Home / इतिहास / छत्तीसगढ़ का कथक नृत्य का रायगढ़ घराना

छत्तीसगढ़ का कथक नृत्य का रायगढ़ घराना

साहित्य ,कला और संस्कृति के क्षेत्र में दक्षिण कोसल यानी वर्तमान छत्तीसगढ़ प्राचीन काल से ही अत्यंत समृद्ध रहा है । भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में वर्णित गुहा नाट्य शाला का वर्णन है, पुराविद मानते हैं कि सरगुजा के रामगढ़ की पर्वतीय गुफा स्थित सीता बेंगरा विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला है, वहीं इस पहाड़ी अंचल को महाकवि कालिदास की रचना भूमि के रूप में भी ख्याति मिली है।

इतिहासकारों के अनुसार कालिदास ने अपना प्रसिद्ध महाकाव्य ‘मेघदूत’यहीं रहकर लिखा था । दक्षिण कोसल की इस साहित्यिक -सांस्कृतिक परम्परा को आगे चलकर अनेक राजवंशों , रियासतों और राजाओं ने आगे बढाया ।

रायगढ़ के राजा चक्रधर सिंह एवं महल

रायगढ़ रियासत के राजा चक्रधर सिंह का नाम इनमें अग्रणी है । वे एक महान कला मर्मज्ञ , महान संगीतज्ञ और नृत्याचार्य थे । उनका जन्म 19 अगस्त 1905 को रायगढ़ में हुआ था । निधन रायगढ़ में ही 7 अक्टूबर 1947 को हुआ।

उनके सम्मान में हर साल गणेश चतुर्थी के दिन राज्य शासन और जिला प्रशासन द्वारा जन सहयोग से दस दिनों के अखिल भारतीय चक्रधर संगीत एवं नृत्य समारोह का आयोजन विगत 34 वर्षों से किया जा रहा है। इसमें छत्तीसगढ़ सहित देश के विभिन्न राज्यों के अनेक जाने-माने कलाकार हिस्सा लेते हैं।

रियासत काल में रायगढ़ का गणेश मेला दूर-दूर तक प्रसिद्ध था, जहाँ गणेश पूजन के अलावा गीत-संगीत के सांस्कृतिक आयोजन भी हुआ करते थे । मल्लयुद्ध का भी आयोजन होता था । राजा चक्रधर सिंह ने अपने शासन काल में साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के साथ कवियों और कलाकारों को भी खूब स्नेह और संरक्षण दिया । शास्त्रीय नृत्य ‘कथक’ की रायगढ़ शैली का विकास कला-संस्कृति के क्षेत्र में राजा साहब का सबसे बड़ा ऐतिहासिक योगदान माना जाता है।

उन्होंने पारम्परिक छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य ‘नाचा’ के कलाकारों को अपने सानिध्य में रखा । इन गुमनाम और अल्पज्ञात कलाकारों को शास्त्रीय नृत्य कथक का कठोर प्रशिक्षण दिया और दिलाया, फिर इन्हीं कलाकारों को लेकर उन्होंने कथक नृत्य की रायगढ़ शैली का प्रवर्तन किया।

राजा चक्रधर सिंह ने समय-समय पर ‘नाचा’ कलाकारों के मंचन को देखकर यह महसूस किया कि जाने-अनजाने उनके पैरों की थिरकन में कथक नृत्य का भी काफी असर है। इस पर उन्होंने इन लोक कलाकारों की प्रतिभा को अपने दरबार में खूब तराशा और रायगढ़ घराने के नाम से कथक की एक अलग भाव-धारा विकसित कर दी ।

उनके सानिध्य में प्रशिक्षित कई कथक नर्तकों ने आगे चलकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त की, जिनमें नृत्याचार्य बर्मन लाल, कार्तिक राम, कल्याणदास, फिरतूदास वैष्णव और रामलाल आदि उल्लेखनीय हैं। राजा चक्रधर सिंह ने नृत्य और संगीत पर कई ग्रन्थ लिखे, जिनमें ‘ नर्तम-सर्वस्वम’ और ‘तलतोय निधि’ भी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । उनका लिखा ‘बैरागढ़िया राजकुमार’ नाटक भी काफी चर्चित और लोकप्रिय रहा है ।

रायगढ़ घराने के कथक नृत्य के विकास में उनके योगदान पर वर्ष 1993 में एक घण्टे के एक वृत्तचित्र ‘अनुकम्पन ‘ का निर्माण कोलकाता की सुश्री वलाका घोष द्वारा श्री नीलोत्पल मजूमदार के निर्देशन में किया गया था । रायगढ़ कथक नृत्य पर यह पहली डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म थी ।

सेल्यूलाइड पर 16 एमएम की इस डॉक्यूमेंट्री को भारत सरकार ने वर्ष 1993 के सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक वृत्त चित्र की श्रेणी में राष्ट्रपति के रजत कमल एवार्ड से सम्मानित किया था । इस फ़िल्म में नृत्याचार्य बर्मन लाल, राजा साहब के ग्रन्थों को विशेष प्रकार के कीमती कागजों पर अपने हाथों से सुडौल अक्षरों में लिपिबद्ध करने वाले चिंतामणि कश्यप और राजा चक्रधर सिंह के सुपुत्र भानुप्रताप सिंह के दिलचस्प साक्षात्कार हैं।

वहीं छत्तीसगढ़ी नाचा के वरिष्ठ कलाकारों के गायन वादन सहित रायगढ़ कथक की नृत्यांगना सुश्री वासन्ती वैष्णव, बाल कलाकार शरद वैष्णव और संगीता नामदेव की भी नृत्य प्रस्तुतियों को भी इसमें शामिल किया गया है। फ़िल्म निर्माण से इसके निर्माता और निर्देशक ने कोलकाता से कई बार रायगढ़ का अध्ययन दौरा किया। उन्होंने इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पी.डी.आशीर्वादम से भी मुलाकात की और उनकी पुस्तक ‘रायगढ़ दरबार ‘ को भी अपनी फिल्म का आधार बनाया ।

जनवरी 1994 में कोलकाता में केन्द्र सरकार द्वारा आयोजित भारत के 24 वें अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के दौरान वहाँ के गोर्की सदन में यह फ़िल्म भी प्रदर्शित की गयी थी । मुझे भी वरिष्ठ साहित्यकार, बिलासपुर निवासी पण्डित श्यामलाल चतुर्वेदी, रायगढ़ घराने की नयी पीढ़ी की कथक नृत्यांगना सुश्री वासन्ती वैष्णव और तबला वादक श्री सुनील वैष्णव के साथ इस फ़िल्म समारोह में शामिल होने और ‘अनुकम्पन’ के प्रदर्शन का साक्षी बनने का सौभाग्य मिला था ।

दरअसल रायगढ़ कथक पर बनी इस पहली डॉक्यूमेंट्री में मेरा भी एक छोटा-सा योगदान था, वो यह कि निर्माता, निर्देशक के आग्रह पर मैंने इसकी पटकथा का हिन्दी रूपांतर करते हुए नेपथ्य से उसकी एंकरिंग भी की थी। वर्ष 1994 में यह डॉक्यूमेंट्री दूरदर्शन के राष्ट्रीय नेटवर्क पर भी प्रसारित की गयी थी ।

शायद वो वर्ष 1996 का चक्रधर समारोह था, जब आयोजन समिति की ओर से रायगढ़ के गोपी टॉकीज में ‘अनुकम्पन ‘ का प्रदर्शन किया गया था, जिसे देर तक गूँजती करतल ध्वनि के साथ दर्शकों का उत्साहजनक प्रतिसाद मिला था ।

राजा साहब की अतुलनीय और अनुकरणीय कला साधना को यादगार बनाए रखने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य अलंकरण ‘चक्रधर सम्मान’ की भी स्थापना की है, जो वर्ष 2001 से हर साल राज्योत्सव के मौके पर संगीत और कला के क्षेत्र में एक चयनित कला साधक को प्रदान किया जाता है जिससे दुनिया को ज्ञात होता है कि नृत्य कला के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ का योगदान भी रहा है।

आलेख

स्वराज करुण रायपुर

About hukum

Check Also

वनवासी युवाओं को संगठित कर सशस्त्र संघर्ष करने वाले तेलंगा खड़िया का बलिदान

23 अप्रैल 1880 : सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी तेलंगा खड़िया का बलिदान भारत पर आक्रमण चाहे सल्तनतकाल …

One comment

  1. धनञ्जय शास्त्री

    वाह श्रीमन् अजस्र धारा बहा रहे हैं, तात्कालिक घटनाओं और वृत्तों अश्रान्त लेखनी सेध

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *