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पुरातत्व

भारत के ईंटो से निर्मित प्राचीन मंदिर

भारत में गुप्तकाल से मंदिर-देवालय निर्माण कार्य में भव्यता दिखाई देने लगती है। इस काल में प्रस्तर निर्मित मंदिरों की बहुलता दिखाई देती है। कुछ स्थानों पर ईष्टिका निर्मित मंदिर भी हैं, जो कि निर्माण कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। पकी लाल ईंटों से निर्मित ये मंदिर शिल्पकारों की …

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भीम का बनाया यह मंदिर अधूरा रह गया

छत्तीसगढ़ के जांजगीर में कलचुरीकालीन भव्य विष्णु मंदिर है। यह जांजगीर नगरी कलचुरी राजा जाज्वल्य देव की नगरी है तथा विष्णु मंदिर कल्चुरी काल की मूर्तिकला का अनुपम उदाहरण है। मंदिर में जड़े पत्थर शिल्प में प्राचीन परंपरा को दर्शाया गया है। अधूरा निर्माण होने के कारण इसे “नकटा” मंदिर …

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छत्तीगढ़ अंचल की प्राचीन प्रतिमाओं का केश अलंकरण

छत्तीसगढ़ अंचल के पुरास्मारकों की प्रतिमाओं में विभिन्न तरह के केश अलंकरण दिखाई देते हैं। मंदिरों की भित्तियों में स्थापित प्रतिमाओं में कालखंड के अनुरुप स्त्री-पुरुष का केश अलंकरण दिखाई देता है। उत्त्खनन में केश संवारने के साधन प्राप्त होते हैं, जिनमें डमरु (बलौदाबाजार) से प्राप्त हाथी दांत का कंघा …

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नारायणपुर का प्राचीन शिवालय

नारायणपुर का प्राचीन मंदिर अपनी मैथुन प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध है। कसडोल सिरपुर मार्ग पर ग्राम ठाकुरदिया से 8 किमी की दूरी पर नारायणपुर ग्राम में यह 11 वीं शताब्दी का मंदिर स्थित है। यह पूर्वाभिमुखी मंदिर महानदी के समीप स्थित है। इसका निर्माण बलुआ पत्थरों से हुआ है। शिवालय …

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प्रसिद्ध मिजारू, किकाजारू, इवाजारू नामक बुद्धिमान बंदर

बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो की उक्ति को परिभाषित करते हुए तीन बंदर गांधी जी के कहलाते हैं। सहज बोल-चाल में गांधी जी के बंदर कह दिए जाते हैं। प्रश्न यह आता है कि गांधी जी के बंदरों के नाम से प्रसिद्ध वे तीन बंदर किसके …

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जानिए कौन सा स्थान है जहाँ सीता जी ने लिखना सीखा था?

शंख लिपि प्राचीन लिपि है, माना जाता है कि इसका उद्भव ब्राह्मी लिपि के साथ ही हुआ, यह भारत के कई प्राचीन स्थलों में दिखाई देती है। इसके वर्णों की आकृति शंख जैसे होने के कारण इसे शंख लिपि कहा गया। इसके साथ ही विडम्बना यह है कि इसे पढ़ा …

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जिसकी समृद्धि का उल्लेख व्हेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में किया, क्यों उजड़ा वह नगर?

दक्षिण कोसल की एक प्रमुख पुरा धरोहर सिरपुर है, किसी जमाने में यह समृद्ध सर्वसुविधा युक्त विशाल एवं भव्य नगर हुआ करता था, जिसके प्रमाण आज हमें मिलते हैं। यह कास्मोपोलिटिन शहर शरभपुरियों एवं पाण्डुवंशियों की राजधानी रहा है और यहाँ प्रसिद्ध चीनी यात्रा ह्वेनसांग के भी कदम पड़े थे, …

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प्राचीन मृदा भाण्ड अवशेष भी होते हैं इतिहास के साक्षी

आज मृदाभाण्डों को पुरातत्व शास्त्र की वर्णमाला कहा जाता है। जिस प्रकार किसी वर्णमाला के आधार पर ही उसका साहित्य पढा जाता है, उसी प्रकार मृदा भाण्ड अपने काल की सभ्यता सामने लाते हैं।

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छत्तीसगढ़ के सरगुजा अंचल में मृतक स्मारक एवं सती स्तंभ : एक अनुशीलन

जब भारत में इस्लाम द्वारा सिंध, पंजाब और राजपूत क्षेत्रों पर आक्रमण किया जा रहा था। इन क्षेत्रों की महिलाओं को उनके पति की हत्या के बाद इस्लामी हाथों में ज़लील होने से बचाने के लिए पति के शव के साथ जल जाने की प्रथा पर जोर दिया गया।

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दूसरी शताब्दी का दुर्लभ युप स्तंभ लेख जिसमें तत्कालीन शासकीय अधिकारियों के नाम एवं पदनाम उल्लेखित हैं

छत्तीसगढ़ में पुरातत्व से संबंधित कुछ ऐसी दुर्लभ चीजे हैं जो अन्य कहीं पर नहीं मिलती, इनमें से एक ग्राम किरारी से प्राप्त सातवाहनकालीन दूसरी शताब्दी का काष्ठस्तंभ लेख है। जो वर्तमान में महंत घासीदास संग्रहालय रायपुर की दीर्घा में प्रदर्शित है। दुर्लभ इसलिए है कि हमें शिलालेख, ताम्रपत्र, सिक्कों …

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