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लोक संस्कृति

दक्षिण कोसल का पारम्परिक भित्ति चित्र सुलो कुठी

मानव मन की अभिव्यक्ति का एक प्राचीन माध्यम भित्ति चित्र हैं, जो आदि मानव की गुफ़ा कंदराओं से लेकर वर्तमान में गांव की भित्तियों में पाये जाते हैं। इन भित्ति चित्रों में तत्कालीन मानव की दैनिक चर्या एवं सामाजिक अवस्था का चित्रण दिखाई देता है। वर्तमान में भित्ति में देवी-देवताओं …

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बीरनपाल की झारगयाइन देवी जातरा : बस्तर

बस्तर का आदिवासी समुदाय देवी देवताओं की मान्यतानुसार कार्य करता है, वर्ष में इन देवी देवताओं की आराधना करने के लिए जातरा पर्व का आयोजन विभिन्न परगनों में होता है। एक परगना में परगना में चालिस पचास गांवों का समूह होता है, जो अपने आराध्य देवी-देवता को प्रशन्न करने के …

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दक्षिण कोसल के यायावर व्याध : सरगुजा एक अध्ययन

छत्तीसगढ़ प्रदेश प्राकृतिक सुषमा से आच्छादित प्रदेश है, यहाँ के कुल क्षेत्रफ़ल का 43.85% वन हैं, जो सरगुजा से बस्तर तक फ़ैला हुआ है एवं इन वनों भिन्न-भिन्न जनजातियाँ निवास करती हैं। छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियों में माड़िया, मुरिया, दोरला, उरांव, कंवर, बिंझवार, बैगा, भतरा, कमार, हल्बा, सवरा, नागेशिया, मंझवार, …

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नाचा : छत्तीसगढ़ का लोकनाट्य

छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास की पृष्ठ भूमि मुख्यतः यहाँ का ग्रामीण जनजीवन है ।यहाँ की ग्रामीण संस्कृति में लोकनाटकों का प्रारंभ से ही बड़ा महत्व रहा है । छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक सौम्यता के दर्शन यहाँ के देहातों की नाट्य मण्डलियों के सीधे -सादे ,आडम्बरहीन परन्तु रोचक कार्यक्रमों में होते हैं। …

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छत्तीसगढ़ का कथक नृत्य का रायगढ़ घराना

साहित्य ,कला और संस्कृति के क्षेत्र में दक्षिण कोसल यानी वर्तमान छत्तीसगढ़ प्राचीन काल से ही अत्यंत समृद्ध रहा है । भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में वर्णित गुहा नाट्य शाला का वर्णन है, पुराविद मानते हैं कि सरगुजा के रामगढ़ की पर्वतीय गुफा स्थित सीता बेंगरा विश्व की प्राचीनतम …

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बस्तर का नवाखाई त्यौहार एवं परम्परा

बस्तर अंचल के खेतीहर किसान उदार प्रकृति के प्रति सदैव कृतज्ञ रही है। उनकी संस्कृति में प्रकृति से उपजे उपादानों के लिए, नयी फसल के आने पर उसे ग्रहण करने से पूर्व समारोह पूर्वक कृतज्ञता अर्पण करता है। वैसे तो बस्तर अंचल में बारहों मास प्रकृति से प्राप्त किसी न …

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यहाँ लगता है देव न्यायालय एवं मिलता है देवी देवताओं को दंड

छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में एक ऐसा स्थान है जहाँ प्रतिवर्ष भादौ मास में देव न्यायलय लगता है, जहाँ  लोग अपने-अपने ग्राम के देवी-देवताओं को लेकर पहुंचते हैं। इस न्यायालय में देवी-देवता आरोपी होते हैं और फ़रियादी होते हैं ग्राम वासी। इस देव न्यायालय में देवी देवताओं की पेशी होती …

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संतान की दीर्घायु की कामना का पर्व हलषष्ठी

लोक में संतान की रक्षा के लिए, पति की रक्षा के लिए पर्व मनाने का प्रचलन है। परन्तु कमरछठ पर्व में माताओं द्वारा संतान की दीर्घायु के लिए व्रत (उपवास) किया जाता है। हमारे छत्तीसगढ़ राज्य की अनूठी संस्कृति का यह एक ऐसा पर्व है जिसे हर वर्ग, हर जाति …

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प्रकृति के प्रति प्रेम एवं कृतज्ञता व्यक्त करने का त्यौहार है हरेली

सावन का महीना प्रारंभ होते ही चारों तरफ़ हरियाली छा जाती है। नदी-नाले प्रवाहमान हो जाते हैं तो मेंढकों के टर्राने के लिए डबरा-खोचका भर जाते हैं। जहाँ तक नजर जाए वहाँ तक हरियाली रहती है। आँखों को सुकून मिलता है तो मन-तन भी हरिया जाता है। यही समय होता …

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क्या आप जानते हैं तंत्र-मंत्र से गांव कब क्यों और कैसे बांधा जाता है?

सावन माह लगते ही सवनाही तिहार मनाने का समय आ गया। सावन के पहले रविवार से गाँव-गाँव में सवनाही मनाने का कार्य प्रारंभ हो चुका है। इस दौरान ग्रामवासी गाँव एवं खार (खेत) में स्थिति समस्त देवी-देवताओं की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने का यत्न करते हैं, जिससे गाँव में …

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