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Tag Archives: चोवा राम वर्मा “बादल”

बेटी की पीड़ा

हाय विधाता इस जगती में, तुमने अधम बनाये क्यों?नरभक्षी दुष्टों के अंतस, कुत्सित काम जगाये क्यों ? उन अंधों के तो नजरों में, केवल भोग्या नारी है।उन मूर्खों को कौन बताये,बेटी सबसे न्यारी है।। नारी के ही किसी उदर से, जन्म उन्होंने पाया है ।और कलंकित कर नारी को, माँ …

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जब तक नहीं विचार मिलेगा : सप्ताह की कविता

जब तक नहीं विचार मिलेगा।बदतर यह संसार मिलेगा। अफवाहों के बाजारों में,है भारी कालाबाजारी।भाईचारे का अभाव है,सस्ती में तलवार दुधारी।गोली, बम, बारूद जखीरा,जगह-जगह अंगार मिलेगा। जब तक नहीं विचार मिलेगा।बदतर यह संसार मिलेगा। शरद पूर्णिमा है महलों में,बाहर गहन अमावस काली।कहीं खजाना भरा हुआ है,कहीं अन्न बिन कोठी खाली।जला नहीं …

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शोषित नदियों की आँखों से, अश्रुधार झरते देखा

जीवनदात्री पर लोगों को, घोर जुल्म करते देखा है ।शोषित नदियों की आँखों से, अश्रुधार झरते देखा है । बड़े-बड़े बाँधों की बेड़ी, बँधी पाँव में सरिताओं के। ढोने को कचरे की ढेरी , सिर लादी नगरों- गाँवों के। रोग प्रदूषण का है जकड़ा, तिल-तिल कर मरते देखा है। शोषित …

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आओ हे घनश्याम

प्राण-पखेरु उड़ जाने पर,क्या फिर दवा पिलाओगे ?तोड़ प्रेम के कोमल धागे,फिर क्या गाँठ लगाओगे ? आओ हे घनश्याम हमारे,पल-पल युग सा लगता है।तुम्ही बताओ अपनों को भी,कोई यूँ ही ठगता है। शरणागत हम टेर लगाते,फिर भी क्या ठुकराओगे ?प्राण-पखेरु उड़ जाने पर,क्या फिर दवा पिलाओगे ? प्यासी धरती ,प्यासा …

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भगवा ध्वज लहराया है

स्वाभिमान जागा लोगों का, भगवा ध्वज लहराया है।रामराज्य की आहट लेकर, नया सवेरा आया है । जाति- पाँति के बंधन टूटे, टूट गई मन की जड़ता।ज्वार उठा भाईचारे का, धुल गई कड़वी कटूता।निर्भय होकर नर- नारी सब, अपने दायित्व निभाते उत्पीड़न करने वालों का, नहीं कहीं भय-साया है।स्वाभिमान जागा लोगों …

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हे मातृभूमे तुमको नमन

हे मातृभूमे! कर रहे, तव अर्चना तुमको नमन।प्रभु कर कमल की हो मनोहर सर्जना तुमको नमन।। अमरावती के देवगण,ले जन्म आते हैं जहाँ।रघुनाथ औ यदुनाथ भी,लीला रचाते हैं यहाँ। वो जीभ गल जाये करे जो भर्त्सना तुमको नमन।हे मातृभूमे! कर रहे तव अर्चना तुमको नमन।। सब ज्ञान औ विज्ञान की,उदगम …

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भगवा ध्वज लहराए : सप्ताह की कविता

भगवा ध्वज लहराए, भगवा ध्वज फहराए।सप्त सिंधु की लहर-लहर में, नव ऊर्जा भर जाए। घर-घर के आंगन में गूँजे,उत्सव की किलकारें।द्वार-द्वार में फूल बिछे हों,नाचें झूम बहारें। हर्षित मन का कोना कोना, मंद मंद मुस्काए।भगवा ध्वज लहराए, भगवा ध्वज फहराए। अंबर-धरती, दसों दिशा में,वेद मंत्र का गुंजन हो।अमर पुत्र उस …

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शर्म आ रही है उन पर : सप्ताह की कविता

शर्म आ रही है उन्हें देख कर ,जो शर्म बेच खाए हैं।कल ही की तो बात है,जो वंदे मातरम नहीं गाए हैं । और उन पर भी,जो बात बात में,बाँट कर जात पात में । संसद के भीतर ,बे कदरनारे बहुत लगाये हैं । शर्म आ रही है उन पर,जो …

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नमामि गंगे

(आधार छंद – वीर छंद ) सुरसरी गंगे पतित पावनी, जन-जन का करती उद्धार। सदा धवल विमले शुभ शीतल, महिमा जिसकी अपरंपार। क्यों मानव अब भस्मासुर बन, नाच रहा है कचरा डाल।विकट कारखाने शहरों का, मिला रहे हैं मल विकराल। पावन जल को जहर बनाना , कर देंगे जब भी …

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