(आधार छंद – वीर छंद )
सुरसरी गंगे पतित पावनी, जन-जन का करती उद्धार।
सदा धवल विमले शुभ शीतल, महिमा जिसकी अपरंपार।
क्यों मानव अब भस्मासुर बन, नाच रहा है कचरा डाल।
विकट कारखाने शहरों का, मिला रहे हैं मल विकराल।
पावन जल को जहर बनाना , कर देंगे जब भी ये बंद।
हे माता! तेरे सब जलचर, पाएंगे नित परमानंद।
नाहक कितने बांध बने हैं, अविरल जलधारा को रोक।
ठहरी सड़ती जलधारा लख, भारत माँ के अंतस शोक।
तट के हमने तरु हैं काटे, अपने पैर कुल्हाड़ी मार।
करनी है उसकी भरपाई, अब हम रोपें वृक्ष हजार।
नहीं बहायें गंदी नाली , सड़ी-गली मानुष पशु लाश।
हड्डी राख बहा कर हम क्यों ,करते हैं सब सत्यानाश।
गंगा जल को शुद्ध बनाने, आओ सभी बटायें हाथ।
देव नदी का वंदन करके, अर्चन करें झुकाकर माथ।
गाँव-गाँव में अलख जगाकर, सदकर्मों का बतला मर्म।
लोगों को हम समझाएंगे, साफ सफाई पावन धर्म।
है नमामि गंगे मैया को, भगीरथी जागा है आज।
तुमको निर्मल स्वच्छ करेंगे, विश्व करेगा जिस पर ना।