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Tag Archives: नारायणपुर

बस्तर की सामूहिक पूजा पद्धति ककसाड़

छत्तीसगढ़ प्रदेश के बस्तर संभाग में जीवन-यापन करने वाली जनजाति देव संस्कृति के पोषक है। वह अपने लोक देवी देवताओं के प्रति अपार श्रद्धा रखता है। उसकी यह भावना उसके कार्य-व्यवहार से परिलक्षित होती है। जनजाति समाज के तीज-त्यौहार देव कार्य सब अपने देवताओं को प्रसन्न करने और प्रकृति के …

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बस्तर के जनजातीय समाज की हेशांग जातरा

देव संस्कृति को मानने वाला बस्तर का जनजातीय समाज अपने सभी देव काम को जातरा कहता है। जिस भी देव काम में किसी उपज या वनोपज को जागृत कर देवताओं को अर्पण किया जाता है, उसे साड़ कहता है, इसका हिन्दी में अर्थ देवोत्सव होता है और जातरा देवताओं की …

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छत्तीसगढ़ की स्थापत्य कला में बालि-सुग्रीव युद्ध का अंकन

छत्तीसगढ़ राज्य पुरातत्व की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। यहां पर लगभग 5-6वीं शताब्दी ई. से लेकर अभी तक रामायण के कथानकों से सम्बंधित दृश्य मंदिरों तथा प्रतिमाओं में उत्कीर्ण किये गये हैं जो आज भी विद्यमान हैं। तुलसीकृत रामचरित मानस के किष्किन्धाकाण्ड मे उल्लेखित जानकारी के अनुसार राम वनगमन …

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जनजातीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग : महुआ

आम तौर पर महुआ का नाम आते ही इसका सम्बन्ध शराब से जोड़ दिया जाता है। जबकि यह एक बहुपयोगी वृक्ष है। इस वृक्ष के फल, फूल, पत्ती, लकड़ी, तने की छाल सबका अपना उपयोग है। इस वृक्ष के बहुपयोगी होने के कारण जनजातीय समाज इस वृक्ष को पवित्र मानता …

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छत्तीगढ़ अंचल की प्राचीन प्रतिमाओं का केश अलंकरण

छत्तीसगढ़ अंचल के पुरास्मारकों की प्रतिमाओं में विभिन्न तरह के केश अलंकरण दिखाई देते हैं। मंदिरों की भित्तियों में स्थापित प्रतिमाओं में कालखंड के अनुरुप स्त्री-पुरुष का केश अलंकरण दिखाई देता है। उत्त्खनन में केश संवारने के साधन प्राप्त होते हैं, जिनमें डमरु (बलौदाबाजार) से प्राप्त हाथी दांत का कंघा …

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नारायणपुर का प्राचीन शिवालय

नारायणपुर का प्राचीन मंदिर अपनी मैथुन प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध है। कसडोल सिरपुर मार्ग पर ग्राम ठाकुरदिया से 8 किमी की दूरी पर नारायणपुर ग्राम में यह 11 वीं शताब्दी का मंदिर स्थित है। यह पूर्वाभिमुखी मंदिर महानदी के समीप स्थित है। इसका निर्माण बलुआ पत्थरों से हुआ है। शिवालय …

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