पानी सहेजते तालाब सदियों बनते रहे हैं जो अतीत की धरोहर बनें हमारी जीवनचर्या का कभी एक अभिन्न अंग थे। तालाब बनवाना, कुआं खुदवाना एक धार्मिक कार्य था। जहां नदियां नहीं थी वहां तालाब ही सब की प्यास बुझाते थे। छत्तीसगढ़ में हजारों हजार तालाब समय समय पर बनाएं गये। …
Read More »छत्तीसगढ़ की नाट्य परंपरा
अभिनय मनुष्य की सहज प्रवृत्ति है। हर्ष, उल्लास और खुशी से झूमते, नाचते-गाते मनुष्य की सहज अभिव्यक्ति है अभिनय। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन की झांकी गांवों के खेतों, खलिहानों, गली, चौराहों और घरों में स्पष्ट देखी जा सकती है। इस ग्रामीण अभिव्यक्ति को ‘लोक नाट्य’ कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में …
Read More »नदियाँ और उनका सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व : संदर्भ छत्तीसगढ़
भारतीय संस्कृति में अन्य प्राकृतिक उपादानों की तरह नदियों का भी अपना अलग महत्व है। वेद-पुराणों में नदियों की यशोगाथा विद्यमान है। नदियाँ हमारे लिए प्राणदायिनी माता की तरह हैं। नदियों के साथ हमारे सदैव से भावनात्मक संबंध रहे हैं, औऱ हमने नत-मस्तक होकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा व आस्था …
Read More »परम्परा के संवाहक भ्रमणशील कथा गायक : बसदेवा
भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने में भ्रमणशील समुदायों का बड़ा योगदान रहा है। ये समुदाय जिन्हें घुमंन्तु जातियों के नाम से जाना पहचाना जाता है । यायावरी संस्कृति के पोषक ये जातियाँ हमारी परम्पराओं के संवाहक हैं, जो कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक और गुजरात से लेकर असम तक …
Read More »बकरकट्टा के बैगा और उनका देवलोक
बस्तर और सरगुजा के बीहड़ वन प्रांतरों से आच्छदित छत्तीसगढ़ का पश्चिमी भाग भी वनों से आच्छादित है, जो मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र प्रदेशों से लगा हुआ है। राजनांदगाँव जिला छत्तीसगढ़ का पश्चिमी भाग है। इसी राजनांदगाँव जिले के छुईखदान विकासखंड में बैगा जनजाति का निवास है। जिला मुख्यालय से लगभग …
Read More »देवार समुदाय की कलाओं का आंगन छत्तीसगढ़
यदि मनुष्य जो संवेदनाओं का पुंज है, मशीन की भांति ही कार्य करता रहे तो उसका जीवन सार्थक हो जाए। अतः समाज ने नाना कलाओं में पारंगत होकर समय-समय पर अन्य समाजों का मनोरंजन करने का काम करने लगे। ऐसी ही कलाओं में से कुछ कलाओं के नाम हैं – …
Read More »कोल जनजाति का देवलोक
भारतीय समाज और संस्कृति इंद्रधनुष की तरह विविध रंगी है। जिसमें जनजाति समुदायों के सांस्कृतिक छवि की पृथक ही पहचान है। उन जनजातियों में ‘कोल‘ प्रमुख है। कोल जनजाति भारत की प्राचीन जनजाति है और देश के विभिन्न भागों में यह निवास करती है। कोल जनजाति के नामकरण को लेकर …
Read More »लोक मंगल का नृत्य करमा
लोकगीत और लोकनृत्यों में छत्तीसगढ़ का उल्लासित परिवेश साकार हो उठता है। जन्म से मृत्यु पर्यंत, पर्व और उत्सवों में, जीवन की विसंगतियों में होता आया लोक नृत्यों आज भी जीवंत है,समूचे जनजीवन में। ऐसा ही एक लोक नृत्य है करमा, जो विविध परिवेश में प्रचलित है। इसे छत्तीसगढ़ के …
Read More »बुचीपुर की महामाया माई
हाफ नदी के सुरम्य तट पर बेमेतरा जिला के नवागढ़ तहसील में बसा छोटा सा गांव बुचीपुर है। यह गांव छत्तीसगढ़ के अन्य गांव के समान ही खेती किसानी वाला गांव है, परंतु इसकी प्रसिद्धि यहां विराजमान माँ महामाया के नाम से दूर-दूर तक है। दूर-दूर से यहां श्रद्धालु आते …
Read More »बारहमासी लोकगीत : छत्तीसगढ़
लोककला मन में उठने वाले भावों को सहज रुप में अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्वत: स्थानांतरित हो जाने वाली विधा है। लोक कला हमारी संस्कृति की पहचान होती है, हमारी खुशी को प्रकट करने का माध्यम होती है। लोककला का क्षेत्र …
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