी पहल भारत के प्रधानमन्त्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी नें 27 सितम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण से की थी जिसमें उन्होंने कहा था कि:
“योग भारत की प्राचीन परम्परा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है, विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन- शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आयें एक अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं।”
जिसके बाद 21 जून को “अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस” घोषित किया गया। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को “अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस” को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमन्त्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अन्दर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस में प्रतिवर्ष एक थीम या विषयवस्तु पर आधारित होता है। 21जून 2021 में कोरोना महामारी के कठिन दौर में मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए “घर पर योग तथा परिवार के साथ योग” थीम पर आधारित था।। इस वर्ष 21 जून2022 को आठवां संस्करण “मानवता के लिए योग” थीम पर आधारित है। इसका उद्देश्य विश्व में कोरोना महामारी के समय योग से मानवता की सेवा एवं उभरते पोस्ट कोविड के दौरान भी दया, करुणा के माध्यम से एकसाथ लाया जा सकता है।मानव समाज में एकता,सहयोग,और शांति की स्थापना करना है।
योग एकाग्रता एवं ध्यान के लिए अत्यंत उपयोगी है। विभिन्न योगासनों एवं मुद्राओं से शरीर की मांस-पेशियां, हड्डियां, स्नायुतंत्र, ग्रंथि प्रणाली, श्वसन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र, रक्त संचालन, तंत्रिका तंत्र सभी नियंत्रित एवं सुव्यवस्थित होती हैं। जिससे शरीर सक्रिय एवं स्वस्थ रहता है।
नियमित योग करने से मन-मस्तिष्क में दृढ़ता, एकाग्रता आती है। जिससे मनुष्य जीवन की कठिनाईयों, दुःख, चिंता, समस्याओं का सामना कर सकने में अपने को समर्थ पाता है। योग से शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है। योग से आत्मविश्वास के साथ-साथ योगासनों की दक्षता से आध्यात्मिक शक्ति में भी वृद्धि होती है।
आधुनिक युग में मनुष्य प्रकृति से दूर होता जा रहा है। अव्यवस्थित जीवन शैली,आहार-विहार एवं कृत्रिमता से भरे वातावरण से मनुष्य की शारीरिक-मानसिक क्षमता क्षीण होने के कारण शरीर व व्यक्तित्व दोनों पर दुष्प्रभाव पड़ने से जीवन मे नकारात्मकता बढ़ती जा रही है।अनिद्रा, अवसाद, चिन्ता, निराशा और कुंठाग्रस्त होते जा रहा। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से शीघ्र ही संक्रमित होकर रोगी बनता जा रहा है।
वर्तमान में वैश्विक महामारी कोविड से समस्त मानव जाति भयावह संकट के दौर में कोरोना के भय से मनुष्य अपने सुरक्षित भविष्य की कल्पना करने में अक्षम हो गया था कब, कौन, किस तरह संक्रमित हो जाये, कब काल ग्रसित हो जाए ऐसी विषमपरिस्थितियों में जूझते हुए तनावग्रस्त एवं अवसादग्रस्त होकर शारीरिक-मानसिक समस्याओं का शिकार हो गया था।
इस समय आधुनिकता की दुहाई देने वाले मानव समाज ने जिन भारतीय संस्कृति एवं परंपराओं को हमेशा रूढ़िवादिता और पुराने नियम-कानून कह कर उपेक्षित कर उन्हें अस्वीकार कर दिया जाता था उसी ने मानव जाति के अस्तित्व को समाप्त होने से बचाया।
विश्वभर ने योग के चमत्कार को स्वीकारा किया। योगाभ्यास करने वाले लोग कोविड के दुष्प्रभाव से काफी हद तक अप्रभावित रहे या संक्रमित होंकर भी उसका सामना करने में सफल रहे। योग ने शक्ति एवं महत्ता को सिद्ध कर अपने को विश्व भर में स्थापित किया। इस महामारी की त्रासदी को झेलते हुए एकबार पुनः दुनिया गतिशील हो गई। इसलिए हम मानते हैं कि योग मानव जाति के लिए संजीवनी है, अमृत है, जिससे मनुष्य अपना कायाकल्प कर सकता है।
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