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लोक संस्कृति

गौवंश का गुरुकुल : दईहान

छत्तीसगढ़ में गौ-पालन की समृद्ध परंपरा रही है। पहले गांवों में प्राय: हर घर में गाय रखी जाती थी और घर में अनिवार्यतः कोठा(गौशाला)भी हुआ करती थी। अब घर से गौशाला गायब है और गौशाला के स्थान पर गाड़ी रखने का शेड बना मिलता है; जहां गाय की जगह मोटरसाइकिल …

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शौर्य और श्रृंगार का लोकनृत्य

कार्तिक एकादशी से छत्तीसगढ़ के गाँवों और नगरों की गलियों में उल्लास और आनंद से सराबोर राउतों की टोलियाँ अपने संग गड़वा बाजा की मनमोहक थाप पर झूमते-नाचते हुए जब निकलती हैं तब समझिये राउत समाज का देवारी पर्व प्रारंभ हो गया है। इस पर्व में राउत नाचा का आयोजन …

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गौधन अलंकरण एवं शृंगार : सुहई

भारतीय समाज में गोधन अलंकर एवं पूजा की परंपरा है। तदनुरूप राउत जाति के लोग भी गौ पूजा अलंकरण में विश्वास करते है। वृद्ध और युवा पीढ़ी के मध्य विचारों में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन न आने के कारण दोनों पीढ़ियों के द्वारा समान रूप से परंपरागत ढंग से …

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जनजातीय काव्य में वन जीवन की अभिव्यक्ति

किसी भी देश या प्रदेश के जनजातीय कविता को समझने के लिए उस देश की उस प्रदेश की लोक संस्कृति को जानना बहुत जरूरी होता है। हमारी संस्कृति अपनी भाषाओं और उपभाषाओं में बिखरी हुई है। हर राज्य की जनजातीय कविता भाषा और संस्कृति के आधार पर निहित है। यहां …

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मातृशक्ति की आराधना का पर्व : मातर

छत्तीसगढ़ राज्य कृषि प्रधान राज्य है। कार्तिक मास के लगते ही खेतों में लहलहाती और सोने सी दमकती धान की बालियां लोक जनजीवन में असीम ऊर्जा और उत्साह का संचार करती है। पावन पर्व दीपावली में जैसे दीप घर आंगन में जलाए जाते हैं। वैसे ही खुशियों और समृद्धि के …

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भारतीय संस्कृति में गोमय का महत्व

छत्तीसगढ़ में दीपावली पर गौमय से आंगन लीपने की परम्परा है, माना जाता है कि गोबर से लिपे पुते घर आंगन में लक्ष्मी का आगमन होता है। गाय को गौधन कहा जाता है तथा उसके मूत्र, गोबर, घी, दूध, दही को पंचगव्य कहा गया है। गाय के पंच गव्य से …

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छत्तीसगढ़ का पांच दिवसीय देवारी तिहार

महकती बगिया है यहां के प्रत्येक त्योहारों का अपना अलग ही महत्व है। बारहों महीने मनाए जाने वाले स्थानीय लोक पर्व तीज त्योहारों के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर पूरे देश भर में मनाएं जाने वाले प्रमुख त्योहारों जैसे रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, दशहरा, होली आदि को भी यहां उत्साह पूर्वक मनाया जाता …

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शिव-पार्वती के विवाह का मंगलगान छत्तीसगढ़ी गौरा गीत

जनजातीय धार्मिक मान्यताओं में महादेव का प्रमुख स्थान है। प्रायः अधिकांश वनवासी जातियों की उत्पत्ति की मूल कथा में माता पार्वती एवं भगवान शंकर का वर्णन मिलता है। वे अपने आराध्य देव की पूजा-अर्चना अपने-अपने ढंग से करते हैं। ‘गौरा उत्सव’ गोंड जाति का एक प्रमुख पर्व है। ‘गौरा’ का …

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जनजातीय कथाओं की लोक दृष्टि

जनजातीय कथा साहित्य की दृष्टि से देखें तो वनवासियों का व्यावहारिक जीवन सदैव से विद्यमान है। वनवासी जंगलों में रहकर अपना जीवन पूर्वजों की धरोहर को समेटने में समय लगा देते हैं। प्रकृति के नाना रूपों में दृश्यों के खुले वातावरण में जीवन व्यतीत करने के कारण लोक संस्कृति के …

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नारी मनोव्यथा की अभिव्यक्ति सुआ गीत

छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति का हिस्सा है सुआ गीत। यह छत्तीसगढ़ प्रदेश की गोंड जाति की स्त्रियों का प्रमुख नृत्य-गीत है लेकिन अन्य जाति के महिलाएं भी इसमें सम्मिलित होकर नृत्य करती हैं। जिसे सामूहिक रुप से किया जाता है। यह मुख्यतः महिलाओं के मनोभावों सुख-दुख आदि की अभिव्यक्ति का …

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