बस्तर की जनजातीय भाषा हल्बी के बारे में जानें

आदिवासी बहुल बस्तर अंचल में यहाँ की मूल जनजातीय भाषा गोंडी (मैदानी गोंडी, अबुझमाड़ी गोंडी) के साथ-साथ हल्बी, भतरी, दोरली, धुरवी, परजी, चँडारी, लोहारी, पनकी, कोस्टी, बस्तरी, घड़वी, पारदी, अँदकुरी, मिरगानी, ओझी, बंजारी, लमानी, पण्डई या बामनी आदि जनजातीय एवं लोक-भाषाएँ बोली जाती रही हैं। प्राय: सभी लोक-भाषाएँ सम्बन्धित जनजातियों/जातियों …

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डोंगी में दिल्ली से कलकत्ता तक यात्रा की कहानी, डॉ राकेश तिवारी की जुबानी

घुमक्कड़ मनुष्य की शारीरिक मानसिक एवं अध्यात्मिक क्षमता की कोई सीमा नहीं। ये तीनों अदम्य इच्छा से किसी भी स्तर तक जा सकती हैं और चांद को पड़ाव बना कर मंगल तक सफ़र कर आती हैं। घुमक्कड़ी करना भी कोई आसान काम नहीं है, यह दुस्साहस है जो बहुत ही कम …

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जानिए पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक कौन थे एवं कहाँ है उनकी जन्मभूमि?

छत्तीसगढ के रायपुर जिले के अभनपुर ब्लॉक के ग्राम चांपाझर में पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मभूमि स्थित है। देश-विदेश से बहुतायत में तीर्थ यात्री दर्शनार्थ आते है पुण्य लाभ प्राप्त करने। कहते हैं कि कभी इस क्षेत्र में चम्पावन होने के कारण इसका नाम चांपाझर पड़ा। कालांतर में …

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राजा कर्ण जिनके राज्याभिषेक होने पर उनका कल्चुरी संवत प्रारंभ हुआ

मेकलसुता रेवा का उद्गम स्थल अमरकंटक है, यहां प्राचीन काल के अवशेष मिलते हैं तथा यह ॠषि मुनियों की तपोस्थली रही है। इतिहास से ज्ञात होता है कि वैदिक काल में महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में ‘यदु कबीला’ इस क्षेत्र में आकर बसा और यहीं से इस क्षेत्र में अन्यों का …

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बन बाग उपवन वाटिका, सर कूप वापी सोहाई

दक्षिण कोसल के प्राचीन महानगरों में जल आपूर्ति के साधन के रुप में हमें कुंए प्राप्त होते हैं। कई कुंए तो ऐसे हैं जो हजार बरस से अद्यतन सतत जलापूर्ति कर रहे हैं। आज भी ग्रामीण अंचल की जल निस्तारी का प्रमुख साधन कुंए ही हैं। कुंए का मीठा एवं …

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जानिए देवालयों की भित्ति में यह प्रतिमा क्यों स्थापित की जाती है

प्राचीन मंदिरों के स्थापत्य में बाह्य भित्तियों पर हमें कौतुहल पैदा करने वाली एक प्रतिमा बहुधा दिखाई दे जाती है, जिसकी मुखाकृति राक्षस जैसी भयावह दिखाई देती है। जानकारी न होने के कारण इसे लोग शिवगण मानकर आगे बढ़ जाते हैं। कई बार मंदिरों में उपस्थित लोगों से पूछते भी …

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गाँव के समस्त लोग निद्रालीन होते हैं जानिए तब कौन सी पूजा की जाती है

छत्तीसगढ की दुनिया में अपनी अलग ही सांस्कृतिक पहचान है। प्राचीन सभ्यताओं को अपने आंचल में समेटे इस अंचल में विभिन्न प्रकार के कृषि से जुड़े त्यौहार मनाए जाते हैं। जिन्हे स्थानीय बोली में “तिहार” संबोधित किया जाता है। सवनाही, हरेली त्यौहार के समय धान की बुआई होती है, त्यौहार …

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क्या आपने भगवान विष्णु का युनानी योद्धा रुप देखा है?

प्राचीन देवालय, शिवालय स्थापत्य एवं शिल्पकला की दृष्टि से समृद्ध होते हैं। इनके स्थापत्य में शिल्पशास्त्र के साथ शिल्पविज्ञान का प्रयोग होता था। जिसके प्रमाण हमें दक्षिण कोसल के मंदिरों में दिखाई देते हैं। वर्तमान छत्तीसगढ़ में हमें उत्खनन में कई अद्भुत प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं, जिसमें से मल्हार से …

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छत्तीसगढ़ का जेठौनी तिहार

आज कार्तिक शुक्ल एकादशी है, चार महीने की योग निद्रा के पश्चात भगवान विष्णु जी के जागने का दिन है। हिन्दू परम्पराओं में यह दिन मांगलिक कार्यों का प्रारंभ माना जाता है। इस दिन से विवाहादि का प्रारंभ होता है। इस दिन तुलसी विवाह किया जाता है।   दीपावली के …

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पौराणिक देवी-देवताओं की वनवासी पहचान : बस्तर

पुरातन काल से बस्तर एक समृद्ध राज्य रहा है, यहाँ नलवंश, गंगवंश, नागवंश एवं काकतीय वंश के शासकों ने राज किया है। इन राजवंशों की अनेक स्मृतियाँ (पुरावशेष) अंचल में बिखरे पड़ी हैं। ग्राम अड़ेंगा में नलयुगीन राजाओं के काल में प्रचलित 32 स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त हुई थी। नलवंशी राजाओं …

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