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पुरातत्व

ऐसा जिनालय जहाँ स्थापित हैं तीन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं

छत्तीसगढ अंचल में जैन धर्मावलंबियों का निवास प्राचीन काल से ही रहा है। अनेक स्थानों पर जैन मंदिर एवं उत्खनन में तीर्थंकरों की प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। सरगुजा के रामगढ़ की गुफ़ा जोगीमाड़ा के भित्ति चित्रों से लेकर बस्तर तक इनकी उपस्थिति दर्ज होती है। चित्र में दिखाया गया मंदिर रायपुर …

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जानिए वाल्मिकी आश्रम एवं लवकुश की जन्मभूमि तुरतुरिया का रहस्य

मोहदा रिसोर्ट से तुरतुरिया की दूरी 22 किमी और रायपुर से पटेवा-रवान-रायतुम होते हुए लगभग 118 किमी है। रायतुम के बाद यहाँ तक कच्ची सड़क है। शायद अभयारण्य में पक्की सड़क बनाने की अनुमति नहीं है। बाईक से सपाटे से चलते हुए ठंडी हवाओं के झोंकों के बीचे वन के …

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जानिए असिपुत्री किसे कहा जाता है

छुरी मनुष्य के दैनिक जीवन का हिस्सा है, सभ्यता के विकास में पाषाण से निर्मित छूरी से प्रारंभ हुआ सफ़र अन्य कठोर वस्तुओं से निर्माण के पश्चात धातुओं की खोज के साथ आगे बढ़ता है। उत्खनन में पाषाण से लेकर ताम्र, लौह एवं अन्य धातुओं की छूरियां प्राप्त होती हैं। …

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दंतेश्वरी मंदिर की प्राचीन प्रतिमा में सौंदर्य प्रसाधन पेटिका

बस्तर राजवंश की कुलदेवी दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण चौदहवीं शताब्दी में हुआ था। इस मंदिर में काकतीयों के 2 शिलालेख भी स्थापित हैं। इस मंदिर में एक प्रतिमा है जिसमें दो स्त्रियों को दिखाया गया है। जिसमें एक के हाथ में पेटिका (पर्स) तथा दूसरी स्त्री के हाथ में “बिजणा” …

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देखिए ऐसा प्राचीन शिवलिंग जिसमें एक लाख छिद्र हैं

तपोभूमि छत्तीसगढ़ को महाजनपद काल में दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था। रामायण में वर्णित यह दण्डकारण्य प्रदेश अपने सघन वनों, सरल एवं सहज निवासियों, वन्य प्राणियों की आदर्श निवास स्थली, खनिजों एवं सुरम्य प्राकृतिक वातावरण के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ तीर्थों की भी कमी नहीं है। …

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जानिये कौन से प्राचीन यंत्र का प्रयोग वर्तमान में भी हो रहा है

वर्तमान में जो भौतिक वस्तुएं एवं सभ्यता दृष्टिगोचर हो रही है, वह मानव के क्रमिक विकास का परिणाम है। पुराविद एवं इतिहासकार वर्षों से यह जानने में लगे हैं कि प्राचीन मनुष्य का रहन-सहन, खान-पान क्या था, उसका भौतिक विकास कितना हुआ था। उत्खनन में प्राप्त सामग्री के वैज्ञानिक शोध …

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