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संस्कृति

संस्कृति विभाग में लोक संस्कृति, नृत्य, त्यौहार-पर्व, परम्पराएं, शिष्टाचार, सामुदायिक त्यौहार एवं लोक उत्सव को स्थान दिया गया है।

सामाजिक समरसता एवं भक्ति की अनुपम प्रतीक देवी शबरी

फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी : शबरी माता जयंती भक्त शिरोमणि शबरी वनवासी भील समाज से थी। फिर भी मातंग ऋषि के गुरु आश्रम की उत्तराधिकारी बनी। रामजी ने उनके जूठे बेर खाये। यह कथा भारतीय समाज की उस आदर्श परंपरा का उदाहरण है कि व्यक्ति को पद, स्थान और सम्मान …

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पुन्नी मेला अब पुन: राजिम कुंभ

माघ पूर्णिमा को मेले तो बहुत सारे भरते हैं, परन्तु राजिम मेले का अलग ही महत्व है। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है, यहाँ पैरी, सोंढूर एवं महानदी मिलकर त्रिवेणी संगम का निर्माण करती हैं। भारतीय संस्कृति में जहाँ तीन नदियों का संगम होता वह स्थान तीर्थ की …

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मन चंगा तो कठौती में गंगा : संत शिरोमणी रविदास

“मन चंगा तो कठौती में गंगा”, ये कहावत आपने जरूर सुनी होगी। इसका संबंध आपसी भाईचारा, भेदभाव मिटाने और सबके भले की सीख देने वाले सामाजिक समरसता के महान संत शिरोमणी श्री रविदास जी महाराज से है। संत गुरु रविदास भारत के महान संतों में से एक हैं, जिन्होंने अपना …

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शिवरीनारायण का माघी मेला

महानदी के तट पर स्थित प्राचीन, प्राकृतिक छटा से भरपूर और छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी के नाम से विख्यात् शिवरीनारायण जांजगीर-चांपा जिलान्तर्गत जांजगीर से 60 कि. मी., बिलासपुर से 64 कि. मी., कोरबा से 110 कि. मी., रायगढ़ से व्हाया सारंगढ़ 110 कि. मी. और राजधानी रायपुर से व्हाया बलौदाबाजार 140 …

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सूर्य उपासना से मानसिक एवं शारीरिक समृद्धि : सूर्य सप्तमी

सूर्य सप्तमी विशेष आलेख आज सूर्य सप्तमी है, इसे अचला सप्तमी, भानु सप्तमी या रथ सप्तमी भी कहा जाता है। सनातन मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव का जन्म हुआ था। सनातन धर्म में माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। यह …

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देवी सरस्वती की आराधना का पर्व : वसंत पंचमी

वसंत पंचमी ज्ञान और विद्या की देवी सरस्वती की आराधना का पर्व है। इस दिन मां सरस्वती की उपासना बहुत फलदायी होती है, इसी कारण विद्यालयों और विद्यार्थियों के बीच इस तिथि को लेकर बहुत उत्साह रहता है। इस दिन विविध मंत्रों से सरस्वती वंदना की जाती है। इस दिन …

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छत्तीसगढ़ी संस्कृति में रचे बसे लोकगीत

लोककला मन में उठने वाले भावों को सहज रुप में अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्वत: स्थानांतरित हो जाने वाली विधा है। लोक कला हमारी संस्कृति की पहचान होती है, हमारी खुशी को प्रकट करने का माध्यम होती है। लोककला का क्षेत्र …

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राम से बड़ा राम का नाम

छत्तीसगढ़ प्राकृतिक वैभव से परिपूर्ण, वैविध्यपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना तथा अपने गौरवपूर्ण अतीत को गर्भ में समाए हुआ है। प्राचीन काल में यह दंडकारण्य, महाकान्तार, महाकोसल और दक्षिण कोसल कहलाता था। दक्षिण जाने का मार्ग यहीं से गुजरता था इसलिए इसे दक्षिणापथ भी कहा गया ऐसा विश्वास किया जाता …

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वैश्विक संस्कृति में श्रीराम एवं रामकथाएं

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और उनकी यशगाथा रामायण केवल भारत में नहीं अपितु पूरे संसार रची बसी है। बीस से अधिक देशों में उनकी अपनी लोकभाषा में रामायण उपलब्ध है। अनेक देशों के पुरातात्विक अनुसंधान में राम सीता जैसी छवियाँ, काष्ठ या भीति चित्र मिले हैं। राम और रामायण की …

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सामाजिक समरसता के आदर्श प्रतीक श्रीराम

भगवान राम लोक के आदर्श हैं तथा लोक के कण-कण में समाहित हैं, उन्हें समाज के आदर्श पुरुष के रुप में जाना जाता है इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। उनके चरित्र में सामाजिक समरसता परिलक्षित होती है, वे समाज के प्रत्येक अंग को लेकर साथ चलते हैं तथा …

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